RBSE Class 12 History Notes Chapter 7 राजस्थान का स्वाधीनता संग्राम एवं एकीकरण

Rajasthan Board RBSE Class 12 History Notes Chapter 7 राजस्थान का स्वाधीनता संग्राम एवं एकीकरण

  • अखिल भारतीय स्तर पर जह्न 1857 में क्रान्ति का बिगुल बज उठा तो उसमें मंगल पाण्डे, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई व ताँत्या येपे जैसे क्रान्तिकारियों ने हुँकार भरी-उसी ज्वाला की एक चिनगारी राजस्थान में भी भड़क उठी तथा राज्य की जनता में उत्साह के साथ क्रान्तिकारियों को क्रान्ति में सहयोग दिया।
  • किसी भी देश में राजनैतिक चेतना आकस्मिक घटना का परिणाम नहीं होती। इसके लिए दीर्घकाल तक साधना और प्रयत्न करने पड़ते हैं।

राजस्थान में जनजागृति के कारण:

  • (1) स्वामी दयानन्द सरस्वती व उनका प्रभाव,
    (2) समाचार-पत्रों व साहित्य का योगदान,
    (3) मध्य वर्ग की भूमिका,
    (4) प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव,
    (5) बाह्य वातावरण का प्रभाव।
  • राजस्थान के स्वाधीनता संग्राम में राजस्थान के साहित्यकारों, समाचार-पत्रों, देशभक्तों, किसानों, जनता और क्रान्तिकारियों का सामूहिक प्रयास रह्य।
  • 1857 ई. के स्वाधीनता संग्राम में राजस्थान की जनता ने राष्ट्रभक्ति और अंग्रेज विरोधी भावना का प्रदर्शन किया तथा, क्रान्तिकारियों की सह्मयता की।
  • इनमें स्वामी दयानन्द सरस्वती की स्वधर्म, स्वदेशी, स्वराज्य, स्वभाषा का भी प्रभाव था। महात्मा गाँधी, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, पं. जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ-साथ राजस्थान में सत्याग्रही किसानों का बलिदान भी इसका प्रमुख कारण था।

1857 की क्रान्ति और राजस्थान:

  • 1857 की क्रान्ति का राजस्थान में आगाज नसीराबाद छावनी से हुआ। राजस्थान में मुख्यत: छः सैनिक छावनियाँ नसीराबाद, नीमच, देवली, कोय, एरनपुरा और खेरवाड़ा।
  • आऊवा (मारवाड़) ठिकाना व ठकुर खुशाल सिंह का भी योगदान प्रमुख था।
  • 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम में ताँत्या येपे का राजस्थान आगमन महत्वपूर्ण घटना थी।
  • राजस्थान का किसान दोहरी गुलामी से लड़ रह्य था। एक अंग्रेज दूसरे देशी ठिकानेदार।
  • प्रमुख क्रान्तिकारियों में विजय सिंह पथिक, पं. अर्जुनलाल सेठ, केसरी सिंह बारहठ, रावगोपाल सिंह खरवा आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
  • केसरी सिंह बारहठ, प्रताप सिंह बारहठ, जोरावर सिंह बारहठ तीनों एक ही परिवार के क्रान्तिकारी थे।
  • आऊवा के ठाकुर खुशाल सिंह ने खुलकर अंग्रेजों का सामना किया था। सागरमल गोपा, स्वामी गोपालदास, दामोदरदास राठी, राव गोपाल सिंह खरवा, दामोदर दास राठी आदि क्रान्तिकारी थे।

स्वतन्त्रता आन्दोलन की असफलता के कारण:

  • नेतृत्व का अभाव,
  • समन्वय का अभाव,
  • रणनीति का अभाव तथा
  • शासकों का असहयोग।

स्वतन्त्रता संग्राम के परिणाम :

  • (1) देशी राज्यों के प्रति नीति में परिवर्तन,
    (2) सामन्तों की शक्ति नष्ट करना,
    (3) नौकरशाही में परिवर्तन,
    (4) यातायात के साधन तथा
    (5) सामाजिक परिवर्तन।
  • राजस्थान में किसान आन्दोलन-बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक राज्यों में अंग्रेजों का हस्तक्षेप और नियन्त्रण बढ़ता गया। किसानों में बढ़ते असन्तोष के परिणामस्वरूप संगठित किसान आन्दोलन हुए।
  • किसान अत्याचारों और अमानवीय यातनाओं से नहीं डरे। स्त्रियों ने भी भाग लिया।
  • बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व विजय सिंह पथिक ने किया। जब जागीरदारों ने किसानों की समस्या को हल करने का कोई कदम नहीं उठाया तो सत्याग्रह आरम्भ किया गया।
  • बिजौलिया का प्रत्येक स्त्री-पुरुष राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था। यहाँ के किसान आन्दोलन की गूंज सम्पूर्ण भारत | में फैली। यही कारण है कि महात्मा गाँधी, मदन मोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक और गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे राष्ट्रीय नेताओं का ध्यान आन्दोलन की ओर गया।
  • इसी के साथ-साथ बेगै आन्दोलन का नेतृत्व विजय सिंह पथिक, माणिक्य लाल वर्मा और रामनारायण चौधरी ने किया। मारवाड़ में किसानों का नेतृत्व श्री जयनारायण व्यास, राधा कृष्ण तात आदि ने किया।
  • सीकर आन्दोलन में किसानों के साथ-साथ महिलाओं ने योगदान किया। इनमें किशोरी देवी, दुर्गा देवी, फूला देवी, श्रीमती रमाजोशी आदि ।
  • बूंदी किसान आन्दोलन का नेतृत्व पं. नयनूराम, राम नारायण चौधरी तथा अलवर का किसान आन्दोलन (नीमूचणा काण्ड) किसानों के नेतृत्व में हुआ। नीमूचणा काण्ड का विरोध महात्मा गाँधी ने किया।
  • जनजाति आन्दोलन-राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में भील निवास करते है। ये परम्परावादी जाति हैं। जब इनके परम्परागत अधिकारों का हनन हुआ तो इन्होंने अपना विरोध प्रकट किया।
  • भगत आन्दोलन का नेतृत्व गोविन्द गुरु ने किया। इन्होंने सम्प सभा की स्थापना की। यहाँ के नरसंहार की तुलना जलियाँवाला बाग से की गई है।
  • मोतीलाल तेजावत ने एक्की आन्दोलन का नेतृत्व किया। यह आन्दोलन जनजातियों के राजनीतिक जागरण का प्रतीक माना जाता है।
  • प्रजामण्डल आन्दोलन-1927 ई. में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना के साथ ही सक्रिय राजनीति का काल आरम्भ हुआ।
  • 1938 के कांग्रेस के हरिद्वार अधिवेशन में कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित कर देशी रियासतों के लोगों द्वारा संचालित स्वतन्त्रता संघर्ष का समर्थन किया। कांग्रेस के इस प्रस्ताव से देशी रियासतों में चल रहे स्वतन्त्रता संग्राम को नैतिक समर्थन मिला।
  • इन राज्यों में चल रहे आन्दोलन प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस से जुड़ गए। इन प्रजामण्डलों में जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, | मेवाड़, बूंदी, झालावाड़, जयपुर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा अन्य राज्य प्रमुख थे।
  • हरिपुरा अधिवेशन के बाद रियासती आन्दोलन राष्ट्रीय मुख्यधारा से जुड़ गए। जब स्वतन्त्रता मिली तो ये प्रजामण्डल रियासतों के भारत में विलय के लिए प्रयासरत हो गए।

राजस्थान का एकीकरण:

  • राजस्थान का एकीकरण सात चरणों में पूर्ण हुआ। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय राजस्थान में 22 छोटी-बड़ी रियासतें थीं।
  • उसमें से 19 स्वतन्त्र व 3 चीपशिप थी। लावा, कुशलगढ़ व नीमराना चीपशिप रियासतें थीं।
  • अजमेर-मेरवाड़ा ब्रिटिश नियंत्रित राज्य था।
  • राजस्थान की रियासतों का एकीकरण लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शिता, कूटनीति एवं रियासत विभाग के अथक प्रयासों से सम्भव हो सका।
  • भारत सरकार के “रियासत विभाग के निर्णयानुसार स्वतन्त्र भारत में वे ही रियासतें अपना पृथक् अस्तित्व रख सकेंगी, जिनकी आय “एक करोड़ रुपये वार्षिक” और जनसंख्या दस लाख या उससे अधिक हो।
  • राजस्थान के एकीकरण का प्रथम चरण अलवर, भरतपुर, धौलपुर एवं करौली को मिलाकर ‘मत्स्य संघ’ के रूप में पूर्ण हुआ।
  • सबसे बड़ा संघ नौ राज्य-बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, कोटा, बूंदी, झालावाड़, किशनगढ़, शाहपुरा व येंक को मिलाकर “संयुक्त राजस्थान के नाम से बना।
  • वृहत् राजस्थान की राजधानी “जयपुर” को घोषित किया गया तथा राजस्थान के बड़े नगरों का महत्व बनाए रखने के लिए कुछ राज्य स्तर के सरकारी कार्यालय; यथा-हाईकोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में, खनिज विभाग उदयपुर में तथा कृषि विभाग भरतपुर में स्थापित किया गया।
  • मत्स्य संघ के क्षेत्र भरतपुर व धौलपुर उत्तर प्रदेश (उ. प्र.) में विलय के इच्छुक थे।
  • सिरोही के विलय” को लेकर गुजरात एवं राजस्थान के मध्य मतभेद हुए, परन्तु राजस्थान की जनता एवं जननायकों के दबाव के फलस्वरूप “सिरोही का विलय” राजस्थान में ही किया गया।
  • राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों द्वारा 1 नवम्बर, 1956 ई. को सिरोही के माउण्ट आबू वाले क्षेत्र के साथ-साथ अजमेर व मेरवाड़ा को भी एकीकृत राजस्थान में मिलाकर आधुनिक राजस्थान का निर्माण किया गया।
  • इस प्रकार राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया जो मार्च, 1948 में आरम्भ हुई थी उसकी पूर्णाहुति 1 नवम्बर, 1956 को हुई।

महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली:

  • वैदिक यन्त्रालय — अजमेर में स्थापित यह एक छापाखाना था।
  • लाग — बाग इन्हें ‘लागतें’ नाम से जाना जाता है।
  • विजय सिंह पथिक — इन्होंने बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया।
  • खिराज — यह एक प्रकार का ‘कर’ था।
  • पंचपाने — पाँच ग्रामों का समूह (बिसाऊ, डूडलोद, मलसीसर, मंडावा व नवलगढ़)।
  • नीमूचणा — यह एक गाँव था। यहाँ सैकड़ों स्त्री-पुरुष व बच्चों पर गोलियाँ चलाई गईं।
  • भिल्ला — इस शब्द से भीलों की उत्पत्ति हुई है।
  • सम्प सभा — इसकी स्थापना गोविन्द गुरु ने की।
  • एकुकी आन्दोलन — मोतीलाल तेजावत ने एक्की आन्दोलन चलाया
  • जरायम पेशा — जन्मजात अपराधी जाति ।।
  • मारवाड़ हितकारिणी सभा — चाँदमल सुराणा ने इस सभा की स्थापना की।
  • चेतावनी रा चूगटया — केसरी सिंह बारहठ ने यह सोरठा लिखा।

अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

28 मई, 1857 ई. — राजस्थान में नसीराबाद से क्रान्ति का सूत्रपात।
3 जून, 1857 ई. — नीमच में क्रान्ति।
18 सितम्बर, 1857 ई. — जॉर्ज लॉरेन्स का आऊवा में क्रान्तिकारियों से पराजित होना।
15 अक्टूबर, 1857 ई. — कोटा में क्रान्ति का सूत्रपात।
23 जून, 1858 ई. — ताँत्या टोपे का राजस्थान में आगमन।
7 अप्रैल, 1859 ई. — ताँत्या टोपे की गिरफ्तारी।
1897 ई. — बिजौलिया किसान आन्दोलन का सूत्रपात।
1919 ई. — ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना जिसने विभिन्न किसान आन्दोलनों का पथ-प्रदर्शन किया।
1921 ई. — बेगूं किसान आन्दोलन का सूत्रपात
1927 ई. — देशी राज्य लोक परिषद् की स्थापना तथा देशी राज्यों में उत्तरदायी शासन की माँग।
1931 ई. — जयपुर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना
1933 ई. — सिरोही लोक परिषद् की स्थापना।
934 ई. — जोधपुर प्रजामण्डल की स्थापना।
1936 ई. — बीकानेर लोक परिषद् की स्थापना ।
1938 ई. — कोटा, उदयपुर और अलवर में प्रजामण्डल की स्थापना।
1938 ई. — मारवाड़ लोक परिषद् की स्थापना, कांग्रेज के हरिपुरा अधिवेशन में देशी राज्यों में उत्तरदायी एवं नागरिक अधिकारों की माँग
1939 ई. — भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना।
1945 ई. — जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना।
12 जून, 1942 ई. — जोधपुर के बालमुकुन्द बिस्सा को जेल अधिकारियों की यातना से देहान्त ।
3 अप्रैल, 1946 ई. — जैसलमेर के लोकप्रिय नेता सागरमल गोपा की जेल में हत्या।
25 जून, 1946 — जयपुर में राजस्थानी राजाओं का एक सम्मेलन ।
18 मार्च, 1948 ई. — संयुक्त राजस्थान में मेवाड़ (उदयपुर) का विलय। सितम्बर,
1948 ई. — जोधपुर में उत्तरदायी मन्त्रिमण्डल की स्थापना।।
9 नवम्बर, 1948 ई. — सार्वजनिक सभा में वृहत् राजस्थान निर्माण की माँग।
30 मार्च, 1949 ई. — वृहत् राजस्थान का निर्माण।
15 मई, 1948 ई. — ‘मत्स्य संघ’ का वृहत् राजस्थान में विलय।
10 अप्रैल, 1948 ई. — संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन।।
जनवरी, 1950 ई. — माउण्ट बाबू सहित सिरोही का राजस्थान में विलय।
1 नवम्बर, 1956 ई. — आधुनिक राजस्थान का निर्माण तथा एकीकरण की पूर्णाहुति।

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