RBSE Solutions for Class 9 Social Science Chapter 4 भारत में सामाजिक सुधार और धार्मिक पुनर्जागरण

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Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 9
Subject Social Science
Chapter Chapter 4
Chapter Name भारत में सामाजिक सुधार और धार्मिक पुनर्जागरण
Number of Questions Solved 66
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Chapter 4 भारत में सामाजिक सुधार और धार्मिक पुनर्जागरण

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्य समाज की स्थापना किसके द्वारा की गई ?
(अ) राजा राममोहन राय
(ब) केशवचन्द्र सेन
(स) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(द) देवेन्द्रनाथ टैगोर।
उत्तर:
(स) स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रश्न 2.
19वीं सदी के भारतीय नवजागरण का अग्रदूत किसको कहा है ?
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(स) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
(द) राजा राममोहन राय।
उत्तर:
(द) राजा राममोहन राय।

प्रश्न 3.
संवाद कौमुदी का प्रकाशन किसने किया ?
(अ) राजा राममोहन राय
(ब) स्वामी विवेकानन्द
(स) रामकृष्ण परमहंस
(द) देवेन्द्रनाथ टैगोर
उत्तर:
(अ) राजा राममोहन राय

प्रश्न 4.
ब्रह्म समाज की स्थापना कब की गई ?
(अ) 1862 में.
(ब) 1828 में.
(स) 1875 में.
(द) 1893 में.
उत्तर:
(ब) 1828 में.

प्रश्न 5.
स्वामी दयानन्द सरस्वती के बचपन का नाम था
(अ) नरेन्द्रनाथ दत्त
(ब) मूलशंकर
(स) जटाशंकर
(द) भवानीशंकर।
उत्तर:
(ब) मूलशंकर

प्रश्न 6.
अणुव्रत आन्दोलन के प्रणेता हैं
(अ) दयानन्द सरस्वती
(ब) विवेकानन्द
(स) केशवचन्द्र सेन
(द) आचार्य तुलसी।
उत्तर:
(द) आचार्य तुलसी।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्द का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
12 जनवरी 1863 ई. को।

प्रश्न 2.
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
गुजरात के मोरवी क्षेत्र के टंकारा में।

प्रश्न 3.
आदि ब्रह्मसमाज की स्थापना किसने की ?
उत्तर:
देवेन्द्रनाथ टैगोर ने।

प्रश्न 4.
स्वामी दयानन्द सरस्वती का देहावसान कहाँ हुआ ?
उत्तर:
अजमेर में।

प्रश्न 5.
सती प्रथा विरोधी कानून कब पारित किया गया ?
उत्तर:
1829 ई. में।

प्रश्न 6.
अणुव्रत आन्दोलन किसने शुरू किया ?
उत्तर:
आचार्य श्री तुलसी ने।

प्रश्न 7.
अणुव्रत का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अणु अर्थात् छोटे-छोटे, व्रत्त अर्थात् नियम। नैतिकता के छोटे-छोटे नियम।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शुद्धि आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की। स्वामी दयानन्द ने छुआछूत, बाल विवाहे, कन्या वध, पर्दा प्रथा, मूर्ति पूजा, धार्मिक अंधविश्वास, श्राद्ध आदि का विरोध किया। इन्होंने विशेष परिस्थितियों में अन्य धर्म स्वीकार करने वाले हिन्दुओं का वैदिक रीति से शुद्धिकरण कर पुनः हिन्दू धर्म में शामिल करने हेतु एक आन्दोलन चलाया जिसे शुद्धि आन्दोलन के नाम से जाना गया।

प्रश्न 2.
रामकृष्ण परमहंस कौन थे ?
उत्तर:
रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानन्द के गुरु थे। ये कलकत्ता में दक्षिणेश्वर स्थित काली मंदिर में पुजारी थे। कहा जाता है कि इन्होंने काली माता, कृष्ण, ईसा मसीह एवं बुद्ध के दर्शन किए थे। इनका वास्तविक नाम गदाधार चट्टोपाध्याय था। स्वामी विवेकानन्द दक्षिणेश्वर के स्वामी के नाम से प्रसिद्ध रामकृष्ण परमहंस (1834-1886) के शिष्य थे। इनसे दीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् नरेन्द्रनाथ अर्थात् विवेकानन्द विविदिशानन्द के नाम से जाने गये। इनकी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए स्वामी विवेकानन्द ने कोलकाता के बेल्लूर के पास 5 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसकी शाखाएँ भारत सहित समस्त विश्वभर में फैली हुई हैं।

प्रश्न 3.
राजा राममोहन राय का राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान बताइए।
उत्तर:
राजा राममोहन राय को भारतीय राष्ट्रवाद का जनक, आधुनिक भारत का पिता तथा नए युग का अग्रदूत भी कहा जाता है। इन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की। इन्होंने भारत में ईसाई धर्म के प्रभुत्व को रोकने की कोशिश की। इन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों यथा सतीप्रथा, बहुपत्नी प्रथा, जातिवाद आदि का विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया। इन्होंने अंग्रेज गर्वनर जनरल बैंटिक से मिलकर 1829 ई. में सती प्रथा को प्रतिबन्धित करने के लिए अधिनियम पारित करवाया। इन्होंने शासकीय भाषा के लिए फारसी के स्थान पर अंग्रेजी का समर्थन किया ताकि लोगों में नवजागरण आ सके। राष्ट्रीय भावना के प्रसार की दृष्टि से राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी व मिरातुल अखबार प्रकाशित करवाया।

प्रश्न 4.
स्वामी विवेकानन्द की प्रारम्भिक जानकारी दीजिए।
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय संस्कृति, धर्म एवं समाज की अच्छाइयों से सम्पूर्ण विश्व को अवगत कराया। इनका जन्म कोलकाता के विश्वनाथ दत्त के परिवार में 12 जनवरी 1863, को हुआ। इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इन पर अपनी माता भुवनेश्वरी देवी का विशेष प्रभाव था। इन्होंने भारतीय दर्शन के साथ-साथ पश्चिमी विचारों का भी अध्ययन किया। प्रारम्भ से ही इनकी रुचि अध्यात्म के प्रति थी। सन् 1881 में विवेकानन्द की गुरु रामकृष्ण परमहंस से भेंट हुई जिनके ये भक्त बन गए। गुरु रामकृष्ण से दीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इनका नाम विविदिशानन्द हो गया।

प्रश्न 5.
आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्य-

  1. वैदिक धर्म के शुद्ध रूप की पुनः स्थापना करना
  2. भारत को सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक रूप से एक सूत्र में बाँधना
  3. भारतीय सभ्यता व संस्कृति पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव को रोकना
  4. पौराणिक विश्वासों, मूर्तिपूजा एवं अवतारवाद का विरोध करना
  5. हिन्दी व संस्कृत भाषा के महत्व एवं प्रसार में वृद्धि करना
  6. सभी की उन्नति में अपनी उन्नति तथा सभी की भलाई में अपनी भलाई समझना
  7. स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन प्रदान करना

प्रश्न 6.
अणुव्रत आन्दोलन क्या है ?
उत्तर:
अणुव्रत आन्दोलन एक नैतिकता का आन्दोलन है, जो किसी भी धर्म यो सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ नहीं है। इस आन्दोलन के जनक जैन तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री तुलसी थे। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, समाज या जाति का हो, वह अणुव्रती बन सकता है। यह विशुद्ध रूप से मानव कल्याण का एक अहिंसक आन्दोलन है। इस आन्दोलन ने जातिवाद, साम्प्रदायिकता, छुआछूत का विरोध किया तथा नारी जाति को सम्मान दिया। यह देश में नैतिकता के प्रसार व चारित्रिक सुदृढ़ता के विकास को आन्दोलन है। यह एक मानवतावादी आन्दोलन है जो व्यसन मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। यह दबाव मुक्त स्वेच्छा से अणुव्रती बनने का आन्दोलन है।

प्रश्न 7.
ब्रह्म समाज द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
20 अगस्त 1828 ई. को राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की ब्रह्म समाज मूलतः वेद और उपनिषदों पर आधारित है। यह सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। राजा राममोहन राय के नेतृत्व में ब्रह्म समाज ने 1829 ई. में सती प्रथा विरोधी कानून बनवाकर इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित करवाया। इसके अतिरिक्त छुआछूत, बालविवाह, बहुविवाह, नशा, मूर्तिपूजा आदि का विरोध किया। ब्रह्म समाज कर्मफल के सिद्धान्त में विश्वास करता था। यह समाज मूर्ति स्थापना, बलि देना एवं अन्य किसी भी धर्म की निन्दा करने का भी विरोध करता था।

प्रश्न 8.
स्वामी दयानन्द सरस्वती की राष्ट्रीय आन्दोलन में भूमिका बताइए।
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 ई. को आर्य समाज की स्थापना की। वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया और स्वराज्य को अपने कार्य का आधार बनाया। इनका मुख्य उद्देश्य हिन्दू समाज व धर्म में फैली हुई बुराइयों को दूर करना था। इन्होंने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाने का कार्य किया।

इन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए स्वराज्य शब्द को प्रथम बार प्रयोग किया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना एवं स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया। इन्होंने कहा था कि “स्वराज्य विदेशी राज्य से सदैव अच्छा होता है, चाहे उसमें कितनी ही बुराइयाँ क्यों न हों।” इन्होंने चार स्व की अवधारणा दीं, ये हैं-स्व-राज्य, स्व-धर्म, स्व-देशी एवं स्व-भाषा।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी में भारतीय नवजागरण के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी में भारतीय नवजागरण के प्रमुख कारण

1. 18 व 19वीं शताब्दी में जाति प्रथा पर आधारित भारतीय समाज अनेक जातियों एवं उपजातियों में बँटा हुआ था। ऊँची जाति के लोग अन्य जातियों से भेदभाव करते थे और उन्हें अछूत मानते थे। मुस्लिम व ईसाई धर्म प्रचारकों ने इस बात का लाभ उठाकर उनका धर्म परिवर्तन कराना प्रारम्भ कर दिया। तब हिन्दू धर्म प्रचारकों की आँखें खुली और उन्होंने भारतीय समाज एवं धर्म में नयी प्रेरणी जागृत की। इससे इस आन्दोलन को बढ़ावा मिला।

2. भारत के तत्कालीन समाचार पत्रों ने राष्ट्रीय भावनाओं को उभारने का कार्य किया। समाचार-पत्रों एवं साहित्य ने यहाँ की जनता में राष्ट्रप्रेम का मंत्र फेंका। प्रमुख साहित्य में आनन्दमठ, संवाद कौमुदी एवं मराठी उपन्यास ‘शिवाजी’ का नाम प्रमुख है।

3. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत पर अधिकार स्थापित कर भारत का इतना अधिक आर्थिक शोषण किया कि भारत दरिद्रता के कगार पर पहुँच गया। ऐसी परिस्थिति में भारतीयों ने परिवर्तन की अवधारणा को महसूस किया तथा ब्रिटिश आचार-विचारे का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया।

4. भारत में छापेखाने की शुरूआत होने से सन् 1875 तक देशी भाषाओं एवं अंग्रेजी भाषा के समाचार-पत्र पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगीं। इन्होंने भारतीयों को अपनी सामाजिक बुराइयों से अवगत कराया।

5. भारत के इस जागरण में भारतीय समाज और धार्मिक विचारधारा में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ जिनका श्रेय ब्रह्म समाज, आर्य समाज व रामकृष्ण मिशन आदि को है। इन संस्थाओं ने भारतीय समाज एवं धर्म में व्याप्त कुरीतियों का विरोध किया।

6. इस समय राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले एवं केशवचन्द्र सेन आदि समाज सुधारक हुए, जिन्होंने भारतीय समाज एवं धर्म में एक नयी चेतना का संचार किया।

7. 19वीं शताब्दी के मध्य में बंगाल में बुद्धिजीवियों ने कलकत्ता के हिन्दू कॉलेज के माध्यम से लोगों में परिवर्तन की भावना को जन्म दिया।

प्रश्न 2.
राजा राममोहन राय के जीवन व शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजा राममोहन राय का जीवन परिचय

राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 ई. को बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गाँव में हुआ। इन्हें अरबी, संस्कृत, पारसी, बंगला के अतिरिक्त लेटिन, ग्रीक, हिब्रू आदि भाषाओं का ज्ञान था। ये आधुनिक भारत के प्रथम समाज सुधारक थे। इन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का जनक तथा आधुनिक भारत का पिता भी कहा जाता है।

राजा राममोहन राय ने सतीप्रथा, बहुपत्नी प्रथा, जातिवाद आदि का विरोध किया एवं विधवा विवाह का समर्थन किया। इन्हें अपनी भाभी को सती होते देखकर सती प्रथा के विरोध की प्रेरणा मिली और उन्होंने अंग्रेज गवर्नर विलियम बैंटिक से 1829 ई. में सती प्रथा विरोधी कानून बनवाकर इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित करवा दिया। वे पाश्चात्य ज्ञान व शिक्षा के अध्ययन को भी भारत के विकास और प्रगति के लिए आवश्यक मानते थे।

इन्होंने कोलकाता में वेदान्त कॉलेज, इंगलिश स्कूल एवं हिन्दू कॉलेज की स्थापना की। इन्होंने बंगला में संवाद कौमुदी, फारसी में मिरातुल अखबार व अंग्रेजी भाषा में ब्रह्मनीकल पत्रिका प्रकाशित कीं। 20 अगस्त 1828 ई. को राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना कलकत्ता में की। 1833 ई. में इंग्लैण्ड के ब्रिस्टल नामक नगर में डॉ. कारपेन्टर के निवास पर इनकी मृत्यु हो गयी। राजा राममोहन राय की प्रमुख शिक्षाएँ/ब्रह्म समाज की शिक्षाएँ।

  1. ईश्वर एक है वह सृष्टि का निर्माता, पालक, अनादि, अनन्त एवं निराकार है।
  2. ईश्वर की उपासना बिना किसी धर्म, जाति, सम्प्रदाय के आध्यात्मिक रीति से की जानी। चाहिए।
  3. आत्मा अजर एवं अमर है। वह ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है।
  4. आध्यात्मिक विकास के लिए प्रार्थना अति आवश्यक है।
  5. पापकर्म के प्रायश्चित एवं बुरी प्रवृत्तियों के त्याग से ही मुक्ति सम्भव है।
  6. ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं और वह सभी की प्रार्थना समान रूप से स्वीकार करता है।
  7. कर्मफल के सिद्धान्त में विश्वास रखना चाहिए।
  8. सत्य की खोज में विश्वास रखना चाहिए।

प्रश्न 3.
स्वामी दयानन्द सरस्वती के जीवन व सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवन-परिचय स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 1824 ई. में गुजरात में मोरवी क्षेत्र के टंकारा नामक स्थान पर हुआ था। इनके बचपन का नाम मूलशंकर था। एक दिन उन्होंने मंदिर में एक चूहे को शिवलिंग पर चढ़कर प्रसाद खाते हुए देखा तो इनका मूर्तिपूजा से विश्वास उठ गया। 21 वर्ष की आयु में इन्होंने घर छोड़ दिया तथा मथुरा आ गये। मथुरा में इन्होंने स्वामी विरजानन्द जी को अपना गुरू बनाया और वेदों की शिक्षा प्राप्त की। स्वामी विरजानन्द ने दयानन्द से गुरु दक्षिणा के रूप में हिन्दू धर्म की कुरीतियों एवं बुराइयों से समाज को मुक्त कराने का कार्य माँगा।

इन्होंने ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया। स्वामी दयानन्द ने स्त्रीशिक्षा व समानता की वकालत की और छुआछूत, जातिभेद, बालविवाह, पर्दाप्रथा आदि का विरोध किया। इन्होंने विधवा पुनर्विवाह व अन्तर्जातीय विवाह का समर्थन किया। दयानन्द ने शुद्धि आन्दोलन चलाकर हिन्दू धर्म का परित्याग कर अन्य धर्म अपनाने वालों को पुनः हिन्दू धर्म में सम्मिलित किया। उन्होंने 1874 ई. में अपनी प्रसिद्ध रचना ‘सत्यार्थ प्रकाश का लेखन किया तथा 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की।

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने आजादी प्राप्त करने के लिए ‘स्वराज्य’ शब्द का प्रथम बार प्रयोग किया। 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में स्वामी दयानन्द सरस्वती की मृत्यु हो गयी। स्वामी दयानन्द सरस्वती के सिद्धान्त/आर्य समाज
के सिद्धान्त

  1. वेदों की सत्यता पर बल।
  2. वैदिक रीति से हवन तथा मंत्र पाठ करना।
  3. सत्य को ग्रहण करने तथा असत्य को छोड़ने पर बल दिया।
  4. अविद्या का नाश, विद्या की वृद्धि करनी चाहिए।
  5. स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन देना।
  6. ईश्वर सर्वशक्तिमान, निराकार एवं नित्य है।
  7. पौराणिक विश्वासों, मूर्तिपूजा एवं अवतारवाद का विरोध करना।
  8. सभी व्यक्तियों से धर्मानुसार, प्रेमपूर्वक एवं योग्य व्यवहार करना।
  9. सभी लोगों की उन्नति में अपनी उन्नति तथा सभी की भलाई में अपनी भलाई समझना।
  10. संस्कृत एवं हिन्दी भाषा के महत्व एवं प्रसार में वृद्धि करना।

प्रश्न 4.
अणुव्रत आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
अणुव्रत आन्दोलन-अणुव्रत आन्दोलन नैतिकता का वह आन्दोलन है, जो किसी धर्म या सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ नहीं है। इसके प्रतिपादक जैन श्वेताम्बर धर्म के तेरापंथ सम्प्रदाय के 9वें आचार्य श्री तुलसी थे। इन्होंने अणुव्रत के नियमों एवं व्रतों का पालन किया तथा अणुव्रत के 75 नियमों की जानकारी दी। यह आन्दोलन किसी भी धर्म, समाज, जाति से जुड़ा हुआ नहीं है। कोई भी व्यक्ति अणुव्रती बन सकता है। अणुव्रत ने जातिवाद, साम्प्रदायिकता, छुआछूत आदि का विरोध किया। यह विशुद्ध रूप से देश में नैतिकता के प्रसार व चारित्रिक सुदृढ़ता के विकास का आन्दोलन है। यह नारी जाति को सम्मान देने वाला आन्दोलन है। यह व्यसन मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यह विशुद्ध रूप में मानव कल्याण की अहिंसक आन्दोलन है।

अणुव्रत आचार संहिता-अणुव्रत आन्दोलन के नियम व्यापारी, उद्योगपति, वकील, चिकित्सक, अभियंता, राजनेता आदि के लिए अलग-अलग बने हुए हैं। वे अपनी रुचि के अनुरूप इन्हें अपना सकते हैं। इन समस्त वर्गों के समस्त नियमों को मूल रूप से संकलित कर 11 नियमों की एक आचार संहिता निर्धारित की है जो अग्र प्रकार से है

1. किसी भी निर्दोष प्राणी का संकल्पपूर्वक वध नहीं करूंगा-

  • आत्महत्या नहीं करूंगा
  • भ्रूण हत्या नहीं करूंगा

2. मैं आक्रमण नहीं करूंगा-

  • आक्रामक नीति का समर्थन नहीं करूंगा,
  • विश्वशान्ति एवं नि:शस्त्रीकरण की स्थापना के लिए प्रयत्न करूगा

3. मैं हिंसात्मक एवं तोड़फोड़ मूलक गतिविधियों में भाग नहीं लूंगा।

4. मैं धार्मिक सहिष्णु रहूँगा तथा साम्प्रदायिक उत्तेजना नहीं फैलाऊँगा।

5. मैं मानवीय एकता में विश्वास करूंगा

  • जाति, रंग आदि के आधार पर किसी को उच्च या निम्न नहीं मानूंगा।
  • अस्पृश्यता नहीं मानूंगा।

6. मैं व्यवसाय और व्यवहार में प्रामाणिक रहूँगा-

  • अपने लाभों के लिए दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा।
  • छलपूर्ण व्यवहार नहीं करूंगा।

7. मैं ब्रह्मचर्य की साधना एवं संग्रह की सीमा का निर्धारण करूंगा।

8. मैं सामाजिक बुराइयों को आश्रय नहीं दूंगा।

9. मैं चुनाव के सम्बन्ध में अनैतिक आचरण नहीं करूंगा।

10. मैं व्यसनमुक्त जीवन जीऊँगा-मादक व नशीले पदार्थों, शराब, गाँजा, चरस, हैरोइन, भाँग व तम्बाकू आदि का सेवन नहीं करूंगा।

11. मैं पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूक रहूँगा,

  • हरे-भरे वृक्ष नहीं काटुंगा।
  • जल व विद्युत आदि का अपव्यय नहीं करूंगा।

प्रश्न 5.
भारतीय समाज, धर्म और राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति स्वामी विवेकानन्द का योगदान बताइए।
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द का योगदान-स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 ई. को कोलकाता के विश्वनाथ दत्त के परिवार में हुआ। इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। 1881 ई. में विवेकानन्द दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस के अनुयायी हो गये और उनका नाम भी बदला गया अब वे नरेन्द्र नाथ दत्त से विविदिशानन्द हो गये। स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय धर्म की नई व्याख्या की जिसका सार था-“धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्व का विकास है।

धर्म न तो पुस्तकों में और न धार्मिक सिद्धान्तों में है, वह तो केवल अनुभूति में निवास करता है। वह जीवन का अत्यन्त स्वाभाविक तत्व है। 1893 ई. में उन्होंने शिकागो के विश्वस्तरीय धार्मिक सम्मेलन को सम्बोधित किया तथा वहाँ के जनसमुदाय को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने धार्मिक तथा सामाजिक उत्थान हेतु ‘रामकृष्ण मठ व मिशन’ की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन के द्वारा विश्व स्तर पर रामकृष्ण परमहंस के जीवन एवं विचारों को वृहद् रूप से लोगों तक पहुँचाने का काम किया गया है।

यह मिशन केवल ऐसे आदर्शों व सिद्धान्तों का प्रचार करता है, जिसे सभी धर्मों, संस्कृतियों और वातावरण के लोग अपना सकें। आजकल मिशन की शाखाएँ, उपदेश, शिक्षा, चिकित्सा व अकाल, बाढ़, भूकम्प और संक्रामक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की सेवा का कार्य कर रही हैं। स्वामी विवेकानन्द ने समाज सेवा को विशेष स्थान दिया। वे शिक्षा, निर्धनता तथा अशिक्षा के विरोधी थे।

वे छुआछूत को गलत मानते थे। उन्होंने जन-कल्याण के लिए संगठित प्रयत्नों पर जोर दिया, इतना ही नहीं उन्होंने राष्ट्रीयता के निर्माण में भी योगदान दिया। उनका कहना था “दुर्बलता पाप है, मृत्यु है तथा भय सबसे बड़ा रोग है।” उन्होंने भारत की राष्ट्रीयता का पोषण किया और भारत माँ की पूजा के लिए प्रेरित किया। युवकों को देश के प्रति समर्पण भाव रखने की प्रेरणा प्रदान की। इनके योगदान को देखते हुए सुभाषचन्द्र बोस ने स्वामी विवेकानन्द को आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का ‘आध्यात्मिक पिता’ कहा।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण भारत में शैव के अनुयानियों को कहा जाता था
(अ) लिंगायत
(ब) नयनार
(स) आलवार
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) नयनार

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा मत मध्यकालीन भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय था|
(अ) शैवमत
(ब) वैष्णव मत
(स) सूफीमत
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ब) वैष्णव मत

प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना किसके द्वारा की गई?
(अ) राजा राममोहन राय
(ब) केशवचन्द्र सेन
(स) रामकृष्ण परमहंस
(द) भवानी शंकर।
उत्तर:
(अ) राजा राममोहन राय

प्रश्न 4.
सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ के लेखक थे
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) रामकृष्ण परमहंस
(स) केशवचन्द्र सेन
(द) स्वामी दयानन्द सरस्वती।
उत्तर:
(द) स्वामी दयानन्द सरस्वती।

प्रश्न 5.
निम्न में से किस महान समाज सुधारक ने स्वराज्य शब्द का प्रथम बार प्रयोग किया था|
(अ) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(ब) रामकृष्ण परमहंस
(स) स्वामी विवेकानन्द
(द) राजा राममोहन राय।
उत्तर:
(अ) स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रश्न 6.
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक थे
(अ) स्वामी विवेकानन्द
(ब) रामकृष्ण परमहंस
(स) दयानंद सरस्वती
(द) केशव चन्द्र सेन।
उत्तर:
(अ) स्वामी विवेकानन्द

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आलवार कौन थे?
उत्तर:
दक्षिण भारत में विष्णु के अनुयायी आलवार कहलाते थे।

प्रश्न 2.
भक्ति आन्दोलन में सम्मिलित किन्हीं दो सन्तों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • रामानन्द
  • चैतन्य महाप्रभु

प्रश्न 3.
सूफी मत से सम्बन्धित संतों को सूफी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि सूफी संत ऊन की तरह सफेद वस्त्रे का लबादा पहनते थे। इसलिए उन्हें सूफी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
किन्हीं दो प्रमुख सूफी संतों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • शेख मुईनुद्दीन चिश्ती
  • शेख हमीदुद्दीन नागौरी।

प्रश्न 5.
किन्हीं दो सूफी सम्प्रदायों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • चिश्ती सम्प्रदाय
  • सुहरावर्दी सम्प्रदाय।

प्रश्न 6.
राजा राममोहन राय का जन्म कब व कहाँ हुआ?
उत्तर:
22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर गाँव में।

प्रश्न 7.
ब्रह्म समाज की स्थापना कब किसने की?
उत्तर:
ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राम मोहन राय ने 20 अगस्त, 1828 ई. को की।

प्रश्न 8.
ब्रह्म समाज मूलतः किस पर आधारित है ?
उत्तर:
ब्रह्म समाज मूलतः वेद और उपनिषदों पर आधारित है।

प्रश्न 9.
किस समाज सुधारक के प्रयासों से 1829 ई. में सती प्रथा विरोधी कानून का निर्माण हुआ?
उत्तर:
राजा राममोहन राय के प्रयासों से।

प्रश्न 10.
राजा राममोहन राय की मृत्यु कब व कहाँ हुई?
उत्तर:
1833 ई. में इंग्लैण्ड के ब्रिस्टल नगर में।

प्रश्न 11.
भारतीय ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की?
उत्तर:
केशव चन्द्र सेन ने।

प्रश्न 12.
प्रार्थना समाज की स्थापना कब व किसने की?
उत्तर:
1867 ई. में आत्माराम पाण्डुरंग ने।

प्रश्न 13.
नए युग का अग्रदूत किस समाज सुधारक को कहा जाता है ?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को।

प्रश्न 14.
सर्वप्रथम हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में किसने स्वीकार किया ?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने।

प्रश्न 15.
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किस प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना हिन्दी भाषा में की थी?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1874 ई० में प्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी भाषा में की थी।

प्रश्न 16.
आर्य समाज की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
10 अप्रैल, 1875 को।

प्रश्न 17.
आर्य समाज के कोई दो सिद्धान्त बताइए।
उत्तर:

  • वेदों की सत्यता पर बल
  • ईश्वर सर्वशक्तिमान, निराकार व नित्य है।

प्रश्न 18.
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कौन-कौनसी बुराइयों का विरोध किया ?
उत्तर:
छुआछूत, बाल विवाह, कन्या वध, पर्दा-प्रथा, श्राद्ध एवं मूर्तिपूजा का।

प्रश्न 19.
किस समाज सुधारक ने शुद्धि आन्दोलन चलाया?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने।

प्रश्न 20.
स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम क्या था?
उत्तर:
नरेन्द्रनाथ दत्त।

प्रश्न 21.
शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में कब व किसने भाग लिया?
उत्तर:
1893 ई. में स्वामी विवेकानन्द ने।

प्रश्न 22.
वेदान्त दर्शन के अध्येता कौन थे?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द।

प्रश्न 23.
स्वामी विवेकानन्द के गुरु कौन थे?
उत्तर:
रामकृष्ण परमहंस।

प्रश्न 24.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब व कहाँ की गई?
उत्तर:
5 मई, 1897 ई. को कोलकाता में बेल्लूर के पास।

प्रश्न 25.
आचार्य तुलसी कौन थे?
उत्तर:
आचार्य तुलसी जैन धर्म की श्वेताम्बर तेरापंथ परम्परा के नवें आचार्य थे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैष्णव मत पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
भागवत धर्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
वैष्णत मत अथवा भागवत धर्म की उत्पत्ति वैदिक धर्म के कर्मकांडी यज्ञों के परिणाम स्वरूप हुई। इस मत का विश्वास था कि फल की आशा से किए गए कर्म ही जन्म-मरण की अनन्तता का मूल कारण है। निष्काम कर्म ही जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्ति का एक मात्र साधन है। मध्य कालीन भारत में वैष्णव मत बहुत लोकप्रिय था। भगवान विष्णु के उपासक वैष्णव कहलाते थे। दक्षिण भारत में विष्णु के अनुयायियों को आलवार कहा जाता था जिनकी संख्या 12 थी जिनमें नरम्मलवार व तिरुमल्सिई प्रमुख थे। आलवार संतों ने दक्षिण भारत में भक्ति के सिद्धान्तों का बहुत अधिक प्रसार किया। ये सगुण भक्ति के उपासक थे। बाद में भक्ति आन्दोलन का प्रसार उत्तरी भारत में हो गया

प्रश्न 2.
सूफी मत के बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
इस्लाम की आरम्भिक शताब्दियों में कुछ आध्यात्मिक लोग रहस्यवाद और वैराग्य की ओर आकर्षित हुए। उन्हें सूफी कहा गया। वे ऊन की तरह सफेद वस्त्र का लबादा पहनते थे। इन लोगों ने रूढ़िवादी परिभाषाएँ और धर्माचार्यों द्वारा की गई कुरान व. पैगम्बर के व्यवहार की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। इन्होंने मुक्ति प्राप्त करने के लिए अल्लाह की भक्ति और उनके आदर्शों पर जोर दिया।

इस्लामिक रहस्यवाद को सूफीवाद कहा गया। सूफीवाद के दो मुख्य लक्ष्य थे-परमात्मा से सीधा संवाद एवं इस्लाम के अनुसार मानवता की सेवा करना। प्रमुख सूफी सम्प्रदायों में चिश्ती, सुहरावर्दी, नक्शबन्दी व कादरी आदि सम्प्रदाय थे। प्रमुख सूफी संतों में शेख मुईनुद्दीन चिश्ती, शेख हमीदुद्दीन नागौरी, बख्तियारे काकी, निजामुद्दीन ओलिया, शेख सलीम, बहाउद्दीन जकारिया, सदुद्दीन आरिफ एवं सुर्ख बुखारी
आदि थे।

प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्त (शिक्षाएँ बताइए।
उत्तर:
ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्त (शिक्षाएँ) निम्नलिखित हैं

  1. ईश्वर एक है, वह सृष्टि का निर्माता, पालक, अनादि, अनन्त व निराकार है।
  2. ईश्वर की पूजा बिना किसी जाति, सम्प्रदाय के आध्यात्मिक विधि से की जानी चाहिए।
  3. पाप कर्म के प्रायश्चित एवं बुरी प्रवृत्तियों के त्याग से ही मुक्ति सम्भव है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रार्थना आवश्यक है।
  5. आत्मा अजर व अमर है। वह ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है।
  6. ईश्वर के लिए सभी समान हैं और वह सभी की प्रार्थना समान रूप से स्वीकार करता है।
  7. ब्रह्म समाज कर्मफल के सिद्धान्त एवं सत्य की खोज में विश्वास करता है।

प्रश्न 4.
आर्य समाज ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए क्या-क्या प्रयास किया ?
उत्तर:
आर्य समाज ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए अनेक कार्य किए। स्वामी दयानन्द सरस्वती के नेतृत्व में आर्य समाज ने स्त्रियों को वेद पढ़ने और यज्ञोपवीत धारण करने के लिए आन्दोलन चलाया। ऐसा कर उन्होंने पुरुषों के बराबर स्त्रियों को अधिकार दिया। आर्य समाज ने स्त्रियों की दशा सुधारने हेतु उनमें सम्मानपूर्वक जीने की चाह पैदा की। इसने बालविवाह, पर्दा प्रथा बहुविवाह आदि का घोर विरोध किया। साथ ही स्त्रियों की शिक्षा और विधवा विवाह पर बल देकर स्त्रियों की देशी में सुधार करने का प्रयास किया।

प्रश्न 5.
आर्य समाज के प्रमुख सिद्धान्त (शिक्षाएँ बताइए।
उत्तर:
आर्य समाज के प्रमुख सिद्धान्त (शिक्षाएँ) निम्नलिखित हैं

  1. वेदों की सत्यता पर बल
  2. वैदिक रीति से हवन व मंत्र पाठ करना
  3. सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने पर बल
  4. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए
  5. पौराणिक विश्वासों, मूर्तिपूजा और अवतारवाद का विरोध करना
  6. ईश्वर सर्वशक्तिमान, निराकार व नित्य है
  7. स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन देना
  8. सभी से धर्मानुसार प्रीतिपूर्वक यथा योग्य व्यवहार करने पर बल दिया
  9. हिन्दी एवं संस्कृत भाषा के महत्व एवं प्रसार में वृद्धि करना,
  10. सभी लोगों की उन्नति में अपनी उन्नति तथा सभी की भलाई में अपनी भलाई समझना।

प्रश्न 6.
स्वामी विवेकानन्द शिकागो क्यों गये थे ? वहाँ उन्होंने क्या कहा ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द 1893 ई. में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने गये थे। इस सम्मेलन में उनके अभिभाषण ने विश्व स्तर पर भारत के नाम को रोशन किया। स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय समाज, संस्कृति एवं | हिन्दू धर्म की अच्छाइयों से विश्व को अवगत कराया। वहाँ | उन्होंने कहा कि विश्व का कोई भी कार्य भारत की सामर्थ्य | के बाहर नहीं है। बौद्धिक, धार्मिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक | दृष्टि से भारत जितना समृद्ध है, उतना विश्व का कोई अन्य देश नहीं है।

प्रश्न 7.
स्वामी विवेकानन्द के समक्ष प्रमुख कार्य कौन-कौन से थे ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द के समक्ष तीन प्रमुख कार्य निम्नलिखित थे

  1. धर्म की ऐसी व्याख्या करना जो नए लोगों को मान्य हो।
  2. पाश्चात्य शिक्षा के कारण भारतीयों में धर्म के प्रति श्रद्धा कम हो गई थी। इस दृष्टि से हिन्दू धर्म के प्रति हिन्दुओं की श्रद्धा को पुनः स्थापित करना।
  3. हिन्दुओं में आत्मगौरव की भावना विकसित करना।

प्रश्न 8.
समाज सेवा के क्षेत्र में रामकृष्ण मिशन के योगदान को बताइए। उत्तर-स्वामी विवेकानन्द ने 5 मई 1897 ई. को कोलकाता में बेल्लूर के पास रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसकी शाखाएँ देश-विदेश में फैली हुई हैं। रामकृष्ण मिशन ऐसे आदर्शों एवं सिद्धान्तों को प्रचार करता है जिसे सभी धर्मों व संस्कृतियों के लोग अपना सकें। इस मिशन के माध्यम से उपदेश, शिक्षा व अकाल, बाढ़, भूकम्प व संक्रामक रोगों से पीड़ित लोगों की सहायता का भी कार्य किया जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा किए गए समाज सुधार के प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा किए गए। समाज सुधार के प्रयास

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती थे। दयानन्द सरस्वती का जन्म 1824 ई. में गुजरात के मोरवी क्षेत्र के टंकारा कस्बे के एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके बचपन का नाम मूलशंकर था। जब वे 14 वर्ष की आयु के थे तो एक बार अपने पिता के साथ शिवरात्रि के अवसर पर शिव मन्दिर दर्शन हेतु गए। वहाँ उन्होंने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़कर प्रसाद खा रहा था। यह दृश्य देखकर उनका मूर्ति पूजा से विश्वास उठ गया।

21 वर्ष की आयु में उन्होंने घर त्याग दिया। 1860 ई. में उनके गुरु ने कहा कि ‘जीओ और वेदों को पढ़ाओ’ 1864 ई. में स्वामी ने सार्वजनिक उपदेश देना शुरू कर दिया। स्वामी दयानन्द सरस्वती का उद्देश्य हिन्दू समाज व हिन्दू धर्म में फैली बुराइयों को दूर करना था। इस कार्य में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया। स्वामी जी को प्राचीन भारतीय धर्म, सभ्यता और संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा थी।

इस प्रकार उनके विचारों में सुधारवादी और अतीतवादी दोनों प्रवृत्तियों का सुन्दर समन्वय था। उन्होंने 1874 ई. में एक प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश को हिन्दी में लिखा। 10 अप्रैल 1875 को उन्होंने आर्यसमाज की स्थापना की। प्रसिद्ध विचारक रोमा रोला का कहना था कि भारत में उन्होंने गीता के नायक श्रीकृष्ण की भाँति कार्य किया। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने वर्तमान जाति व्यवस्था जिसे जन्म पर आधारित माना जा रहा था, की घोर आलोचना की। वे मूर्तिपूजा, श्राद्ध, तीर्थयात्रा, छुआछूत, धार्मिक अन्धविश्वास, रूढ़ियों एवं प्राचीन मान्यताओं के कट्टर विरोधी थे।

उन्होंने आर्य समाज के माध्यम से बाल विवाह, पर्दा प्रथा का घोर विरोध किया तथा स्त्री शिक्षा तथा विधवा विवाह पर जोर दिया। स्वामी जी ने यहाँ तक कहा कि वेदों के अध्ययन का अधिकार स्त्रियों को पुरुषों के बराबर ही है। स्वामी दयानन्द राजनैतिक स्वतन्त्रता के भी समर्थक थे। उन्होंने स्वराज्य शब्द के प्रयोग के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग का समर्थन भी किया। स्वामीजी के अन्तिम दिन राजस्थान में व्यतीत हुए और 30 अक्टूबर, 1883 ई. को अजमेर में उनकी मृत्यु हो गई।

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