RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 17 भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि

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Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 9
Subject Social Science
Chapter Chapter 17
Chapter Name भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि
Number of Questions Solved 48
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 17 भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में रोजगार का प्रमुख आधार है
(क) कृषि
ख) उद्योग
(ग) सेवा क्षेत्र
(घ) पशुपालन
उत्तर:
(क) कृषि

प्रश्न 2.
अल्पकालीन ऋणों की अवधि कितनी होती है ?
(क) 15 महीने से कम
(ख) 2 वर्ष से कम
(ग) 5 वर्ष से कम
(घ) 10 वर्ष से कम
उत्तर:
(क) 15 महीने से कम

प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति का सर्वाधिक लाभ किस राज्य को मिला है ?
(क) गुजरात
(ख) पंजाब
(ग) केरल
(घ) जम्मू कश्मीर
उत्तर:
(ख) पंजाब

प्रश्न 4.
श्वेत क्रान्ति का सम्बन्ध किस क्षेत्र से है ?
(क) मत्स्य पालन
(ख) पशुपालन
(ग) बागवानी
(घ) कोई नहीं
उत्तर:
(ख) पशुपालन

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि की सहायक क्रियाएँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
कृषि की सहायक क्रियाएँ-वानिकी, लकड़ी काटना, पशुपालन, मछली पालन, खनन, मुर्गी-पालन आदि हैं।

प्रश्न 2.
जायद फसलें किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मार्च से जून के मध्य पैदा होने वाली फसलें जायद फसलें कहलाती हैं, जैसे-खरबूज, तरबूज, ककड़ी, सूरजमुखी, सब्जियाँ आदि।

प्रश्न 3.
लघु सिंचाई परियोजना क्या है ?
उत्तर:
वे सिंचाई परियोजनाएँ जो 2000 हैक्टेयर तक कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र वाली होती हैं, उन्हें लघु सिंचाई परियोजना कहते हैं।

प्रश्न 4.
कृषि जोत किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एक किसान जितनी भूमि पर कृषि करता है उसे उसकी कृषि जोत कहा जाता है।

प्रश्न 5.
उर्वरकों में मुख्य रूप से किन उर्वरकों का प्रयोग होता है ?
उत्तर:
उर्वरकों में मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फॉस्फेट तथा पोटाश का प्रयोग होता है।

प्रश्न 6.
कृषि साख के गैर-संस्थागत स्रोत कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
ग्रामीण साहूकार, जर्मीदार, महाजन, कमीशन एजेंट, व्यापारी, बड़े भू-स्वामी व पारिवारिक रिश्तेदार कृषि साख के गैर-संस्थागत स्रोत हैं।

प्रश्न 7.
निर्यातों में कृषि उत्पादों का कितना हिस्सा है?
उत्तर:
वर्तमान में कुल निर्यातों में कृषि तथा उससे सम्बद्ध क्षेत्र का योगदान लगभग 12.5 प्रतिशत है।

प्रश्न 8.
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कृषि में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, दवाइयों, उन्नत बीजों, आधुनिक कृषि उपकरणों, विस्तृत सिंचाई परियोजनाओं आदि के प्रयोग द्वारा उत्पादन में वृद्धि करने को ‘हरित क्रान्ति’ कहा गया।

प्रश्न 9.
अधिक उपज देने वाली फसल कार्यक्रम को किन फसलों पर लागू किया गया ?
उत्तर:
अधिक उपज देने वाली फसल का कार्यक्रम धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा व रागी की फसलों पर लागू किया गया।

प्रश्न 10.
भारत में श्वेत क्रान्ति के जन्मदाता कौन हैं ?
उत्तर:
डॉ. वर्गीज कुरियन

प्रश्न 11.
पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किस कार्यक्रम को शुरू किया गया ?
उत्तर:
पायलट प्रोजेक्ट के रूप में गहन कृषि जिला कार्यक्रम को शुरू किया गया।

प्रश्न 12.
सर्वाधिक पशुधन किस देश में पाया जाता है ?
उत्तर:
भारत में

प्रश्न 13.
विश्व का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम कौन-सा है ?
उत्तर:
ऑपरेशन फ्लड

प्रश्न 14.
हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि करके खाद्यान्न संकट को समाप्त करना तथा कृषि में व्यावसायिक दृष्टिकोण को अपनाना था।

प्रश्न 15.
गहन कृषि जिला कार्यक्रम कितने जिलों में शुरू किया गया ?
उत्तर:
7 जिलों में

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि यन्त्रीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कृषि कार्यों में पुराने और तकनीक विहीन औजारों एवं उपकरणों के स्थान पर नये-नये उपकरणों, जैसे-ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, पावर टिलर, थ्रेसर, पम्पसेट आदि का उपयोग करना ही कृषि यन्त्रीकरण कहलाता है। कृषि यन्त्रीकरण से उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा कृषि परिवहन, फसल कटाई, छंटाई, भूमि की खुदाई आदि सभी कार्यों को सरलता से किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
किसान क्रेडिट कार्ड योजना क्या है ?
उत्तर:
किसान क्रेडिट कार्ड योजना-यह योजना किसानों को अल्पकालीन ऋण उपलब्ध करवाने के लिए सन् 1998-99 में शुरू की गयी। इसके अन्तर्गत ऐसे किसान जो ₹ 5,000 या अधिक मूल्य के उत्पादन ऋण के पात्र होते हैं उन्हें एक क्रेडिट कार्ड तथा पासबुक दी जाती है। यह कार्ड तीन वर्ष के लिए वैध होता है तथा निर्धारित सीमा के अन्तर्गत निकाली गई राशि का भुगतान 12 माह के भीतर करना होता है। किसान क्रेडिट कार्ड व्यापारिक बैंकों, सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के द्वारा जारी किये जाते हैं।

प्रश्न 3.
व्यापारिक फसलें किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
व्यापारिक या नकदी फसलें-वे फसलें जो लाभ कमाने के लिए विक्रय के उद्देश्य से उगायी जाती हैं उन्हें व्यापारिक या नकदी फसलें कहते हैं, जैसे-तिलहन, गन्ना, जूट, कपास, चाय, कॉफी, तम्बाकू आदि। किसान इन्हें या तो सम्पूर्ण रूप से बेच देता है या आंशिक रूप से उपयोग करता है तथा शेष बड़ा हिस्सा बेच देता है।

प्रश्न 4.
कृषि उत्पादकता में कमी के प्राकृतिक कारण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
कृषि उत्पादकता में कमी के प्राकृतिक कारण निम्नलिखित हैं-

  1. अनियमित तथा अनिश्चित वर्षा
  2. सूखा पड़ना
  3. बाढ़ आना
  4. पाला पड़ना
  5. चक्रवात आना
  6. तेज आँधियाँ आना
  7. मृदा अपरदन
  8. मरुस्थलों का प्रसार होना
  9. भूमि की उर्वरता की क्षति होना
  10. भूमि का क्षारीय होना
  11. कीड़ों का प्रकोप तथा
  12. अन्य बीमारियाँ आदि

प्रश्न 5.
जोतों का उपविभाजन एवं अपखण्डन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जोतों का उपविभाजन-उत्तराधिकारी नियम के अनुसार, पैतृक भूमि का बँटवारा होने को जोतों का उपविभाजन कहते हैं। इससे खेतों का आकार छोटा होता जाता है। जोतों का अपखण्डन-किसानों के अधीन आने वाली जोते एक स्थान पर न होकर दूर-दूर बिखरी हुई होती हैं, इसी को अपखण्डन’ कहा जाता है।

प्रश्न 6.
समर्थन मूल्य किसे कहते हैं ?
उत्तर:
समर्थन मूल्य, वे मूल्य होते हैं जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेची जाने वाली पूरी फसल खरीदने को तैयार रहती है। दूसरे शब्दों में, समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य है। जो किसानों को अपनी फसल बेचने पर आवश्यक रूप से प्राप्त होता है। इसकी घोषणा सरकार फसल बोने से पहले ही कर देती है।

प्रश्न 7.
भारतीय कृषि को मानसून का जुआ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
भारत में वर्षा की अनियमितता तथा अनिश्चितता सदैव बनी रहती है। इसके परिणामस्वरूप भारत में वर्षा सही समय पर होने पर फसल अच्छी हो जाती है जबकि कम या अत्यधिक वर्षा हो जाने पर फसल खराब हो जाती है। इसके अतिरिक्त कृषि को सूखा, बाढ़, पाला, चक्रवात, तेज आँधियों को सदैव भय बना रहता है। इसीलिए भारतीय कृषि को मानसून का जुआ कहा जाता है।

प्रश्न 8.
पशुधन विकास में कृषि का महत्व समझाइए।
उत्तर:
विश्व के सर्वाधिक पशु भारत में ही हैं। आज भी कृषि सम्बन्धी अधिकांश कार्य पशुओं के माध्यम से किये जाते हैं और अधिकांश पशुपालन कृषकों द्वारा ही किया जाता है। डेयरी, ऊन, माँस, दूध तथा दूध से बने पदार्थों को उत्पादन तथा नस्ल सुधार इत्यादि कृषि क्षेत्र में होते हैं। इसीलिए पशुधन विकास में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 9.
एच. वाई. वी. पी. कार्यक्रम क्या है ?
उत्तर:
एच. वाई. वी. पी. अर्थात् अधिक उपज देने वाली फसलों का यह कार्यक्रम सन् 1970-71 में 6 फसलों पर लागू किया गया। इसमें धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा व रागी की फसलों को शामिल किया गया। इसमें गेहूँ की मैक्सिन किस्में, चावल की चीनी व कुछ भारतीय किस्मों तथा मक्का, ज्वार, बाजरा व रागी की देश में ही विकसित किस्मों का प्रयोग किया गया। इस कार्यक्रम में गेहूँ के उत्पादन में सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई।

प्रश्न 10.
लघु सिंचाई कार्यक्रम को समझाइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति की सफलता के लिए केवल उन्नत खाद व बीज ही पर्याप्त नहीं थे इसके लिए सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था भी आवश्यक थी जिसे केवल बड़े बाँधों से ही पूरा नहीं किया जा सकता था। अतः लघु सिंचाई कार्यक्रम के अन्तर्गत नलकूप, छोटी नहरें, तालाब, कुएँ, वाटर हार्वेस्टिंग तथा ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई पर जोर दिया गया।

प्रश्न 11.
पौध संरक्षण कार्यक्रम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पौध संरक्षण कार्यक्रम-इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भूमि तथा फसलों पर दवा छिड़कने का कार्य प्रारम्भ किया गया। जिन वर्षों में टिड्डी दल आते हैं, उन वर्षों में टिड्डियों को नष्ट करने का अभियान चलाकर उन्हें भूमि पर या आकाश में ही नष्ट कर दिया जाता है जिससे फसलों को क्षति पहुँचने से बचाया जा सके तथा उत्पादकता को बढ़ाया जा सके।

प्रश्न 12.
श्वेत क्रान्ति के तीन लाभ बताइए।
उत्तर:
श्वेत क्रान्ति के तीन लाभ:

  1. श्वेत क्रान्ति के परिणामस्वरूप दूध के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है
  2. डेयरी व्यवस्था लाखों ग्रामीण परिवारों की आय का महत्वपूर्ण द्वितीय स्रोत बन गया है
  3. ग्रामीण व भूमिहीन लोगों तथा खेतीहर मजदूरों को पशुपालन के रूप में एक स्थायी तथा स्वनियोजित रोजगार उपलब्ध हुआ है।

प्रश्न 13.
रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग पर अधिक बल दिया गया। इसके परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग ने भूमि को अनुपजाऊ बना दिया तथा इनके प्रयोग से भूजल, पर्यावरण तथा जीवों को भी हानि पहुँची है।

प्रश्न 14.
भूजल स्तर में कमी के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप फसलों की सिंचाई के लिए नये-नये नलकूपों तथा ट्यूबवैलों की स्थापना हुई जिससे भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाने लगा, इसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर में गिरावट आयी है। इसके अतिरिक्त जमीन पक्की होने के कारण वर्षा का पानी बहकर नदियों में चला जाता है जिससे जमीन पानी को सोख नहीं पाती है। भूजल स्तर में कमी का यह भी एक प्रमुख कारण

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति व श्वेत क्रान्ति में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति नए खाद, बीज, कीटनाशक दवाओं, सिंचाई परियोजनाओं का विस्तार तथा तकनीकी का प्रयोग करके कृषि उत्पादन में वृद्धि करने से सम्बन्धित है। जबकि श्वेत क्रान्ति पशुओं की नस्ल सुधार कर, पशुपालकों को पशुपालन के उन्नत एवं विकसित तरीकों का प्रशिक्षण प्रदान करके तथा कृत्रिम गर्भाधान करके दूध के उत्पादन में वृद्धि करने से सम्बन्धित है।

प्रश्न 16.
सघन पशु विकास कार्यक्रम को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय कृषकों के लिए सघन पशु विकास कार्यक्रम सन् 1964-65 में लागू किया गया था जिसके अन्तर्गत देश में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुपालकों को पशुपालन के उन्नत एवं विकसित तरीकों का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। पशुपालकों को उन्नत किस्म की गाय तथा भैंसें प्रदान की गई तथा कृत्रिम गर्भाधान के तरीके विकसित किये गये।

प्रश्न 17.
शहरों की दूध आवश्यकता को श्वेत क्रान्ति ने किस प्रकार पूरा किया ?
उत्तर:
श्वेत क्रान्ति के परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से अतिरिक्त उत्पादित दूध शहरी क्षेत्रों में पहुँचाया जाने लगा जिससे शहरी क्षेत्र के लोगों को भी दूध तथा दूध से बने उत्पाद जैसे दही, छाछ, घी, पनीर तथा मक्खन पर्याप्त मात्रा में सरलता से प्राप्त होने लगे। इस प्रकार श्वेत क्रान्ति ने शहरी क्षेत्रों की दूध की आवश्यकता की पूर्ति की।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व:
1. राष्ट्रीय आय में योगदान – भारतीय कृषि की राष्ट्रीय आय में हमेशा से ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन के अनुसार, सन् 2012-13 में (2004-05 के स्थिर मूल्यों पर) कृषि का राष्ट्रीय आय में 13.7 प्रतिशत योगदान था, जो अन्य विकसित देशों के मुकाबले कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में बहुत अधिक योगदान है।

2. रोजगार उपलब्ध कराना – 2011 ई. की जनगणना के अनुसार, लगभग 48.9 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से अपना रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। खेती करना, फसल काटना, छैटाई, सिंचाई कार्य आदि में प्रत्यक्ष रूप से तथा पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गीपालन, वानिकी, खाद्य प्रसंस्करण, फल-सब्जियों को बिक्री हेतु तैयार करना, दालें तैयार करना, पशुचारा तैयार करना, जैविक खाद तैयार करना आदि कार्यों में कृषि अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रही है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में योगदान – हमारा देश कई प्रकार के कृषिगत पदार्थों का निर्यात तथा आयात करता है। वर्तमान में कुल निर्यातों में कृषि तथा उससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान लगभग 12.5 प्रतिशत है। भारत से चाय, गर्म मसाले, कॉफी, चावल, कपास, तम्बाकू, चीनी, मांस आदि कृषिगत वस्तुओं का बड़ी मात्रा में निर्यात होता है।

4. औद्योगिक विकास में योगदान – कृषि औद्योगिक विकास में दो प्रकार से योगदान देती है। पहला, कृषि हमारे प्रमुख उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध करवाती है, जैसे-सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास, पटसन उद्योग के लिए जूट, चीनी उद्योग के लिए गन्ना व चुकन्दर आदि। दूसरा, उद्योगों द्वारा तैयार माल के लिए कृषि बाजार उपलब्ध करवाती है, जैसे- ट्रैक्टर-ट्रॉली उद्योग, कृषि उपकरण उद्योग, रासायनिक उर्वरक उद्योग, बीज उद्योग आदि।

5. खाद्यान्न एवं चारा आपूर्ति में योगदान – सम्पूर्ण देश में जनसंख्या के लिए खाद्यान्न एवं पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था कृषि से ही होती है।

6. निर्धनता उन्मूलन में योगदान – कृषि एवं उसकी सहायक क्रियाओं में सुधार करके जनसंख्या की आय में वृद्धि करके निर्धनता को समाप्त किया जा सकता है।

7. राजस्व में योगदान – कृषि एवं उसकी सहायक क्रियाओं से सरकार को राजस्व की भी प्राप्ति होती है।

8. अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के विकास में योगदान – कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी है अतः इसके विकास से ग्रामीण विकास, परिवहन, संचार, बैंकिंग आदि कई क्षेत्रों के विकास में योगदान प्राप्त होता है।

9. पशुधन के विकास का आधार – विश्व में सर्वाधिक पशु भारत में ही हैं। कृषि कार्यों में इनका सर्वाधिक योगदान है। डेयरी, ऊन, माँस, दूध आदि कृषि के ही क्षेत्र माने जाते हैं, अतः पशुधन विकास भी कृषि क्षेत्र में ही होता है।

प्रश्न 2.
भारत की कृषि विकास की समस्याएँ व निराकरण के उपाय समझाइए ?
उत्तर:
भारत की कृषि विकास की समस्याएँ

1. प्राकृतिक विपदाएँ – भारतीय कृषि मानसून का जुआ है। यहाँ वर्षा की अनियमितता तथा अनिश्चितता बनी रहती है तथा सूखा, बाढ़, पाला, चक्रवात, तेज आँधी आदि का सदैव भय बना रहता है।

2. जोतों का छोटा आकार – भारतीय कृषि में पिछड़ेपन का मुख्य कारण जोतों का छोटा होना है। इस कारण उन्नत कृषि तकनीक का प्रयोग करना सम्भव नहीं हो पाता है।

3. कृषि वित्त का अभाव – किसानों को फसल बोने से लेकर काटने तक के कृषि कार्यों एवं जीवन निर्वाह हेतु वित्त की आवश्यकता बनी रहती है। वे इसकी पूर्ति स्थानीय साहूकारों, महाजनों एवं व्यापारियों से उनकी शर्तों एवं ऊँची ब्याज दर पर करते हैं।

4. सिंचाई सुविधाओं का अभाव – भारतीय कृषि सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर है, क्योंकि यहाँ कृत्रिम सिंचाई के साधनों का अभाव है। इससे फसलों को हानि पहुँचती है।

5. भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास – रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति को हानि पहुँच रही है, जिससे उत्पादकता गिर रही है।

6. कृषि उत्पादों के विक्रय की समस्या – भारतीय किसान को काफी दूर मण्डियों में अपने उत्पादन को बेचने के लिए जाना पड़ता है। यातायात की उचित व्यवस्था न होने के कारण यह कठिन कार्य होता है।

7. किसानों की रूढ़िवादिता – कुछ भारतीय किसान आज भी रूढ़िवादिता में जकड़े हुए हैं, जो कृषि की अपेक्षा अन्य कार्यों, जैसे-शादी, मृत्युभोज एवं अन्य सामाजिक परम्पराओं पर अधिक व्यय करते हैं।

8. किसानों की अशिक्षा – देश के लगभग आधे किसान आज भी अशिक्षित हैं, जिससे वे कृषि की उन्नत एवं उचित तकनीक को नहीं समझ पाते हैं।

9. भू-सुधार कार्यक्रमों का उचित क्रियान्वयन न होना – जमींदारी व जागीरदारी उन्मूलन तथा अन्य भू-सुधार कार्यक्रमों का पूरा लाभ आज भी किसानों को नहीं मिला

10. उचित मूल्य की समस्या – व्यापारियों द्वारा किसान की फसल का उचित मूल्य नहीं दिया जाता है।

कृषि समस्याओं के निराकरण के उपाय

  1. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् लागू किये गये भू-सुधारों को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाए।
  2. सीमान्त किसानों तथा खेतीहर मजदूरों को कृषि आगतें, जैसे-उन्नत खाद, बीज, कीटनाशक, यन्त्र आदि उचित मूल्य एवं आसान शर्ते पर उपलब्ध करवाना।
  3. किसानों के मध्य शुष्क खेती की विधियों का प्रचार-प्रसार किया जाए।
  4. किसानों में शिक्षा का प्रसार करना चाहिए, जिससे कि वे कृषि की नवीन तकनीकों का प्रयोग आसानी से कर सकें।
  5. ग्रामीण कुटीर उद्योगों तथा कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो तथा कृषि पर जनसंख्या का भार कम हो।
  6. कृषि के साथ-साथ रोजगार के वैकल्पिक साधनों, जैसे-मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन, पशुपालन आदि को भी बढ़ावा दिया जाए।
  7. कृषि भण्डार गृहों की स्थापना को बढ़ावा दिया जाए, जिससे कि कृषि उपज को सुरक्षित भण्डार में रखा जा सके।
  8. रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण होने वाले दुष्परिणामों से बचने के लिए जैविक खेती के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया जाए।

प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति का अर्थ बताते हुए उसकी प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अर्थ कृषि के परम्परागत तरीकों के स्थान पर नई तकनीक, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाइयों, उन्नत बीजों, आधुनिक कृषि उपकरणों, विस्तृत सिंचाई परियोजनाओं आदि के प्रयोग को बढ़ावा देना हरित क्रान्ति’ कहलाया। विश्व में इस क्रान्ति के जन्मदाता प्रो. ई. नोर्मन बॉरलोक हैं, लेकिन भारत में हरित क्रान्ति का जनक प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन को माना जाता है। इस क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश को खाद्यान्न संकट से बाहर निकालना तथा कृषि में व्यावसायिक दृष्टिकोण को अपनाना था।

भारत में हरित क्रान्ति की प्रमुख उपलब्धियाँ

1. फसलों के कुल उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि – हरित क्रान्ति के कारण फसलों के उत्पादन तथा उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, जिससे देश खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है।

2. खेतिहर मजदूरों के लिए रोजगार – हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप बहफसल तथा व्यापारिक फसलों के उत्पादन में श्रमिकों की अधिक आवश्यकता को भूमिहीन मजदूरों से पूरा किया गया, जिससे इनकी आर्थिक दशा में सुधार हुआ है।

3. ग्रामीण निर्धनता में कमी – भूमिहीन मजदूरों को रोजगार मिलने तथा बहु-फसली कार्यक्रमों से किसानों की आय में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप निर्धनता में कमी आयी है।

4. यन्त्रीकरण – हरित क्रान्ति से यन्त्रीकरण ने परम्परागत औजारों का स्थान ले लिया। अब कृषि में आधुनिक उपकरणों का उपयोग होता है।

5. उन्नत किस्मों का उत्पादन – हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप उन्नत बीजों, कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण उन्नत किस्म की फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है।

6. व्यावसायिक दृष्टिकोण – कृषकों में हरित क्रान्ति के कारण व्यावसायिक सोच का विकास हुआ है।

7. आधुनिकीकरण – हरित क्रान्ति से कृषि के आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिला, जिससे किसानों की दशा में सुधार हुआ है।

8. सुविधाएँ – कृषकों को दी जाने वाली अन्य सुविधाओं में भी सुधार हुआ है, जैसे-उचित मूल्य, भण्डारण, साख सुविधा आदि।

प्रश्न 4.
श्वेत क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? इससे विभिन्न वर्गों को क्या-क्या लाभ प्राप्त हुए?
उत्तर:
श्वेत क्रान्ति
दूध के उत्पादन में तीव्र वृद्धि को ही श्वेत क्रान्ति कहा जाता है। भारत में सर्वाधिक पशु पाये जाते हैं तथा दुग्ध उत्पादन भी विश्व में सर्वाधिक है, लेकिन यहाँ पशु नस्ल की दयनीय स्थिति के कारण दुग्ध उत्पादकता बहुत कम है तथा लागत ऊँची है। इसके सुधार के लिए ही सरकार ने श्वेत क्रान्ति के रूप में एक सघन कार्यक्रम लागू किया था। सन् 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने गुजरात के आणद गाँव से श्वेत क्रान्ति की शुरुआत की, जिसे ‘ऑपरेशन फ्लड’ नाम दिया गया। इसके जन्मदाता डॉ. वर्गीज कुरियन

श्वेत क्रान्ति के लाभ:

1. दूध उत्पादन में वृद्धि – श्वेत क्रान्ति के परिणामस्वरूप दूध के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया है।
2. कृषकों की आय – डेयरी व्यवसाय लाखों ग्रामीण परिवारों की आय का एक महत्वपूर्ण द्वितीय स्रोत बन गया है।

3. ग्रामीण बेरोजगारों के लिए रोजगार – ग्रामीण व भूमिहीन लोगों तथा खेतिहर मजदूरों को पशुपालन के रूप में एक स्थायी तथा स्वनियोजित रोजगार प्राप्त हुआ है। इस कार्य में देश के लगभग 90 लाख किसान परिवार लगे हुए हैं।

4. सन्तुलित ग्रामीण विकास – श्वेत क्रान्ति के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भी आधारभूत संरचनाओं, जैसे-सड़क, परिवहन, संचार, बैंकिंग आदि के विकास को बढ़ावा मिला है।

5. शहरी क्षेत्र को दूध की उपलब्धता – श्वेत क्रान्ति के परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से अतिरिक्त दूध शहरी क्षेत्रों में पहुँचाया गया, जिससे शहरी लोगों को भी दूध, दही, छाछ, पनीर आदि चीजें आसानी से मिलने लर्गी ।

6. पशु नस्ल में सुधार – श्वेत क्रान्ति के परिणामस्वरूप पशुओं की नस्ल सुधार तथा उनकी बीमारियों की रोकथाम के उचित प्रबन्ध करने से भारत में पशु नस्ल में काफी सुधार हुआ है। इस प्रकार, उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि श्वेत क्रान्ति ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कायापलट कर दी है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सन् 2012-13 में कृषि एवं उसकी सहायक क्रियाओं का राष्ट्रीय आय में योगदान था
(अ) 1:37 प्रतिशत
(ब) 13:7 प्रतिशत
(स) 71.3 प्रतिशत
(द) 37.1 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 13:7 प्रतिशत

प्रश्न 2.
रबी की फसल है
(अ) गेहूँ
(ब) गन्ना
(स) अरहर
(द) मँग
उत्तर:
(अ) गेहूँ

प्रश्न 3.
ऐसी कौन-सी फसल है, जो रबी तथा खरीफ दोनों के अन्तर्गत आती है
(अ) कपास
(ब) गेहूँ
(स) सरसों
(द) चावल
उत्तर:
(द) चावल

प्रश्न 4.
सूरजमुखी फसल है
(अ) जायद की
(ब) रबी की
(स) खरीफ की
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) जायद की

प्रश्न 5.
भारतीय कृषि में सर्वाधिक भाग है
(अ) लघु जोत को
(ब) दीर्घ जोत का
(स) सीमान्त जोत का
(द) मध्यम जोत का
उत्तर:
(अ) लघु जोत को

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार कृषि एवं उसकी सहायक क्रियाओं से कितने प्रतिशत लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं?
उत्तर:
लगभग 48:9 प्रतिशत लोग।

प्रश्न 2.
भारत से निर्यात की जाने वाली मुख्य कृषिगत वस्तुएँ कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
चाय, गर्म मसाले, कॉफी, चावल, कपास, तम्बाकू, काजू, फल, सब्जियाँ, चीनी, माँस आदि भारत से निर्यात की जाने वाली मुख्य कृषिगत वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 3.
औद्योगिक विकास में कृषि योगदान के दो प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  • कृषि उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध करवाती है।
  • उद्योगों के माल की बिक्री हेतु कृषि, बाजार उपलब्ध करवाती है।

प्रश्न 4.
कृषि पर आधारित किन्हीं चार उद्योगों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सूती वस्त्र उद्योग
  2. पटसन उद्योग
  3. चीनी उद्योग
  4. बागानी उद्योग

प्रश्न 5.
ऐसे किन्हीं दो उद्योगों के नाम लिखिए, जिन्हें कृषि बाजार उपलब्ध करवाती है।
उत्तर:

  • कृषि उपकरण उद्योग
  • रासायनिक उर्वरक उद्योग

प्रश्न 6.
ऋतुओं के आधार पर फसलों के प्रकार बताइए।
उत्तर:
ऋतुओं के आधार पर फसलें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. रबी की फसल
  2. खरीफ की फसल
  3. जायद की फसल

प्रश्न 7.
रबी की कोई चार फसलों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. गेहूँ
  2. जौ
  3. चना
  4. सरसों

प्रश्न 8.
रबी की फसलें कब बोई तथा कब काटी जाती हैं ?
उत्तर:
रबी की फसलें अक्टूबर से नवम्बर के मध्य बोई जाती हैं तथा मार्च-अप्रैल के मध्य काटी जाती हैं।

प्रश्न 9.
खरीफ की कोई चार फसलों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. ज्वार
  2. बाजरा
  3. अरहर
  4. मँग

प्रश्न 10.
खरीफ की फसल कब बोई तथा कब काटी जाती हैं?
उत्तर:
खरीफ की फसल जून-जुलाई के मध्य बोई जाती हैं तथा सितम्बर से अक्टूबर के मध्य काटी जाती हैं।

प्रश्न 11.
जायद की किन्हीं चार फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. खरबूजा
  2. तरबूजा
  3. ककड़ी
  4. सूरजमुखी

प्रश्न 12.
जायद की फसलें कब पैदा होती हैं?
उत्तर:
जायद की फसलें मार्च से जून के मध्य पैदा होती

प्रश्न 13.
उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण बताइए।
उत्तर:
उपयोग के आधार पर फसलें दो प्रकार की होती हैं-

  • खाद्यान्न फसलें
  • व्यापारिक या नकदी फसलें

प्रश्न 14.
खाद्यान्न फसलों से क्या आशय है?
उत्तर:
वे फसलें जो खाद्य पदार्थों के रूप में उपयोग में ली जाती हैं, खाद्यान्न फसलें कहलाती हैं।

प्रश्न 15.
किन्हीं चार खाद्यान्न फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. चावल
  2. गेहूँ
  3. मक्का
  4. दालें

प्रश्न 16.
किन्हीं चार नकदी फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. गन्ना
  2. जूट
  3. कपास
  4. चाय।

प्रश्न 17.
भारत में कम कृषि उत्पादन के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  • मानसून पर अत्यधिक निर्भरता
  • सिंचाई के साधनों का अभाव

प्रश्न 18.
आकार के आधार पर कृषि जोतों के प्रकार बताइए।
उत्तर:
आकार के आधार पर कृषि जोतों के पाँच प्रकार निम्नलिखित हैं

  1. सीमान्त जोत
  2. लघु जोत
  3. अर्द्ध मध्यम जोत
  4. मध्यम जोत
  5. दीर्घ जोत

प्रश्न 19.
जोतों के आकार को छोटा होने से रोकने के लिए कौन-कौन से दो उपाय किये जा रहे हैं?
उत्तर:

  • चकबन्दी तथा
  • सहकारी खेती

प्रश्न 20.
भारत के किस राज्य में उर्वरकों का प्रयोग सर्वाधिक होता है तथा किसमें सबसे कम?
उत्तर:
पंजाब में उर्वरकों को प्रयोग सर्वाधिक होता है तथा उड़ीसा में सबसे कम।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
सन् 1963 में।

प्रश्न 22.
भारत में हरित क्रान्ति का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1966-67 के मध्य।

प्रश्न 23.
किसान क्रेडिट कार्ड योजना कब शुरू हुई?
उत्तर:
सन् 1998-99 में।

प्रश्न 24.
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
सन् 1999-2000 में।

प्रश्न 25.
भारत में हरित क्रान्ति का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन को।

प्रश्न 26.
श्वेत क्रान्ति के जन्मदाता कौन हैं?
उत्तर:
डॉ. वर्गीज कुरियन

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय में कृषि के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में कृषि का योगदान राष्ट्रीय आय में हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है। केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन के अनुसार सन् 2012-13 में (2004-05 के स्थिर मूल्यों पर) कृषि का राष्ट्रीय आय में योगदान 13:7 प्रतिशत था, जो अन्य विकसित देशों के मुकाबले में अभी बहुत अधिक है। अतः कृषि तथा इसकी सहायक क्रियाएँ राष्ट्रीय आय की एक महत्वपूर्ण स्रोत बनी हुई हैं।

प्रश्न 2.
रोजगार की दृष्टि से भारतीय कृषि के महत्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 48:9 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से अपना रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। कृषि, खेती करना, फसल काटना, छंटाई करना, सिंचाई कार्य आदि में प्रत्यक्ष रूप से तथा पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, वानिकी, खाद्य प्रसंस्करण, फल-सब्जियों की बिक्री हेतु तैयार करना, दालें तैयार करना, पशुचारा तैयार करना, जैविक खाद तैयार करना आदि कार्यों में अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रही है।

प्रश्न 3.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में कृषि के योगदान को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
कृषि का विदेश व्यापार की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण स्थान है। हम कई प्रकार की कृषिगत वस्तुओं का आयात-निर्यात करते हैं। भारत के कुल निर्यातों में कृषि तथा उससे सम्बद्ध क्षेत्र का योगदान लगभग 12.5 प्रतिशत है। भारत से निर्यात की जाने वाली कृषिगत वस्तुओं में चाय, गर्म मसाले, कॉफी, चावल, कपास, तम्बाकू, काजू, फल, सब्जियाँ, फलों का रस, सामुद्रिक पदार्थ, चीनी, माँस से बने पदार्थ शामिल हैं।

प्रश्न 4.
औद्योगिक विकास में कृषि के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक विकास में कृषि का योगदान दो प्रकार से होता है। पहला, कृषि उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध करवाती है, जैसे-सूती वस्त्र उद्योग को कपास, पटसन उद्योग को जूट, चीनी उद्योग को गन्ना, बागवानी उद्योग को फल, वनस्पति तेल उद्योग को तिलहन कृषि से ही प्राप्त होते हैं। दूसरा, कृषि उद्योगों द्वारा तैयार माल को बाजार भी उपलब्ध करवाती है, जैसे-ट्रैक्टर उद्योग, कृषि उपकरण उद्योग, रासायनिक उर्वरक उद्योग, बीज उद्योग, कीटनाशक दवाई उद्योग अपनी वस्तुएँ बेचने के लिए कृषि पर ही निर्भर

प्रश्न 5.
ऋतुओं के आधार पर फसलों के वर्गीकरण को समझाइए।
उत्तर:
ऋतुओं के आधार पर फसलें निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं

1. रबी की फसल – ये फसलें अक्टूबर से नवम्बर के मध्य बोई तथा मार्च-अप्रैल के मध्य काटी जाती हैं, जैसे-गेहूँ, जौ, चना, सरसों आदि।
2. खरीफ की फसल – ये फसलें जून-जुलाई के मध्य बोई तथा सितम्बर से अक्टूबर के मध्य काटी जाती हैं, जैसे-चावल, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, मक्का, कपास, तिल, गन्ना, सोयाबीन, मूंगफली आदि।
3. जायद की फसल – ये फसलें मार्च से जून के मध्य होती हैं, जैसे-खरबूज, तरबूज, ककड़ी, सूरजमुखी, सब्ज़ियाँ आदि।

प्रश्न 6.
उपभोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण बताइए।
उत्तर:
उपभोग के आधार पर फसलों को दो भागों में बाँटा गया है-

1. खाद्यान्न फसलें – वे फसलें जो खाद्य पदार्थों के रूप में उपयोग में ली जाती हैं, उन्हें खाद्यान्न फसलें कहते हैं, जैसे-चावल, गेहूँ, मक्का, दालें, मोटे अनाज आदि।
2. व्यापारिक या नकदी फसलें – वे फसलें जो लाभ कमाने के लिए विक्रय के उद्देश्य से उगायी जाती हैं, उन्हें व्यापारिक या नकदी फसलें कहते हैं, जैसे-तिलहन, गन्ना, जूट, कपास, चाय, कॉफी, तम्बाकू आदि।

प्रश्न 7.
भारतीय कृषि में उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारत में हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग में भारी वृद्धि हुई है। रासायनिक उर्वरकों में मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश का उपयोग अधिक मात्रा में होता है। वर्तमान में उर्वरकों के उपयोग का स्तर 239:59 लाख मीट्रिक टन हो गया है, किन्तु आज भी उर्वरकों के उपयोग के मामले में भारत विकसित देशों से पीछे है। उर्वरक भूमि की उर्वरी शक्ति में वृद्धि करते हैं तथा कीटनाशके फसलों को मौसमी बीमारियों एवं कीटाणुओं से बचाते हैं। इसलिए देश में उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग में निरन्तर वृद्धि हो रही

प्रश्न 8.
सरकार द्वारा फसलों के समर्थन मूल्य घोषित करने के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समर्थन मूल्य घोषित करने का एक उद्देश्य तो किसानों के हितों की रक्षा करना होता है, जिससे किसान बाजार में फसल का मूल्य कम होने पर सरकार को अपनी फसल घोषित मूल्य पर बेचकर हानि से बच जाते हैं तथा दूसरी ओर सरकार को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए अनाज तथा अन्य कृषिगत वस्तुएँ न्यूनतम मूल्य पर खरीदने का अवसर मिल जाता है, जिससे सरकार बफर स्टॉक बनाकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करती है एवं कीमतों पर नियन्त्रण बनाये रखती है।

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना क्या है ?
उत्तर:
सन् 1999-2000 में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना शुरू की गयी। इस योजना का उद्देश्य फसल वाले मौसम में प्राकृतिक आपदाओं, कीटों तथा बीमारियों से फसलों को होने वाली हानि की भरपाई करना है। इसके अन्तर्गत किसानों को वित्तीय सहायता दी जाती है। यह योजना देश के 25 राज्यों तथा 2 केन्द्र शासित प्रदेशों में संचालित है। लेकिन सभी किसानों तक इसके लाभ पहुँचाने के लिए अभी भी इसके विस्तार की आवश्यकता है।

प्रश्न 10.
भारतीय कृषि में साख की क्या आवश्यकता है? समझाइए।
उत्तर:
भारतीय कृषकों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अतः उन्हें ऋण लेने की आवश्यकता बनी रहती है। किसान बीज, खाद, भूमि सुधार या अन्य पारिवारिक कार्यों हेतु ऋण लेते हैं। यदि किसानों के लिए सरकार द्वारा साख की उचित व्यवस्था नहीं की जाती तो वे जमींदारों एवं साहूकारों के चंगुल में फंस सकते हैं।

प्रश्न 11.
बहुफसल कार्यक्रम क्या है?
उत्तर:
बहुफसल कार्यक्रम के अन्तर्गत कम समय में पककर तैयार होने वाली फसलें बोई जाती हैं, जिससे एक ही भूमि पर एक वर्ष में एक से अधिक फसलें बोकर कृषि उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। भारत के कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए इससे महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 12.
भू-संरक्षण कार्यक्रम क्या है?
उत्तर:
भू-संरक्षण कार्यक्रम को कृषि योग्य भूमि के विस्तार के लिए तैयार किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कृषि योग्य भूमि के क्षरण को रोकने तथा बंजर पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए शोध कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई, जिससे भू-क्षरण तथा भूमि को बंजर होने से रोकने में कुछ हद तक सफलता भी मिली है।

प्रश्न 13.
नाबार्ड पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नाबार्ड का पूरा नाम राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक है। इसकी स्थापना 12 जुलाई, 1982 को हुई। यह कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए साख की व्यवस्था करता है तथा ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न वित्तीय संस्थाओं का समन्वये करता है।

प्रश्न 14.
हरित क्रान्ति के प्रभाव बताइए अथवा हरित क्रान्ति का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति से भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनेक प्रभाव पड़े हैं जिनमें कृषि क्षेत्र का विस्तार, कृषि उत्पादन में वृद्धि, उत्पादकता में वृद्धि एवं फसलों के प्रारूप में परिवर्तन हुए हैं। हरित क्रान्ति के कारण कृषकों में व्यावसायिक दृष्टिकोण का विकास हुआ है। गेहूँ तथा अन्य खाद्य, फसलों के उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति से उन्नत बीजों का प्रयोग, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग में वृद्धि एवं यंत्रीकरण का अधिक उपयोग होने से कृषि विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई है। एवं निर्यातों में वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति के कारण खेतिहर मजदूरों की स्थिति में सुधार हुआ है। इस प्रकार हरित क्रान्ति का कृषि क्षेत्र के विकास पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।

प्रश्न 15.
‘ऑपरेशन फ्लड’ क्या है? समझाइए।
उत्तर:
‘ऑपरेशन फ्लड’ दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में हुई प्रगति से सम्बन्धित है। इसकी शुरुआत गुजरात से हुई और यह धीरे-धीरे सम्पूर्ण देश में फैल गया। ऑपरेशन फ्लड के माध्यम से दूध का उत्पादन चार गुना तक बढ़ गया। इस कार्यक्रम में दूध को ग्रामीण स्तर पर एकत्रित कर प्रसंस्कृत कर लिया जाता है। इसके बाद इसे शहरों में सहकारिता के माध्यम से बेचा जाता है।

प्रश्न 16.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् लागू किये गये भू-सुधार कार्यक्रम कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
कृषिगत उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने तथा किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार के लिए निम्नलिखित कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया गया-

  1. जर्मीदारी उन्मूलन
  2. मध्यस्थों की समाप्ति
  3. लगान नियमन
  4. भू-धारण की सुरक्षा
  5. काश्तकारों को भू-स्वामी बनने का अधिकार देना
  6. जोतों की सीमा का निर्धारण
  7. चकबन्दी
  8. सहकारी खेती
  9. भूमिहीन मजदूरों को भूमि वितरण\
  10. अनुसूचित जाति जनजाति के काश्तकारों की भूमि को अन्य जातियों के पक्ष में हस्तान्तरण पर रोक
  11. भू-अभिलेख को कम्प्यूटरीकृत करना

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रान्ति के प्रमुख तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति के प्रमुख तत्व:

1. अधिक उपज देने वाली फसलों को कार्यक्रम – यह कार्यक्रम 1970-71 में 6 फसलों पर लागू किया गया, जिसमें धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा व रागी सम्मिलित हैं। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सबसे अधिक सफलता गेहूँ के क्षेत्र में मिली। गेहूँ की मैक्सिन किस्में, चावल, चीनी व कुछ भारतीय विकसित किस्में तथा मक्का, ज्वार, बाजरा व रागी की देश में ही विकसित किस्में प्रयोग में ली गयीं। इस कार्यक्रम में कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग किया गया।

2. बहु-फसल कार्यक्रम – हरित क्रान्ति के अन्तर्गत एक ही भूमि पर एक वर्ष में एक से अधिक फसलें पैदा करने के लिए कम समय में पकने वाली फसलों को बोया गया तथा एक से अधिक फसलें उगाई गर्थी।

3. रासायनिक खाद – इस क्रान्ति में कृषि उपज को बढ़ाने के लिए यूरिया, पोटाश, फॉस्फोरस आदि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग पर बल दिया गया।

4. उन्नत बीज – अधिक उपज एवं कृषि गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया।

5. कृषि यन्त्रीकरण को बढ़ावा – हरित क्रान्ति के अन्तर्गत कृषि विकास हेतु नई तकनीकी के कृषि उपकरणों का प्रयोग किया गया, जिससे फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक के कार्यों में आसानी हो सके।

6. पौध संरक्षण कार्यक्रम – इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भूमि तथा फसलों पर दवा छिड़कने का कार्य किया गया, जिससे टिड्डी दलों को भूमि या आकाश में ही नष्ट किया जाने लगा

7. कृषि शिक्षा तथा शोध – कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कृषि शिक्षा का विस्तार तथा शोध कार्यक्रम प्रारम्भ किए गये।

8. भू-संरक्षण कार्यक्रम – इसमें भूमि के क्षरण को रोकने तथा बंजर भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए शोध कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई।

9. कृषि मूल्य आयोग – कृषकों को उचित मूल्य प्राप्त हो सके इसकी गारंटी के लिए सरकार द्वारा 1965 में कृषि मूल्य आयोग की स्थापना की गई।

10. फसलों का बीमा – प्राकृतिक प्रकोपों से होने वाली क्षति की भरपाई के लिए कृषि फसलों का बीमा करने का प्रावधान किया गया।

प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति की सीमाओं को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन इसकी कुछ कमियाँ व सीमाएँ भी सामने आर्थी, जो निम्नलिखित हैं

1. चुनिन्दा फसलों तक सीमित – हरित क्रान्ति का गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा तथा मक्का के उत्पादन पर विशेष प्रभाव पड़ा। विशेष रूप से गेहूँ उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, लेकिन अन्य फसलों के उत्पादने पर इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ा।

2. सीमित क्षेत्रों पर ही प्रभाव – हरित क्रान्ति का प्रभाव पंजाब व हरियाणा जैसे सिंचित राज्यों पर अधिक पड़ा। देश के पिछड़े तथा असिंचित क्षेत्रों में यह क्रान्ति सफल सिद्ध नहीं हो सकी।

3. यन्त्रीकरण के दुष्परिणाम – हरित क्रान्ति के कारण यन्त्रीकरण को बढ़ावा दिया गया, जिससे श्रमिकों का कार्य छूट गया तथा वे बेरोजगार होने लगे, इस प्रकार बेरोजगारी में वृद्धि हुई

4. आय की असमानता में वृद्धि – इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप धनी किसानों ने नयी कृषि तकनीकी का उपयोग किया तथा वे और भी सम्पन्न हो गये, लेकिन गरीब किसान इसका अपेक्षित लाभ नहीं उठा सके। इसी प्रकार, कुछ प्रदेशों में हरित क्रान्ति सफल रही, जबकि शेष प्रदेशों में किसानों की दशा में कोई खास सुधार नहीं हो सका।

5. उर्वरक प्रयोग के दुष्परिणाम – हरित क्रान्ति के अन्तर्गत उर्वरकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग पर बल दिया गया। इससे भूमि अनुपजाऊ होने लगी तथा भू-जल, पर्यावरण एवं अन्य जीवों को भी हानि पहुँची।

6. भू-जल स्तर में कमी – हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप नलकूपों, ट्यूबवैलों आदि के माध्यम से भू-जल का अत्यधिक दोहन किया गया, जिससे भू-जल का स्तर नीचे गिरता चला गया।

7. पूँजीवादी खेती को बढ़ावा – उन्नत बीज, रासायनिक खाद, कृषि औजार आदि सभी बहुत खर्चीले थे, जिसके कारण खेती में पूँजीवाद को बढ़ावा मिला।

8. संस्थागत परिवर्तनों की उपेक्षा – हरित क्रान्ति की एक महत्वपूर्ण कमी यह थी कि इसमें तकनीकी परिवर्तनों पर तो अधिक जोर दिया गया, लेकिन भूमि सुधार कार्यक्रमों को अनदेखा कर दिया गया।

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