RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 1 न्याय

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 1 न्याय

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान पाठ 1 न्याय न्याय की अवधारणा:

  • न्याय की अवधारणा प्राचीनकाल से ही राजनीतिक चिंतन का एक महत्वपूर्ण विषय रहा है।
  • न्याय एक विस्तृत अवधारणा है। न्याय की भावना लोगों को अनुशासन में बाँधने का कार्य करती है।
  • भारतीय एवं पाश्चात्य राजनीतिक चिंतनों में न्याय की अवधारणा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
  • प्लेटो, अरस्तू, ऑगस्टाइन, एक्वीनास, हॉब्स, कार्ल मार्क्स, काण्ट, ह्यूम व जॉन रॉल्स, मिल आदि पाश्चात्य विचारकों ने न्याय को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है।
  • मनु, कौटिल्य, वृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज, विदुर एवं सोमदेव आदि भारतीय विचारकों ने राज्य व्यवस्था में न्याय | को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है।
  • पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन में न्याय की सर्वप्रथम व्याख्या यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने की। प्लेटो ने न्याय को राज्य का आत्मीय गुण माना है।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 1 न्याय प्लेटो के न्याय सम्बन्धी विचार:

  • प्राचीन यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो के चिंतन का मुख्य आधार न्याय की संकल्पना थी।
  • प्लेटो के उसार प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपना निर्दिष्ट कार्य करना एवं दूसरे के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप न करना ही न्याय है।
  • प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘रिपब्लिक’ में न्याय का एक नैतिक सिद्धान्त के रूप में विश्लेषण किया है।
  • प्लेटो के अनुसार न्याय के दो रूप हैं-
    • व्यक्तिगत न्याय,
    • सामाजिक न्याय।।
  • प्लेटो के मतानुसार मानवीय आत्मा में तीन तत्व पाए जाते हैं-
    • तृष्णा (इच्छा),
    • शौर्य,
    • बुद्धि।
  • प्लेटो ने इन तीन तत्वों के आधार पर समाज में तीन वर्गों की पहचान की है-
    • शासक या अभिभावक वर्ग,
    • सैनिक वर्ग,
    • उत्पादक या सहायक वर्ग।

RBSE Solutions For Class 12 Political Science Notes अरस्तू के न्याय सम्बन्धी विचार:

  • अरस्तू, प्लेटो के शिष्य थे। इनके अनुसार न्याय का सम्बन्ध मानवीय सम्बन्धों के नियमन से है।
  • अरस्तू का मानना था कि लोगों के मन में न्याय के बारे में एक जैसी धारणा के कारण ही राज्य अस्तित्व में आता है।
  • अरस्तु के अनुसार न्याय के दो रूप हैं-
    • वितरणात्मक व राजनीतिक न्याय,
    • सुधारात्मक न्याय।
  • वितरणात्मक व राजनीतिक न्याय की अवधारणा के अनुसार लाभ और उत्तरदायित्व व्यक्ति की क्षमता व सामर्थ्य के अनुपात में ही होना चाहिए।
  • सुधारात्मक न्याय में राज्य का उत्तरदायित्व है कि वह व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति, सम्मान एवं स्वतंत्रता की रक्षा करे।

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान पाठ 1 न्याय प्रश्न उत्तर मध्यकाल में न्याय सम्बन्धी विचार:

  • ईसाई विचारक संत ऑगस्टाइन ने ‘ईश्वरीय राज्य’ में न्याय को अपरिहार्य तत्व माना है।
  • संत ऑगस्टाइन ने अपनी पुस्तक ‘द सिटी ऑफ गॉड’ में व्यक्ति द्वारा ईश्वरीय राज्य के प्रति कर्त्तव्य पालन को ही न्याय माना है।
  • थॉमस एक्वीनास ने समानता को न्याय का मौलिक तत्व माना है।

RBSE Political Science Class 12 Chapter 1 Notes In Hindi आधुनिक काल में न्याय सम्बन्धी अवधारणा:

  • डेविड ह्यूम के अनुसार सार्वजनिक उपयोगिता को न्याय का एक मात्र स्रोत होना चहिए।
  • जैरेमी बेन्थम ने न्याय में उपयोगितावाद का समर्थन करते हुए अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख’ के सिद्धान्त को मान्यता दी।
  • जॉन स्टूअर्ट मिल ने न्याय को सामाजिक उपयोगिता का सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना। जॉन रॉल्स के न्याय सम्बन्धी विचार
  • जॉन रॉल्स ने अपनी पुस्तक ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ (न्याय का सिद्धान्त) में आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक न्याय का विश्लेषण किया है।
  • जॉन रॉल्स ने अज्ञानता के पर्दे के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
  • जॉन रॉल्स संवैधानिक लोकतंत्र में न्याय के दो मौलिक नैतिक सिद्धान्तों की प्रतिस्थापना करते हैं-
    • अधिकतम स्वतंत्रता स्वयं स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
    • व्यक्ति के राज्य द्वारा ऐसी सामाजिक व आर्थिक स्थितियाँ स्थापित की जाती हों, जो सबके लिए कल्याणकारी हों।

RBSE Class 12 Political Science Notes Pdf Download भारतीय राजनीतिक चिंतन में न्याय:

  • भारतीय राजनीतिक चिंतन में न्याय को विशेष स्थान व महत्व दिया गया है। इस चिंतन में धर्म का प्रयोग न्याय के सदृश ही हुआ है।
  • मनु, कौटिल्य, वृहस्पति वे शुक्र आदि विचारकों ने न्याय को राज्य का प्राण माना है।
  • मनु व कौटिल्य ने न्याय की निष्पक्षता को राज्य व्यवस्था की आधारभूत प्रवृति माना है। न्याय के विविध रूप
  • न्याय की धारणा के विविध रूप हैं-
    • नैतिक न्याय,
    • कानूनी न्याय
    • राजनीतिक न्याय,
    • सामाजिक न्याय,
    • आर्थिक न्याय।
  • परम्परागत न्याय का सरोकार व्यक्ति के श्रम से था, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण का सरोकार सामाजिक न्याय से है।
  • न्याय की मूलधारणा नैतिकता पर आधारित है।
  • कानूनी न्याय में वे समस्त नियम और कानून सम्मिलित हैं जिनका नागरिक स्वाभाविक रूप से अनुकरण करते राजनीतिक न्याय समानता व समता पर आधारित होता है।
  • सामाजिक न्याय समाज में एक ऐसी व्यवस्था पर बल देता है जिसमें सामाजिक स्थिति के आधार पर व्यक्तियों में भेदभाव न हो तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त हों।
  • आर्थिक न्याय का उद्देश्य समाज में आर्थिक समानता स्थापित करना है।
  • न्याय के सिद्धान्त का मुख्य सरोकार सामाजिक जीवन में लाभों एवं दायित्वों के तर्कसंगत विवरण से है।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 1 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • न्याय-पाश्चात्य एवं भारतीय दोनों मान्यताओं के अनुसार मनुष्य द्वारा अपना निर्दिष्ट कार्य करना और दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप न करना ही न्याय है।
  • अवधारणा–किसी मुद्दे की सम्पूर्ण व्याख्या करने वाली विचारों की श्रृंखला अवधारणा कहलाती है।
  • धर्म-धर्म का अभिप्राय कर्तव्य पालन से है। यह समाज का मूल आधार है। मनु स्मृति के अनुसारधैर्य, क्षमाशीलता, आत्मसंयम, पवित्रता, चोरी न करना, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, बुद्धिमत्ता, विद्याध्यन करना, सत्य बोलना, क्रोध न करना आदि दस धर्म के लक्षण हैं।
  • समानता-समानता उस परिस्थिति का नाम है जिसके कारण समस्त व्यक्तियों को अपने अस्तित्व के विकास हेतु समान अवसर प्राप्त हो सकें। साथ ही सामाजिक विषमता के कारण उत्पन्न होने वाली असमानताओं को समाप्त किया जा सके।
  • स्वतंत्रता-व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव, स्वतन्त्रता कहलाती है। दूसरे शब्दों में स्वतंत्रता वह स्थिति है। जिसमें अनावश्यक बाहरी प्रतिबन्ध न हो और व्यक्ति को अपने अंदर की क्षमताओं का विस्तार करने का पूरा मौका प्राप्त हो। |
  • अधिकार-अधिकार व्यक्ति के वे दावे होते हैं जिनको समान द्वारा मान्यता प्राप्त होती है और राज्य उन्हें संरक्षण प्रदान करता है।
  • सामाजिक न्याय-वह स्थिति जिसमें समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्राप्त हों तथा किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाए। इस प्रकार सामाजिक न्याय का सीधा-सा अभिप्राय यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों की अपनी गरिमा हो तथा उन्हें अपने विकास के समान अवसर बिना किसी भेदभाव के प्राप्त हों।
  • राजनीतिक न्याय–राजनीतिक न्याय का अर्थ है राज्य के मामलों में जनता की भागीदारी। सभी व्यक्तियों को वयस्कता के आधार पर मताधिकार देना एवं सरकारी पदों पर सबको समान अधिकार तथा चुनाव लड़ने का अधिकार प्रदान करना।
  • राज्य-राज्य एक राजनीतिक संगठन है जो सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों को नियन्त्रित, व्यवस्थित एवं समन्वित करता है। राज्य के प्रमुख तत्व हैं-
    • जनसंख्या,
    • भू-भाग,
    • सरकार एवं
    • प्रभुसत्ता।
  •  सुधारात्मक न्याय-ऐसा न्याय जो नागरिकों के अधिकारों की अन्य व्यक्तियों के द्वारा हनन की रोकथाम पर बल देता है। |
  • कानून-राज्य अपने सदस्यों के लिए जो निर्देशात्मक नियम बनाता है, उन्हें कानून या विधि कहते हैं।
  • उपयोगितावाद-उपयोगितावाद वह विचारधारा है जिसके अनुसार किसी भी कार्य के औचित्य का मापदण्ड उस कार्य द्वारा प्राप्त उपयोगिता-सुख में वृद्धि या दुख में कमी है।।
  • तानाशाही-शासन का वह प्रकार जिसमें शासक निरंकुश होता है। इसमें व्यक्ति के अधिकारों, उसकी स्वतंत्रताओं को कोई महत्व नहीं दिया जाता। व्यक्ति के अधिकार नहीं होते बल्कि कर्तव्य ही कर्तव्य होते हैं।
  • समाज-समाज संख्यात्मक आधार वाला वह मानव समुदाय है जो लक्ष्य की पूर्ति हेतु संगठित है तथा साहचर्य के आधार पर सम्बन्धों का निर्धारण करता है।
  • नैतिक न्याय-जब व्यक्तियों का आचरण सदाचारी होता है, तो उसे नैतिक न्याय कहते हैं।
  • कानूनी न्याय-वे समस्त नियम और कानून जिसका अनुसरण नागरिक स्वाभाविक रूप से करते हैं, कानूनी न्याय कहलाता है।
  • आर्थिक न्याय-आर्थिक न्याय का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन स्तर को सुधारने तथा आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने की स्वतंत्रता ।
  • वयस्क मताधिकार-18 वर्ष और उससे ऊपर के समस्त नागरिकों को मत देने का अधिकार जिसमें कार्य, नस्ल, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव न हो।
  • संविधान-किसी देश के शासन को चलाने के लिए नियमों व सिद्धान्तों के समूह को संविधान कहते हैं।
  • सांविधानिक शासन-संविधान के नियमों व सिद्धान्तों के अनुसार संचालित शासन व्यवस्था।
  • वर्ग संघर्ष-विभिन्न आर्थिक हितों वाले समूहों तथा जर्मीदार, पूँजीपति, सामंत, किसान एवं श्रमिक आदि के मध्य होने वाले असंतोष, रोष एवं असहयोग को वर्ग संघर्ष कहते हैं।
  • शुद्ध सत्तावादी प्रणाली-वह शासन प्रणाली जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण वितरण के मानदण्ड पहले से निर्धारित होते हैं।
  • शुद्ध प्रतिस्पर्धात्मक प्रणाली-इसके अन्तर्गत समस्त वितरण बाजार की शक्तियों की परस्पर क्रिया से निर्धारित होता है।
  • काल्पनिक साम्यवादी समाज-इसके अन्तर्गत अभाव की स्थिति नहीं होगी और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुसार चीजें उसे प्रदान की जाएँगी।
  • प्लेटो-यह यूनानी दार्शनिक एवं राजनीतिक विचारक था। इसने न्याय, आदर्श राज्य, शिक्षा और साम्यवाद के सम्बन्ध में विचार व्यक्त किये हैं।
  • अरस्तू-अरस्तू प्लेटो का शिष्य था। इसका ग्रन्थ ‘दि पॉलिटिक्स’ राजनीति शास्त्र की अमूल्य निधि है। इसमें अरस्तू ने पहली बार राजनीति को वैज्ञानिक रूप दिया है।
  • सन्त ऑगस्टाइन-इन्होंने ‘ईश्वरीय राज्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। अपने ग्रन्थों में इन्होंने न्याय को राज्य का महत्वपूर्ण एवं अपरिहार्य तत्व माना है। इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘द सिटी ऑफ गॉड’ है।
  • थॉमस एक्वीनास-यह मध्य युग का एक महान राजनीतिक विचारक था। फास्टर ने इसे विश्व का महान् क्रमबद्ध दार्शनिक कहा है। |
  • हॉब्स-यह एक महान् राजनीतिक विचारक थे। इन्होंने राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ‘सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।
  • डेविड ह्यूम-आधुनिक विचारक ह्यूम ने न्याय का अर्थ-नियमों का पालन मात्र बताया। इन्होंने सार्वजनिक उपयोगिता को न्याय का एकमात्र स्रोत माना। |
  • जैरेमी बेन्थम-एक अंग्रेज विचारक, इन्हें उपयोगितावाद का जनक माना जाता है।
  • जॉन लॉक-ये एक महान ब्रिटिश विचारक थे, जिन्होंने विभिन्न विषयों पर 40 से अधिक ग्रन्थों की रचना की थी।
  • जॉन स्टुअर्ट मिल (जे.एस.मिल)-मिल उपयोगितावाद के अन्तिम समर्थक और व्यक्तिवाद के अग्रणी विचारकों में है। इनकी मान्यता है कि उपयोगिता ही न्याय का मूल मन्त्र है।
  • कार्ल मार्क्स-जर्मन विचारक कार्ल मार्क्स को ‘वैज्ञानिक समाजवाद’ का जनक माना जाता है। कार्ल मार्क्स ने सामाजिक न्याय को विशेष महत्व दिया है। इनके द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘दास कैपिटल’ को साम्यवाद की बाईबिल कहा जाता है।
  • जॉन रॉल्स-जॉन रॉल्स अमेरिका के महान विचारक एवं दार्शनिक हैं। ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ इनकी उदारवादी राजनीतिक सिद्धान्त की महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है।
  • मनुः-विख्यात हिन्दू ऋषि तथा धर्मशास्त्रवेत्ता जिन्हें मानव जाति के जनक एवं प्रथम विधिवेता के रूप में जाना जाता है। मनुस्मृति इनकी प्रसिद्ध कृति है।
  • कौटिल्य-इन्हें चाणक्य का विष्णुगुप्त भी कहते हैं। नंदवंश का नाश करने व चन्द्रगुप्त मौर्य को राज सिंहासन दिलाने में सहयोग किया। इनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र शासन प्रबन्ध विषयक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। ये महान कूटनीतिज्ञ थे।
  • शुक्रे-प्रसिद्ध ग्रन्थ शुक्रनीति के रचनाकार इन्होंने राज्य व्यवस्था में न्याय को बहुत महत्वपूर्ण माना।

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