RBSE Class 12 History Notes Chapter 2 भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्

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मौर्य साम्राज्य:

  • मौर्य वंश मे भारतीय वसुन्धरा पर प्रथम बार एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर भारत को राजनीतिक एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु कौटिल्य की सहायता से नंद वंश का नाश कर 322 ई. में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
  • मेगस्थनीज नामक राजदूत, चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा गया जिसने इंडिका नामक पुस्तक की रचना की।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार उत्तराधिकारी बना जिसे यूनानी लेखक अमित्रोचेडूस कहते थे।
  • बिन्दुसार के पश्चात् उसको पुत्र अशोक 273 ई. पू. में मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा।
  • मौर्य वंश का प्रसिद्ध शासक अशोक था उसने 261 ई. में कलिंग पर विजय प्राप्त की।
  • अशोक प्रथम शासक था जिसने अपने अधिकारियों एवं प्रजा के लिए सन्देश पत्थरों पर लिखवाए तथा अनेक लोक कल्याणकारी कार्य किये।
  • सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् धम्म की नीति अपनायी तथा इसके प्रचार के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति भी की गयी।
  • धम्म के प्रमुख सिद्धान्त-सहिष्णुता, अहिंसा, आडम्बरहीनता, लोककल्याण तथा श्रेष्ठ पवित्र नैतिकता आदि थे।
  • मौर्य साम्राज्य चार प्रान्तों में विभाजित था-उत्तरापथ, दक्षिणापथ, अवन्तिपथ एवं मध्य प्रान्त।
  • मौर्य प्रशासन में सेना की छः शाखाएँ थीं तथा गुप्तचर व्यवस्था का भी उत्तम जाल विद्यमान था।

गुप्त साम्राज्य:

  • गुप्तकाल प्राचीन भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल था । गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने 240 ई. में कीं।
  • चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय, कुमार गुप्त तथा स्कन्दगुप्त गुप्तकाल के प्रसिद्ध शासक थे।
  • हरिषेण द्वारा संस्कृत में लिखित इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख (प्रयाग प्रशस्ति) समुद्रगुप्त की उपलब्धियों का वर्णन करता है।
  • समुद्रगुप्त को उसके दिग्विजयों के कारण भारत के नेपोलियन की संज्ञा दी जाती थी।
  • स्कन्दगुप्त ने हूणों को पराजित किया तथा सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण कराया। यह कार्य सौराष्ट्र प्रांत के गवर्नर पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित द्वारा सम्पन्न कराया गया।
  • प्राचीन भारत में स्थापत्य, मूर्ति एवं चित्रकला आदि क्षेत्रों में सबसे अधिक विकास गुप्तकाल में हुआ।
  • विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस, कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम आदि गुप्तकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएँ हैं।
  • गुप्तकाल में गणित, ज्योतिष, खगोल, रसायन, भौतिक, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा आदि का विकास प्रमुख रूप से हुआ।
  • आर्यभट्ट, भास्कर, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, वाग्भट्ट, धनवन्तरि, पलकोप्व, नागार्जुन आदि ने खगोलशास्त्र, चिकित्सा, ज्योतिष व विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया।
  • गुप्त काल में धातु विज्ञान के क्षेत्र में हुई अद्भुत प्रगति का एक भव्य उदाहरण महरौली (दिल्ली) का लौह स्तम्भ है जो आज भी पहले जैसी अवस्था में है।
  • भड़च, कैम्बे, सोपार, कल्याण, ताम्रलिप्ति आदि बन्दरगाहों से गुप्तकाल में भारत का व्यापार होता था। .
  • चीनी यात्री फाह्यान 399 ई. में चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में भारत आया तथा 414 ई. तक यहाँ रहा।

हर्षकालीन भारत:

  • हर्ष पुष्यभूति वंश का प्रतापी शासक था जो 606 ई. में थानेश्वर की गद्दी पर बैठा।
  • हर्ष ने लगभग समस्त उत्तरी भारत में विजय प्राप्त की एवं साम्राज्य का विस्तार किया।
  • हर्ष व पुलिकेशिन द्वितीय के मध्य हुए युद्ध का विवरण ऐहोल प्रशस्ति में मिलता है।
  • हर्ष ने परमभट्टारक, महाराजाधिराज, सकलोत्तरायेश्वर, एकाधिकार, चक्रवर्ती, सार्वभौम परमेश्वर आदि उपाधियाँ धारण ।
  • हर्ष बौद्ध धर्म का अनुयायी तथा संरक्षक था। 643 ई. में हर्ष ने कन्नौज सभा व प्रयाग सभा का आयोजन किया।
  • हर्ष ने अनेक विद्वानों को संरक्षण दिया जिनमें बाणभट्ट सबसे प्रसिद्ध हैं।
  • हर्ष स्वयं एक उच्च कोटि का विद्वान था उसने नागानंद, प्रियदर्शिका व रत्नावली आदि रचनाएँ लिखीं।
  • हर्ष का साम्राज्य प्रान्तों, भुक्तियों एवं विषयों आदि में विभक्त था।
  • हर्ष के काल में तीन प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है- भाग, हिरण्य और बलि।
  • कृषि उत्पादन में सम्राट का छठा भाग होता था।
  • हर्ष के समय में प्रसिद्ध चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग भारत आया।
  • नालंदा तथा बल्लभी विश्वविद्यालय हर्ष के काल में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे।
  • हर्ष एक महान सेनापति, कला एवं साहित्य का संरक्षक, कर्ण जैसा दानी सम्राट था। अपने श्रेष्ठ कार्यों के कारण उसे अंतिम हिन्दू सम्राट कहा जाता है।

चोल साम्राज्य:

  • चोलों के विषय में प्रथम जानकारी का स्रोत पाणिनीकृत अष्टाध्यायी है।
  • चोल राज्यं आधुनिक कावेरी नदी घाटी, कोरोमण्डल, त्रिचिरापल्ली एवं तंजौर तक विस्तृत था।
  • उपहरें इलन जेत चेन्नी चोल राजवंश का प्रथम शासक था।
  • विजयालय को चोल साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक माना जाता है।
  • चोल शासकों में सबसे प्रतापी शासक राजराज प्रथम (985 ई.-1014 ई.) तथा राजेन्द्र प्रथम (1014 ई.-1044 ई.) थे।
  • राजेन्द्र प्रथम ने अपनी शक्तिशाली नौ सेना से सिंहल द्वीप, बंगाल की खाड़ी पार कर सुमात्रा एवं मलय प्रायद्वीप पर विजय प्राप्त कर एक विस्तृत चोल साम्राज्य स्थापित किया।
  • लगभग 1279 ई. में पाण्ड्यों ने चोल राज्य पर अधिकार कर इसे समाप्त कर दिया।
  • चोल प्रशासन में सेना के तीन प्रमुख अंग थे-पैदल, गजारोही, अश्वारोही। इसके अतिरिक्त चोलों की विशाल शक्तिशाली नौ सेना भी थी।
  • महाबलिपुरम् तथा कावेरीपट्टनम मुख्य चोल बन्दरगाह थे।
  • चोल काल में भूमि कर उपज का एक तिहाई हिस्सा होता था।
  • चोल साम्राज्य प्रान्तों में विभाजित था जिन्हें मण्डलम् कहा जाता था। प्रान्तों का विभाजन क्रमशः वलनाडु (कोट्टम), नाडु (जिला), कुर्रम (ग्राम समूह) एवं ग्राम में होता था।
  • चोल प्रशासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ग्रामीण एवं नगरीय स्तर पर स्थानीय स्वायत्तता की व्यवस्था थी।
  • चोलकालीन स्थापत्य कला के प्रमुख उदाहरण तिरुकट्टलाई का सुन्देश्वर मंदिर, नरतमलाई का विजयालय | चोलेश्वर मंदिर, वृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोण्डचोलपुरम्, कोरंगनाथ, ऐरातेश्वर, त्रिभुवनेश्वर आदि हैं।
  • इस काल में धातु मूर्तियों में ‘नटराज शिव’ की कांस्य मूर्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

कल्हण की राजतरंगिणी एवं कश्मीर का इतिहास:

  • कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक राजतरंगिणी की रचना कश्मीर के लोहर वंश के अंतिम शासक जयसिंह के समय में की।
  • राजतरंगिणी रचना काल सन् 1147 ई. से 1149 ई. तक है।
  • राजतरंगिणी में आठ तरंग और संस्कृत में कुल 7826 श्लोक हैं।
  • पहले तीन तरंगों में कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है।
  • चौथे से लेकर छठे तरंग में कार्कोट एवं उत्पन्न वंश के इतिहास का वर्णन है।
  • अंतिम दो अध्यायों में कल्हण की व्यक्तिगत जानकारी तथा सातवें एवं आठवें तरंग से लोहरवंश का इतिहास । उल्लिखित है।
  • कल्हण ने अपने ग्रन्थ राजतरंगिणी में संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है।
  • राजतरंगिणी का शाब्दिक अर्थ है-राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है-राजाओं का इतिहास या समय प्रवाह।
  • सन् 273 ई. पू. कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ।

विजयनगर साम्राज्य:

  • विजयनगर नगर साम्राज्य को मध्य युग का प्रथम हिन्दू साम्राज्य माना जाता है।
  • विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में हरिहर तथा बुक्का नामक दो भाइयों ने की।
  • विजयनगर साम्राज्य पर चार प्रमुख वंशों ने शासन किया, ये थे-संगमवंश, सालुववंश, तुलुववंश तथा अराविडुवंश।
  • विजयनगर साम्राज्य सबसे प्रतापी शासक तुलुववंश का कृष्णदेव राय था। इसका शासनकाल विजयनगर साम्राज्य के चरमोत्कर्ष का काल कहलाता है।
  • कृष्णदेव राय तेलगू साहित्य का महान विद्वान था। उसके दरबार में तेलगू साहित्य के 8 सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे जिन्हें अष्ट प्रधान कहा जाता था।
  • कृष्णदेव राय ने नागलपुर नामके नये नगर की स्थापना तथा हजारी एवं विटुलस्वामी नामक मन्दिर का निर्माण | कराया।
  • 1565 ई. में तालीकोटा के युद्ध में रामराय की पराजय के पश्चात् विजयनगर साम्राज्य, धीरे-धीरे विखण्डित हो गया।
  • 162 ई. में वोड़ियार ने मैसूर राज्य की स्थापना की।
  • कृष्णदेव राय के काल में तेलगू में कई ग्रन्थों की रचना हुई; जैसे-आमुक्त मालयदम्, स्वारोचितसम्भव, परिजात हरण, नर संभूयालियम, पाण्डुरंग महात्म्य आदि।
  • इसके अतिरिक्त संस्कृत एवं कन्नड़ भाषाओं में भी विभिन्न पुस्तकों की रचना हुई जिनमें भाव चिन्तारण एवं वीर शैवामृत प्रमुख हैं।
  • विजयनगर के शासकों ने संगीत को भी विशेष प्रोत्साहन दिया। संगीत एवं नृत्य सम्बन्धी पुस्तकों की भी रचना हुई जिनमें संगीत सार, संगीत सर्वोदय प्रमुख हैं।

अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

कालावधि — घटना/विवरण
323 ई. पू. से 185 ई. पू. — मौर्य साम्राज्य का काल।
322 ई. पू. — चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
305 ई. पू. — चन्द्रगुप्त मौर्य तथा मेसिडोनिया के शासक सेल्यूकस के मध्य युद्ध।
298 ई. पू. — चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु तथा उसका पुत्र बिन्दुसार साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।
298 ई. पू. से 272 ई. पू. — मौर्य शासक बिन्दुसार का शासन काल।
273 ई. पू. — अशोक का राज्याभिषेक हुआ।
261 ई. पू. — अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की।
184 ई. पू. — अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्याकर पुष्यमित्र शुंग ने शृंगवंश की नींव रखी।
240 ई. पू — .श्रीगुप्त ने गुप्तवंश की स्थापना की।
240 ई. से 280 ई. — श्रीगुप्त का शासन काल।
280 ई. से 319 ई. — घटोत्कच का शासन काल ।
319 ई. से — चन्द्रगुप्त प्रथम का शासन काल ।
319 ई. — चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्त संवत् आरम्भ किया जाना।
335 ई. से 375 ई. — समुद्रगुप्त का शासन काल ।
375 ई. 414 ई. — चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल।
399 ई. — चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में भारत आया।
415 ई. से 455 ई. — कुमारगुप्त प्रथम का शासन काल।
455 ई. से 467 ई. — स्कन्दगुप्त का शासन काल।। हर्षवर्धन राज सिंहासन पर बैठा।
606 ई. से 647 ई. — हर्षवर्धन का शासन काल। हर्ष द्वारा कन्नौज तथा प्रयाग सभा का आयोजन।
850 ई. से 875 ई. — चोल शासक विजयालय का शासन काल ।
875 ई. — चोल शासक आदित्य प्रथम का शासन काल।
907 ई. से 935 ई. — चोल शासक परान्तक प्रथम का शासन काल।।
985 ई. से 1014 ई. — राजराज प्रथम का शासन काल ।
1003 ई. से 1lil ई. — राजराज प्रथम द्वारा तंजौर में वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कराया गया।
1014 ई. से 1044 ई. — राजेन्द्र प्रथम को शासन काल ।
1044 ई. से 1052 ई. — राजाधिराज प्रथम का शासन काल।।
1012 ई. से 1064 ई. — राजेन्द्र द्वितीय का शासन काल ।
1064 ई. से 1070 ई. — वीर राजेन्द्र का शासन काल।
1068 ई. से 1101 ई. — कश्मीर के लोहर वंश के शासक हर्षदेव का शासन काल।
1147 ई. से 1149 ई. — कल्हण ने प्रसिद्ध ग्रन्थ राजतरंगिणी की रचना की।
1250 ई. से 1279 ई. — अंतिम चोल शासक राजेन्द्र तृतीय का शासन काल।
1279 ई. — पाण्ड्यों ने चोल राज्य पर अधिकार स्थापित कर लिया।
1334 ई. — मुहम्मद बिन तुगलक के काल में काम्पिली प्रान्त में विद्रोह हुआ।
1336 ई. — हरिहर व बुक्का नामक दो भाइयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की।
1336 ई. से 1356 ई. — हरिहर प्रथम का शासन काल ।
1356 ई. से 1377 ई. — बुक्का का शासन काल।
1379 ई. से 1406 ई. — हरिहर द्वितीय का शासन काल।
1406 ई. से 1422 ई. — देवराय प्रथम का शासन काल ।
1426 ई. से 1446 ई. — देवराय द्वितीय का शासन काल ।
1465 ई. से 1485 ई. — विरुपाक्ष द्वितीय का शासन काल ।
1485 ई. — सालुव वंश की स्थापना।।
1485 ई. से 1505 ई. — नरसिंह सालुव का शासन काल।।
1505 ई. — वीर नरसिंह द्वारा तुलुव वंश की स्थापना।
1509 ई. से 1529 ई. — राजा कृष्ण देव राय का शासन काल।
1529 ई. से 1542 ई. — अच्युतराय का शासन काल।
1570 ई. से 1650 ई. — अरविन्दु वंश का शासन काल।
1612 ई. — वोडियार ने मैसूर राज्य की स्थापना की।

महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली

  • अभिलेख — अभिलेख उन्हें कहते हैं, जो पत्थर, धातु अथवा मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं। अभिलेखों में प्रायः उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप अथवा विचार लिखे जाते हैं जो उन्हें बनवाते हैं।
  • प्रियदर्शी — उत्खनन से प्राप्त अधिकांश अभिलेखों में अशोक को पियदस्सी अथवा प्रियदर्शी अर्थात् सुन्दर मुखाकृति वाला राजा कहा गया है। |
  • अर्थशास्त्र — चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री चाणक्य अथवा कौटिल्य द्वारा लिखित प्रमुख ग्रन्थ।।
  • अहनामूर और मुरनानुरु — ये तमिल ग्रन्थ हैं जिनसे चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय के विषय में जानकारी मिलती है।
  • तीर्थ — मौर्य साम्राज्य के शीर्षस्थ राज्याधिकारी।
  • धम्म — मौर्य सम्राट अशोक ने जनता में नैतिक नियमों का पालन करने के लिए जिन साधनों का उपयोग तथा प्रचार-प्रसार किया उसे धम्म कहा जाता है।
  • नागरक — मौर्य साम्राज्य में नगर प्रशासन का अध्यक्ष नागरक कहलाता था।
  • सन्निधाता — मौर्य प्रशासन में राजकीय कोष के मुख्य अधिकारी को सन्निधाता कहा जाता था।
  • मनुस्मृति — यह प्राचीन भारत की सामाजिक व्यवस्था की प्रथम पुस्तक है। इसके रचयिता मनु थे।
  • प्रशस्ति — राजा के सम्मान में लिखा गया अभिलेख।
  • निगम — गुप्त काल की एक संस्था जिसकी सदस्य शिल्प श्रेणियाँ होती थीं।
  • श्रेष्ठि — निगम का प्रधान व्यक्ति श्रेष्ठ कहलाता था।
  • सार्थवाह — व्यापारिक कारवाँ का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को सार्थवाह कहा जाता था।
  • उपरिकर एवं उद्रंग — ये गुप्त काल में लिये जाने वाले भूमि कर थे।
  • महाबलाधिकृत — हर्ष के काल में पैदल सेना के अधिकारियों को महाबलाधिकृत कहा जाता था।
  • ग्रामक्षपटलिक — हर्षकालीन ग्रामीण प्रशासन का मुखिया।
  •  उदमकुटुम — चोल प्रशासन में राजा के निजी सहायकों को उमंकुटुम कहा जाता था ।
  • पेरुन्दनम — चोल प्रशासन के उच्च स्तरीय अधिकारी।
  • सीरुतरम् — चोल प्रशासन के निम्न स्तरीय अधिकारी।
  • ओलेनायकम् — चोल प्रशासन का प्रधान सचिव।
  • कडगम — चोल प्रशासन में सैनिक छावनी को कड़गम कहा जाता था।
  • गोपुरम् — मंदिरों के प्रवेश द्वार।।
  • विजयनगर — विजयों का शहर।

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