RBSE Class 12 History Notes Chapter 5 उपनिवेशवादी आक्रमण

Rajasthan Board RBSE Class 12 History Notes Chapter 5 उपनिवेशवादी आक्रमण

  • 16वीं से 18वीं शताब्दी के मध्य विभिन्न यूरोपीय देशों (पुर्तगाल, स्पेन, इंग्लैण्ड, हॉलैण्ड, फ्रांस आदि) ने एशिया तथा अफ्रीका महाद्वीपों में अपने उपनिवेश स्थापित किये।
  • औद्योगिक क्रान्ति के दौरान जब कुछ यूरोपीय देशों में पूँजीवाद को बढ़ावा मिला तो औपनिवेशिक विस्तार की नीति सीधे पूँजीवादी विकास की आवश्यकताओं से जुड़ गई। .
  • भारत की समृद्धि ने भी यूरोपवासियों को अपनी ओर आकर्षित किया।
  • व्यापार के उद्देश्य से भारत आने वाला प्रथम यूरोपियन पुर्तगाल का वास्कोडिगामा था जो 17 मई, 1498 में : कालीकट पहुँचा।
  • सन् 1502 में वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत आया तथा उसने कन्नानार, कालीकट, कोचीन में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये।
  • 1600 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत आयी तथा 1615 ई. में इसने अहमदाबाद, बुरहानपुर, अजमेर, आगरा में अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये।
  • 1602 ई. में हॉलैण्ड निवासी डचों ने डच यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की।
  • 1684 ई. में 14वें लुई व उसके मंत्री कोलबर्ट के नेतृत्व में फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई जिसने सूरत, मछलीपट्नम, पांडिचेरी में अपने व्यापारिक केन्द्र बनाये।
  • धीरे-धीरे पुर्तगालियों और डचों की शक्तियाँ कमजोर होती चली गईं और भारत में अंग्रेज एवं फ्रांसीसी मुख्य प्रतिद्वन्दी रह गये।
  • 1742 ई. में फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डूप्ले भारत आया। भारत में अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के उद्देश्य से इसके काल में फ्रांसीसियों व अंग्रेजों के मध्य संघर्ष हुआ जिसे कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है।
  • प्रथम कर्नाटक युद्ध 1746-48 के मध्य, द्वितीय 1749-54 के मध्य तथा तृतीय 1758-63 के मध्य लड़ा गया। इन युद्धों ने पूर्ण रूप से भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य की सम्भावना को नष्ट कर दिया।
  • कर्नाटक के युद्धों में फ्रांसीसियों के हार के मुख्य कारण थे-अंग्रेजों की सुदृढ़ नौ-सैनिक शक्ति, फ्रांसीसियों में| आपसी समन्वय की कमी, बंगाल  पर अंग्रेजों को अधिकार, गवर्नर डूप्ले की वापसी।

18वीं शताब्दी में भारत की राजनैतिक स्थिति:

  • मुगलों के पतन के पश्चात् राजनैतिक अस्थिरता के वातावरण में विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया जिसका लाभ यूरोपियों
  • को मिला। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपने साम्राज्य की स्थापना एवं विस्तार किया।
  • 18वीं शताब्दी में मराठों ने उत्तर भारत में अपनी शक्ति का विस्तार किया परन्तु 14 जनवरी, 1761 में हुए पानीपत के तृतीय युद्धो में अहमदशाह अब्दाली द्वारा हार जाने से तथा आपसी फूट के कारण उनका साम्राज्य विभाजित हो गया।
  • मराठों की पराजय का कारण उनका दोषपूर्ण सैन्य संगठन व अनुशासन तथा भारतीय राजाओं और सरदारों में एकता का अभाव था।
  • 1728 ई. में सूबेदार सादत खाँ ने अवध में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की परन्तु 1764 ई. में बक्सर के युद्ध में हारने के पश्चात् इलाहाबाद की सन्धि द्वारा अवध कम्पनी का आश्रित राज्य बन गया।
  • बंगाल में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना 1740 ई. में मुर्शीद कुली खाँ द्वारा की गई परन्तु 1757 ई. में नवाब सिराजुद्दौला व अंग्रेजों के मध्ये लड़े गए प्लासी के युद्ध के पश्चात् बंगाल में कम्पनी शासन की स्थापना हो गई।
  • प्लासी के युद्ध का मुख्य कारण नवाब सिराजुद्दौला के शासन प्रबन्ध में अंग्रेजों द्वारा किया गया हस्तक्षेप था। इस युद्ध के परिणामस्वरूप बंगाल अंग्रेजों के अधीन हो गया।
  • अंग्रेजों व हैदर अली के मध्य तीन आंग्ल-मैसूर युद्ध हुए और चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध टीपू सुल्तान तथा अंग्रेजों के मध्ये लड़ा गया जिसमें टीपू सुल्तान की हार हुई तथा मैसूर के नये शासक के साथ सहायक सन्धि करके उसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
  • लार्ड वैलेजली की सहायक सन्धि द्वारा हैदराबाद (1798), मैसूर (1799), अवध (1801), मराठा राज्य (1802) को कम्पनी शासन में मिला लिया गया।
  • प्लासी के युद्ध के पश्चात् 1757-60 तक मीर जाफर बंगाल का कठपुतली नवाब बना रहा इसके बाद मीर कासिम को नवाब बनाया गया।
  • मीर कासिम को नवाब बनाने के लिए 27 सितम्बर, 1760 को वेन्सीटार्ट की सन्धि की गई।
  • मीर कासिम व अंग्रेजों के मध्य आर्थिक मामलों व विभिन्न सुविधाओं को लेकर मतभेद बढ़ने लगे जिसके परिणामस्वरूप 22 अक्टूबर, 1764 ई. में बक्सर का युद्ध हुआ।
  • बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों द्वारा तीनों शासकों (बंगाल का नवाब मीर कासिम, अवध का नवाब शुजाउद्दौला व मुगल सम्राट शाह आलम) की सम्मिलित सेनाएँ पराजित हुईं।
  • इस युद्ध ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अखिल भारतीय शक्ति बना दिया।
  • आगरा, एटा, धौलपुर, चम्बल, अलीगढ़, मथुरा, लक्ष्मणगढ़, पंजाब व हरियाणा आदि में जाटों ने अपना शासन स्थापित किया। महाराजा सूरजमल के समय जाट राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।
  • पंजाब में 12 मिसलों को मिलाकर रणजीत सिंह ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। 1849 ई. में इसे कम्पनी साम्राज्य में मिला लिया गया।
  • रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् सिक्ख सेना तथा अंग्रेजों के मध्य दो युद्ध लड़े गये तथा द्वितीय युद्ध के पश्चात् पंजाब में सिक्ख राज्य का अन्त हो गया।
  • मुगलों के पतन के पश्चात् आमेर, मालवा आदि के राजपूत शासकों ने स्वतंत्र होकर अपनी सत्ता स्थापित की।
  • रूहेलखण्ड में अली मुहम्मद खाँ ने अपनी सत्ता स्थापित की तथा बरेली को अपनी राजधानी बनाया।

डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति:

  • लार्ड डलहौजी द्वारा कुशासन एवं भ्रष्टाचार के तथाकथित दोष के नाम पर तथा गोद निषेध द्वारा राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की नीति को व्यपगत अथवा राज्य हड़प नीति कहा गया।
  • इस नीति के अनुसार लार्ड डलहौजी ने सतारा (1848), सम्भलपुर (1849), झाँसी (1853), नागपुर (1854), जैतपुर (1849), बघार (1850), उदयपुर (1852), तंजौर (1855) तथा अवध (1856) आदि राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।

1857 ई. की क्रान्ति:

  • अंग्रेजों की धन प्राप्ति व साम्राज्य विस्तार की नीति तथा आर्थिक व सामाजिक कारणों से हुए विभिन्न विद्रोहों ने 1857 ई. में भारतीयों के हृदय में
  • क्रान्ति की भावना को जन्म दिया जिसने अंग्रेजी साम्राज्य  की जड़ों को हिला दिया।
  • 1857 ई. की क्रान्ति के प्रमुख सामाजिक कारण थे-सती प्रथा का निषेध, ब्रिटिश सरकार द्वारा किये गये सुधारात्मक कार्य, अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार तथा अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार।
  • कई आर्थिक कारण भी मुख्य रूप से 1857 ई. की क्रान्ति के लिए उत्तरदायी थे; जैसे-ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पतन, कुटीर उद्योगों का विनाश, बेरोजगारी आदि।
  • 1857 ई. के विद्रोह के लिए राजनीतिक एवं प्रशासनिक कारण भी प्रमुख रूप से उत्तरदायी रहे जिनमें-लार्ड वैलेजली की सहायक सन्धि, लार्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति, मुगल सम्राट का अपमान करना, न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार, 1833 का चार्टर एक्ट आदि प्रमुख थे।
  • ईसाई मिशनरियों द्वारा ईसाई धर्म के प्रसार-प्रचार, 1813 के चार्टर एक्ट द्वारा ईसाई धर्म के प्रचार के लिए स्वीकृति प्राप्त होना, मंदिरों तथा मस्जिदों पर कर आदि ब्रिटिश नीतियों ने भारतीयों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई जिसका परिणाम 1857 ई. के विद्रोह के रूप में सामने आया।
  • सैनिकों के असंतोष ने भी 1857 ई. की क्रांति के आरम्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1856 ई. के सामान्य सेना भर्ती अधिनियम तथा चर्बी वाले
  • कारतूसों के जबरन प्रयोग ने सैनिकों में क्रान्ति की लहर उत्पन्न कर दी।

क्रान्ति का विस्तार एवं प्रमुख नायक:

  • 1857 की क्रान्ति’ का आरम्भ 10 मई, 1857 ई. को मेरठ की बैरकपुर छावनी से हुआ जब सैनिकों ने चर्बी लगे | कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया। सैनिकों के विद्रोह का नेतृत्व सिपाही मंगल पाण्डे ने किया।
  • दिल्ली से सम्राट बहादुरशाह जफर ने क्रान्तिकारियों का नेतृत्व किया। क्रान्ति के पश्चात् इस बहादुर शाह को बन्दी बनाकर रंगून भेज दिया गया।
  • लखनऊ में यह विद्रोह 4 जून, 1857 को बेगम हजरत महल के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
  • कानपुर से नाना साहब, झाँसी से रानी लक्ष्मीबाई और बिहार से कुंवर सिंह ने इस क्रान्ति का नेतृत्व किया।
  • राजस्थान में आऊवां के ठाकुर कुशाल सिंह ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया।
  • रूहेलखण्ड में इसे क्रान्ति का नेतृत्व करने वाले अहमदुल्ला तथा मेवात में संदरुद्दीन थे।
  • दक्षिण भारत में क्रान्ति का नेतृत्व करने वालों में रंगा बापू जी गुप्ते (सतारा), सोना जी पण्डित, रंगाराव पांगे व मौलवी सैय्यद अलाउद्दीन (हैदराबाद), भीमराव व मुंडर्गी, छोटा सिंह (कर्नाटक), अण्णा जी फड़नवीस (कोल्हापुर), गुलाम गौस व सुल्तान बख्श (मद्रास), मुलबागल स्वामी (कोयम्बटूर) और विजय कुदारत कुंजी मामा (केरल) प्रमुख थे।

क्रान्ति की असफलता के कारण:

  • इस क्रान्ति का नेतृत्व कुशल एवं योग्य व्यक्ति के हाथों में न होने के कारण यह क्रान्ति असफल रही।
  • क्रान्ति अपने निर्धारित समय से पूर्व हो गई और अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्थानों पर हुई जिसे अंग्रेजों द्वारा आसानी से दबा दिया गया।
  • अधिकांश रियासतों के राजाओं ने सहयोग न करते हुए इसे कुचलने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया।
  • इस क्रान्ति में क्रान्तिकारियों को जमींदारों, व्यापारियों व शिक्षित वर्ग का सहयोग भी प्राप्त नहीं हुआ।
  • भारतीय सैनिकों में अनुशासन, सैन्य संगठन तथा योग्य नेतृत्व का अभाव था। साथ ही इन्हें धन, रसद और हथियारों की कमी का सामना भी करना पड़ा।
  • सीमित साधन, निश्चित लक्ष्य, आदर्श का अभाव तथा अंग्रेजों की कूटनीति के कारण भी 1857 ३. का विद्रोह सफलता अर्जित करने में असफल रहा। अन्ततः इसका दमन कर दिया गया।

1857 ई. की क्रान्ति के परिणाम:

  • 1858 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा भारत में कम्पनी शासन का अन्त कर दिया गया तथा भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया।
  • अंग्रेजों को भारतीय शासकों के प्रति अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा।
  • फूट डालो, राज करो’ की नीति को बढ़ावा मिला। अंग्रेजों ने साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद आदि को भी बढ़ावा दिया।
  • 1857 ई. के विद्रोह ने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को भी गति प्रदान की।
  • क्रान्ति के प्रमुख नायक कुँवरसिंह, लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बहादुरशाह जफर, नाना साहब आदि स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रदूत के रूप प्रेरक बने

क्रान्ति का स्वरूप:

  • राबर्ट्स जॉन लॉरेन्स और सीले के अनुसार यह एक सैनिक विद्रोह था।
  • सर जेम्स आउट्रम डब्ल्यू टेलर के अनुसार यह क्रान्ति एक मुस्लिम षड्यंत्र था।
  • जोन ब्रूस नार्टन एवं मॉलिसन ने इसे जन क्रान्ति बताया है जिसके द्वारा भारतीयों ने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का प्रयास किया।
  • बेंजामिन डिजरेली जो इंग्लैण्ड के प्रमुख नेता थे, इन्होंने इसे राष्ट्रीय विद्रोह कहा है।
  • कुछ विद्वान इस क्रान्ति को किसानों का विद्रोह भी मानते हैं क्योंकि किसानों ने कम्पनी सरकार के ताल्लुकेदारों व जर्मीदारों के साथ भी विद्रोह किया।
  • वी. डी. सावरकर ने अपनी पुस्तक वार ऑफ इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स में इसे स्वतंत्रता का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया है। डॉ. ताराचन्द्र, डॉ. विश्वेश्वर प्रसाद, एस. बी. चौधरी ने भी इसे स्वतंत्रता संग्राम माना है।

अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

काल तथा कालावधि — सम्बन्धित घटनाएँ
1453 ई. — कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों का अधिकार।
1492 ई. — स्पेनवासी कोलम्बस भारत की खोज में निकला परन्तु वह अमेरिका पहुँच गया।
17 मई, 1498 ई. — पुर्तगाल के वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की तथा कालीकट पहुँचा।
1502 ई. — वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत पहुँचा तथा कन्नानोर, कालीकट, कोचीन में व्यापारिक केन्द्र बनाये।
1510 ई. — गोआ पुर्तगालियों का प्रधान केन्द्र बन गया।
1588 ई. — अंग्रेजों की स्पेनिश आर्मेडा पर विजय ।।
31 दिसम्बर,1600 ई. — इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ ने लंदन की व्यापारिक कम्पनी ‘दि गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ मर्चेन्ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू दि ईस्ट इण्डीज’ के गवर्नर को व्यापार का एक
अधिकार पत्र प्रदान किया।
1602 ई. — डच यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना।।
1608 ई. — पहला ब्रिटिश व्यापारिक जहाज हेक्टर सूरत बन्दरगाह पहुँचा।
1612 ई. — कप्तान बेस्ट ने सूरत के समीप पुर्तगालियों को पराजित किया।
1615 ई. — ब्रिटिश राजदूत सर टॉमस रो जहाँगीर के दरबार में पहुँचा जहाँ उसे अंग्रेज कम्पनी के लिए। व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त हो गईं।
1664 ३. — फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई।
1667 ई. — सूरत में पहली फ्रांसीसी व्यापारिक कोठी स्थापित हुई।
1672 ई. — लेफ्टिनेंट मार्टिन को फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी का महानिदेशक बनाया गया जिसने पाण्डिचेरी में फ्रांसीसी बस्ती स्थापित की।
1696 ई. — अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता में फोर्ट विलियम नामक दुर्ग का निर्माण कराया गया।
1717 ई. — सम्राट फर्रुखसीयर ने दस्तक’ (विशेष अनुमति पत्र, चुंगी शुल्क से मुक्ति के लिए) जारी करने का अधिकार दिया।
1722 ई. — मैसूर के शासक हैदरअली का जन्म।
1728 ई. — अवध के सूबेदार सादत खाँ ने मुगल साम्राज्य के नियंत्रण से मुक्त होकर स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली।
• 1732 ई. — राजा सूरजमल ने भरतपुर में किले का निर्माण शुरू किया।
1739 ई. — नादिरशाह का आक्रमण।
1740 ई. — अलीवर्दी खान ने बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
1742 ई. — डूप्ले फ्रांसीसी गवर्नर बनकर भारत आया।
1746-48 ई.— प्रथम आंग्ल फ्रांसीसी युद्ध।
1749-54 ई. — द्वितीय आंग्ल फ्रांसीसी युद्ध।
1758-63 ई. — तृतीय आंग्ल फ्रांसीसी युद्ध जिसमें फ्रांसीसी पूर्णतः पराजित हुए।
1756 ई. — सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना।
1757 ई. — नवाब सिराजुद्दौला व अंग्रेजों के मध्य प्लासी का युद्ध लड़ा गया।
27 सितम्बर, 1760 ई. — वेन्सीटार्ट की सन्धि।।
1761 ई. — मैसूर की सत्ता पर हैदर अली ने अपना प्रभाव स्थापित किया।
14 जनवरी, 1761 ई. — अहमदशाह अब्दाली व मराठों के बीच पानीपत का तृतीय युद्ध लड़ा गया।
24 अक्टूबर, 1764 ई. — अंग्रेजों व बंगाल नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला, व मुगल सम्राट शाह आलम की सम्मिलित सेनाओं के मध्य बक्सर का युद्ध लड़ा गया।
1767-69 ई. — प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध।
1775-1782 ई. — प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध।
1 मार्च, 1776 ई. — अंग्रेजों व पेशवा के मध्य पुरन्दर की सन्धि हुई।
1779 ई. — मराठों व अंग्रेजों के मध्य बडगाँव की सन्धि हुई।
1780-84 ई. — द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध।
1782 ईः — मैसूर शासक हैदर अली की मृत्यु, सालबाई की सन्धि।
11 मार्च, 1784 ई. — टीपू सुल्तान व अंग्रेजों के मध्य मंगलौर की सन्धि।
1790-92 ई. — तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध।
1792 ई. — टीपू सुल्तान वे अंग्रेजों के मध्य श्रीरंगपट्टनम की सन्धि।
1798 ई. — लॉर्ड वेलेजली भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया।
1798 ई. — हैदराबाद ने सहायक सन्धि को स्वीकार किया।
1799 ई. — तुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध तथा लार्ड वेलेजली की सहायक सन्धि द्वारा मैसूर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।।
1801 ई. — अवध ने सहायक सन्धि को स्वीकार किया।
1802 ई. — मराठों ने सहायक सन्धि को स्वीकार किया।
1802-04 ई. — । द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध।
31 दिसम्बर, 1802 ई. — अंग्रेजों व पेशवा के मध्य बेसिन की सन्धि।।
1803 ई. — अरगाँव का युद्ध।
1809 ई. — अंग्रेजों व रणजीत सिंह के मध्य अमृतसर की सन्धि ।
1813 ई. — लार्ड हेस्टिग्स भारत का गवर्नर जनरल बना।।
1813 ई. — चार्टर एक्ट द्वारा ईसाई पादरियों को भारत में मजहबी प्रचार को स्वीकृति मिल गई।
1818 ई. — अष्टी का युद्ध और पेशवा की ओतम पराजय।।
1838 ई. — रणजीत सिंह, अंग्रेजों व शाहशुजा के मध्य त्रिपक्षीय सन्धि।
27 जून, 1839 ई. — सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।
1845-46 ई. — प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध।
1 मार्च, 1846 ई. — लाहौर की सन्धि।
1848 ई. — सतारा का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।
1848-49 ई. — द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध।
29 मार्च, 1849 ई. — पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।
1849 ई. — सम्भलपुर व जैतपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।
1850 ई. — बघार का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।।
1852 ई. — उदयपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।
1853 ई. — झाँसी का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।
1854 ई. — नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय। डाकघर अधिनियम द्वारा सैनिकों को मिल रही नि:शुल्क डाक सुविधा को समाप्त कर दिया गया।
1855 ई. — तंजौर को भी ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
1855-56 ई. — संथालों का विद्रोह।
13 फरवरी, 1856 ई. — अवध का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय।
1856 ई. — लार्ड कैनिंग ने सामान्य सेना भर्ती अधिनियम पारित किया।
10 मई, 1857 ई. — मेरठ की बैरकपुर छावनी से क्रान्ति का आरम्भ।
1858 ई. — झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुईं।
1 नवम्बर, 1858 ई. — भारत सरकार अधिनियम पारित हुआ जिसके द्वारा भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के हाथों में चला गया।
1861 ई. — सेना सम्मिश्रण योजना द्वारा कम्पनी की यूरोपीय सेना सरकार को हस्तानांतरित कर दी गई।
1862 ई. — मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर की रंगून में मृत्यु।

महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली:

  • उपनिवेशवाद — उपनिवेशवाद का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें कोई राष्ट्र अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार व नियंत्रण अन्य राष्ट्रों पर
  • स्थापित कर वहाँ के संसाधनों का अपने हित में शोषण करता है।
  • पूँजीवाद — जिस अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व पाया जाता है, वह अर्थव्यवस्था पूँजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है।
  • साम्राज्यवाद — वह दृष्टिकोण जिसके अनुसार कोई महत्वाकांक्षी राष्ट्र अपनी शक्ति और गौरव को बढ़ाने के लिए अन्य देशों के प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता है।
  • दस्तक — 1717 ई. में फर्रुखसीयर द्वारा जारी एक फरमान जिसमें अंग्रेजों को व्यापारिक सुविधाएँ प्रदान की गईं।
  • सहायक सन्धि — लार्ड वेलेजली द्वारा आरम्भ की गयी व्यवस्था जिसमें राज्यों को ब्रिटिश शर्तों पर सन्धि मानने के | लिए मजबूर किया जाता था।
  • राज्य हड़प नीति — यह शब्द डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति के लिए प्रयक्त होता है।
  • चर्बी वाले कारतूस — गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूस। यह 1857 ई. के विद्रोह का तात्कालिक प्रमुख कारण माना जाता है।

पाठ में आये महत्वपूर्ण व्यक्ति:

  • कोलम्बस— एक स्पेनवासी जो 1492 ई. में भारत की खोज में निकला परन्तु वह अमेरिका पहुँच गया।
  • वास्कोडिगामा — प्रथम यूरोपीय पुर्तगाल निवासी जो 1498 ई. में समुद्री मार्ग से भारत पहुँचा।
  • सर टॉमस रो — ब्रिटिश राजदूत जो 1615 ई. में जहाँगीर के दरबार में व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करने के उद्देश्य से गया।
  • डुप्ले — फ्रांसीसी गवर्नर जनरल जो 1742 ई. में भारत आया।
  • बहादुरशाह जफर — दिल्ली का अंतिम मुगल सम्राट जिसने दिल्ली से 1857 ई. के विद्रोह का नेतृत्व किया।
  • शुजाउद्दौला — बक्सर के युद्ध के दौरान अवध का नवाब।
  • सिराजुद्दौला — प्लासी के युद्ध के समय बंगाल का नवाब।
  • हैदर अली — मैसूर का शासक।
  • राजा सूरजमल — प्रसिद्ध जाट शासक, जिसे जाट जाति का प्लेटो कहा जाता है।
  • महाराजा रणजीत सिंह — प्रसिद्ध सिक्ख शासक जिसने 12 मिसलों को मिलाकर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
  • टीपू सुल्तान — हैदर अली का पुत्रं व मैसूर का अंतिम शासक।
  • लार्ड वेलेजली — 1798 ई. में गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। इसने सहायक संधि लागू की।
  • लार्ड हेस्टिग्स — 1813 ई. में भारत का गवर्नर जनरल बना।
  • गुरु गोविन्द सिंह — सिक्खों के दसवें गुरु जिन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।
  • लार्ड डलहौजी — भारत का गवर्नर जनरल जिसने राज्य हड़पने की नीति लागू की।
  • लार्ड कैनिंग — 1857 ई. के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल था।
  • बेगम हजरत महल — अवध की बेगम जिसने लखनऊ से 1857 ई. की क्रान्ति का नेतृत्व किया।
  • नाना साहेब — बाजीराव के दत्तक पुत्र जिन्होंने कानपुर से 1857 के विद्रोह का नेतृत्व सँभाला।
  • रानी लक्ष्मीबाई — झाँसी की रानी जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया।
  • कुंवर सिंह — बिहार से 1857 की क्रान्ति का नेतृत्व करने वाले शासक।।
  • कुशाल सिंह — इन्होंने राजस्थान क्षेत्र से 1857 ई. की क्रान्ति का नेतृत्व किया।
  • बेंजामिन डिजरेली — इंग्लैण्ड के प्रमुख नेता जिन्होंने ‘दि ग्रेट रिबेलियन’ पुस्तक लिखी।
  • वी डी. सावरकर — वार ऑफ इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स’ के लेखक जिन्होंने 1857 ई. के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा।

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