RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

  • सामाजिक आन्दोलन एक सामूहिक सामाजिक क्रिया है जिसका उद्देश्य वंचित समूहों के हितों की रक्षा करना और उनका संवर्द्धन करना है।
  • सामाजिक आन्दोलन लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सक्रिय सहभागी है जो राज्य के कल्याणकारी प्रयासों का पूरक है। सामाजिक आन्दोलन का श्रेणी विभाजन
  • सामाजिक आन्दोलनों को चार श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-
    • परिवर्तनकारी,
    • सुधारवादी,
    • उपचारवादी एवं
    • वैकल्पिक।
  • परिवर्तनकारी सामाजिक आन्दोलन प्रचलित सामाजिक संस्थानों और व्यवस्थाओं में पूर्णतया परिवर्तन के पक्षधर होते हैं। ये हिंसात्मक भी हो सकते हैं।
  • सुधारवादी आन्दोलन प्रचलित असमानताओं, सामाजिक समस्याओं के धीरे-धीरे सुधार के समर्थक होते हैं।
  • उपचारवादी आन्दोलन किसी एक व्यक्ति विशेष या समस्या पर केन्द्रित होते हैं तथा उस समस्या से मुक्ति पाने के लिये प्रयासरत रहते हैं।
  • वैकल्पिक आन्दोलन सम्पूर्ण सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तन लाकर एक अलग विकल्प स्थापित करने की बात करते हैं। इसमें सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन भी शामिल रहता है; जैसे-नारीवादी आन्दोलन
  • सामाजिक आन्दोलन एक नयी व्यवस्था अथवा पुरानी व्यवस्था में परिवर्तन के लिए सचेतन सामूहिक और संगठित प्रयास हैं।
  • सभी आन्दोलनों का उद्देश्य एक न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना होता है। नवीन सामाजिक आन्दोलनों की शुरुआत 1960 के दशक में पाश्चात्य औद्योगिक समाजों से हुई।
  • नवीन सामाजिक आन्दोलन सामान्यतया वामपंथी विचारों की ओर झुकाव रखते हैं तथा कई अवसरों पर इन्होंने राज्य की वैधता और शासन अधिकारों को चुनौती दी है।
  • वामपंथी धारा के विपरीत वनवासी कल्याण परिषद, सेवा भारती, शिक्षा बचाओ आन्दोलन जैसे अनेक संगठनों ने | राज्य की वैधता और भूमिका को चुनौती दिए बिना राज्य के कार्यों को सामाजिक स्तर पर गति प्रदान की है। इस प्रकार आन्दोलन की यह धारा रचनात्मक निर्माण की धारा के रूप में उभरकर सामने आई है।

नवीन सामाजिक आन्दोलन:

  • भारत में सक्रिय नवीन सामाजिक आन्दोलनों में प्रमुख हैं-कृषक अधिकार आन्दोलन, श्रमिक आन्दोलन, महिला सशक्तिकरण आन्दोलन, विकास के दुष्परिणामों के विरुद्ध आन्दोलन
  • कृषक आन्दोलनों का उद्देश्य मुख्य रूप से वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर में मुक्त बाजार व्यवस्था में भारतीयहितों की रक्षा करना है।
  • परम्परावादी श्रमिक आन्दोलन मुख्यतः औद्योगिक प्रतिष्ठानों व सरकार के साथ सौदेबाजी तक सीमित था किन्तु वैश्वीकरण के युग में भारतीय मजदूर संघ व स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन उभरकर सामने आए।
  • महिला सशक्तिकरण की अवधारणा एक लम्बे समय तक नारीवाद की पाश्चात्य अवधारणा से प्रभावित रही | जिसका मूल उद्देश्य नारी मुक्ति का नारा देकर भारतीय समाज और परिवार व्यवस्था को विखण्डित करना था। ये गैर सरकारी संगठनों द्वारा स्वार्थ व राजनीतिक विद्वेष के कारण संचालित किये जाते थे।
  • वर्तमान में अनेक समूहों ने महिला सशक्तिकरण हेतु सफल आन्दोलन चलाये हैं। उदाहरणार्थ-राष्ट्र सेविका समिति।
  • विकास के परिणामस्वरूप होने वाले कुछ दुष्परिणाम इस प्रकार हैं–नदियों पर बाँधों के कारण विस्थापन, नदी जल विवाद, सड़क एवं अन्य परियोजनाओं से विस्थापन, पर्यावरण क्षरण इत्यादि।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 15 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • सामाजिक आंदोलन — ऐसे आन्दोलन जो मुख्य रूप से किसी भी संगठन द्वारा सामाजिक समस्याओं पर चलाए जाते हैं तथा इनसे समाज को एक नई दिशा मिलती है, सामाजिक आन्दोलन कहलाते है। ऐसे आन्दोलनों का उद्देश्य वंचित समूहों के हितों की रक्षा करना और उनका संवर्द्धन करना है।
  • प्रतिनिध्यात्मक लोकतन्त्र — लोकतंत्र का वह रूप जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है और वे प्रतिनिधि शासन का संचालन करते हैं। इसे ही प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं। वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों में इस प्रकार का लोकतंत्र है।
  • उपचारवादी आन्दोलन — ये आन्दोलन किसी व्यक्ति विशेष या समस्या पर केन्द्रित होते हैं तथा उस समस्या के निराकरण हेतु चलाये जाते हैं।
  • वैकल्पिक आन्दोलन — इस प्रकार के आन्दोलन प्रचलित सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था में पूर्ण परिवर्तन के पक्षधर होते हैं।
  • नागरिक समाज–नागरिक समाज क्रियात्मक समाज के आधार को रूप देने वाले स्वैच्छिक नागरिक व सामाजिक संगठनों से बनता है। नागरिक समाज को लोकतन्त्र के निर्विघ्न संचालन की प्रमुख शर्त माना जाता है।
  • अन्ना आन्दोलन — यह आन्दोलन मुख्य रूप से लोकपाल की माँग को लेकर शुरू हुआ था। इसे जनता का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ। इस आन्दोलन के प्रवर्तक अन्ना हजारे थे।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन — नर्मदा नदी के बचाव में यह आंदोलन चलाया गया। इस आन्दोलन ने बांधों के निर्माण का विरोध किया। नर्मदा बचाओ आन्दोलन बांधों के निर्माण के साथ-साथ देश में चल रही विकास परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठता रहा है।
  • नक्सलवाद — यह कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों के उस आन्दोलन का औपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के परिणामस्वरूप आरम्भ हुआ। इस शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से हुई। चारू मजूमदार व कानू सान्याल पहले नक्सलवादी थे जिन्होंने इस गाँव से सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया।
  • वामपंथी धारा — वामपंथी विचारधारा के समर्थक समाज में परिवर्तन कर आर्थिक समानता लाना चाहते हैं। यह विचारधारा समाज के पिछड़े व कमजोर वर्गों से सहानुभूति रखती है।
  • औद्योगिकीकरण — यह एक सामाजिक व आर्थिक प्रक्रिया का नाम है। यह आधुनिकीकरण की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया है। इससे मनुष्य की सामाजिक व आर्थिक स्थिति बदल जाती है।
  • विस्थापन — किसी वस्तु या व्यक्ति को अपने स्थान से हटा देने की प्रक्रिया विस्थापन कहलाती है। अन्य शब्दों में, किसी स्थान पर बसे हुए लोगों को कहीं से बलपूर्वक हटाना और वह स्थान उनसे खाली करा लेना विस्थापन कहलाता है।
  • महिला सशक्तिकरण — महिलाओं को व्यापक पैमाने पर असमानता, उत्पीड़न, वित्तीय निर्भरता एवं अन्य सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ रहा है। इन कारणों से महिलाओं के विकास का मार्ग अवरुद्ध हो गया है। अतः विभिन्न माध्यमों से महिलाओं की स्थिति को उन्नत बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। यही महिला सशक्तिकरण है।
  • शेतकारी संगठन — यह महाराष्ट्र का एक कृषक अधिकार आन्दोलन है। इसने किसानों के आन्दोलन को इण्डिया की ताकतों (अर्थात् शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के विरुद्ध भारत अर्थात् ग्रामीण क्षेत्र का संग्राम करार दिया।

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