RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 19 भारत की संघीय व्यवस्था के आधारभूत तत्त्व

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 19 भारत की संघीय व्यवस्था के आधारभूत तत्त्व

  • सत्ता की शक्तियों के वितरण तथा स्तरों के आधार पर अपनायी जाने वाली शासन प्रणाली को संघवाद के नाम से जाना जाता है।
  • संघीय शासन प्रणाली के अंतर्गत शासन का संचालन केन्द्र तथा उसकी विभिन्न इकाइयों के माध्यम से होता है।
  • संघीय शासन का निर्माण भी प्रायः दो प्रकार से होता है। प्रथम, पूर्व में अनेक संप्रभु इकाइयों का आपस में एक हो जाना व द्वितीय, एक बड़ी राजनीतिक इकाई को शासन की कार्यकुशलता की दृष्टि से अलग-अलग इकाइयों में विभाजित कर देना।
  • वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, कनाडा तथा भारत जैसे देश एक सफल संघीय देश माने जाते हैं।
  • भारतीय संविधान में ‘संघवाद’ के स्थान पर “राज्यों का संघ” शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • संविधान लागू होने पर भारत में एक केन्द्रीय सत्ता तथा 14 राज्यों/प्रांतों की सत्ता स्थापित करके संघीय ढाँचे को मूर्त रूप प्रदान किया गया ।
  • वर्तमान में भारत में 29 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं, जहाँ केन्द्र द्वारा शासन का संचालन होता है।
  • भारतीय संघीय व्यवस्था के प्रमुख तत्व-भारतीय संघीय व्यवस्था के प्रमुख तत्व हैं-
    • शासन शक्तियों का स्पष्ट विभाजन,
    • संविधान की सर्वोच्चता,
    • निष्पक्ष व स्वतंत्र न्यायपालिका,
    • एकले नागरिकता,
    • केन्द्रीय व्यवस्थापिका में राज्यों का सदन-राज्यसभा,
    • राज्यपाल का पद,
    • एकात्मकता का प्रभुत्व।
  • संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत अनुच्छेद 246 द्वारा केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों को विभाजन सूची पद्धति के माध्यम से किया गया है।
  • संघीय सूची के 97 विषयों पर केन्द्र को विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त है।
  • राज्य सूची के 66 विषयों पर राज्यों को विधि निर्माण का अधिकार है जबकि समवर्ती सूची के 47 विषयों पर । केन्द्र तथा राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
  • केन्द्र की इस मजबूत स्थिति के कारण ही विशेषज्ञ भारत को “विनाशी राज्यों का अविनाशी संघ” की संज्ञा देते हैं तथा इसे केन्द्रीय वर्चस्व वाला संघवाद मानते हैं।
  • किसी भी संघीय व्यवस्था के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का होना अति आवश्यक है।
  • भारतीय संघवाद के अंतर्गत संविधान की सर्वोच्चता को स्थापित किया गया है।
  • भारत में केन्द्र तथा राज्य दोनों ही संविधान से अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं।
  • अमेरिकी संघवाद के विपरीत भारतीय विविधता के कारण ही संपूर्ण देश के लिए केवल एक ही संविधान की व्यवस्था की गई है।
  • पारंपरिक संघीय व्यवस्थाओं के विपरीत भारतीय संघवाद में संपूर्ण देश के लिए एकल नागरिकता का ही प्रावधान है।
  • भारतीय संघवाद को सुदृढ़ करने के लिए ही केन्द्रीय व्यवस्थापिका अर्थात् संसद के उच्च सदन-राज्यसभा को राज्य की प्रतिनिध्यात्मक संस्था के रूप में स्थापित किया गया है।
  • राज्यपाल केन्द्र द्वारा नियुक्त होकर राज्य में केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
  • सशक्त केन्द्र वाले भारतीय संघवाद ने वस्तुतः भारत की एकता व अखंडता को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका | निभायी है।
  • एकात्मक लक्षण- भारतीय संविधान को एकात्मक रूप देने वाले प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
    • एक संविधान,
    • अवशिष्ट शक्ति,
    • संविधान संशोधन,
    • शक्तियों का विभाजन,
    • एकल नागरिकता,
    • आपातकालीन शक्ति,
    • राज्यसभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व,
    • प्रारम्भिक बातों में एकरूपता,
    • एकल संगठित न्याय व्यवस्था,
    • राज्यों को पृथक अधिकार नहीं,
    • लोक सेवाओं का विभाजन नहीं,
    • सीमाओं में परिवर्तन हेतु राज्यों की सहमति अनिवार्य नहीं।
  • भारत में केन्द्र तथा राज्यों के लिए एक ही संविधान है, इसका अपवाद जम्मू-कश्मीर राज्य है। जहाँ राज्य का अपना एक संविधान है। भारत में समस्त देश के लिए एक ही संविधान है, जिसमें केन्द्र तथा राज्यों के शासन की व्यवस्था के संबंध में प्रावधान हैं।
  • भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 248 के अनुसार अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र सरकार को प्रदान की गयी हैं।
  • अवशिष्ट शक्ति का अर्थ किसी ऐसे विषय से है जो तीनों में से किसी भी सूची में अंकित नहीं है। यह व्यवस्था भारतीय संविधान में कनाडा के संविधान से ली गयी है।
  • संविधान के अधिकांश भाग को संसद साधारण बहुमत से निश्चित विधि द्वारा परिवर्तित कर सकती है।
  • संविधान में शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में है। संघ सूची में राज्य सूची की अपेक्षा बहुत महत्वपूर्ण विषय अंकित किए गए हैं।
  • शक्तियों का विभाजन केन्द्र को शक्तिशाली बनाता है जो कि एकात्मक सरकार का मुख्य लक्षण है।
  • अनुच्छेद 352 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से देश की सुरक्षा खतरे में है, तो समस्त देश
  • में या देश के किसी एक भाग में वह आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है।
  • अनुच्छेद 356 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को राज्य के राज्यपाल या किसी अन्य साधन द्वारा सूचना मिलने पर विश्वास हो जाए कि उस राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राज्य का शासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
  • अनुच्छेद 360 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके कारण भारत या इसके किसी भाग की वित्तीय स्थिरता संकट में है तो वह उस समय वित्तीय संकट की घोषणा करे सकता है।
  • भारत में प्रत्येक न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के अधीन कार्य करता है।
  • राज्यों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। इसी प्रकार राज्यों के छोटे न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीन होते हैं।
  • अमेरिकी संविधान के विपरीत भारतीय संविधान के अनुसार संघीय संसद राज्यों की सहमति के बिना भी राज्यों का पुनर्गठन अथवा उनकी सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 के अंतर्गत अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन से संबंधित प्रावधान किए गए हैं।
  • राज्यों के अधीन सेवा करते हुए भी अखिल भारतीय सेवा के सदस्य को केवल संघीय सरकार द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है।

भारतीय संघवाद की प्रवृत्तियाँ:

  • भारतीय संघवाद, संविधानविद् के.सी. व्हीयर के शब्दों में “अर्द्धसंघीय” है। ग्रीन विले ऑस्टिन ने इसे सहयोगी संघवाद माना है।
  • भारतीय संघवाद विशुद्ध सैद्धांतिक संघवाद नहीं है। विशिष्ट बहुलवादी परिस्थितियों में इसे एकात्मक शक्ति प्रदान की गई है।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद् तथा क्षेत्रीय परिषदें साथ ही नीति आयोग इत्यादि जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं से संघवादी स्वरूप में राज्य की भागीदारी को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।
  • साझा सरकारों के दौर में केन्द्र की स्थिति स्वाभाविक रूप से कमजोर होती गई।
  • केन्द्र सरकार ने केन्द्र राज्य सम्बन्धों में सुधार के रास्ते सुझाने हेतु सरकारी आयोग का गठन किया था, जिसने मजबूत केन्द्र परन्तु सुदृढ़ राज्यों का सुझाव दिया।

महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

1955 ई. — धारा 356 के उपयोग को लेकर इस वर्ष केन्द्र और राज्यों के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
2. 1963 ई. — इस वर्ष संविधान के 16वें संशोधन द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि संघ से अलग होने के पक्ष पोषण को वाक् स्वातंत्र्य संरक्षण प्राप्त नहीं होगा।
3. 1967 ई. — 1967 के बाद से ही राज्यों व केन्द्र के बीच विवादों में वृद्धि होती चली गई थी।
4.1983 ई. — केन्द्र सरकार द्वारा सरकारिया आयोग का गठन किया गया ।
5.1985 ई. — सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मजबूत केन्द्र के साथ सुदृढ़ राज्यों का सुझाव दिया है।
6.1990 ई. — वर्ष 1990 के बाद साझा सरकारों के दौर में केन्द्र की स्थिति कमजोर होती चली गई।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 19 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • सत्ता — संवैधानिक प्राधिकरण द्वारा व्यक्ति के ऊपर प्रयोग की जाने वाली शक्ति को सत्ता कहते हैं।
  • संघवाद — सत्ता की शक्तियों के वितरण एवं स्तरों के आधार पर अपनायी जाने वाली शासन प्रणाली को संघवाद कहते हैं।
  • संविधान — जिस प्रलेख में कानूनों और विधियों का उल्लेख हो, सरकार के प्रकार का वर्णन हो तथा सरकार और नागरिकों के सम्बन्धों का विवरण मिलता है, उसे संविधान कहा जाता है।
  • केन्द्रीय व्यवस्थापिका — सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग। इसका मूल कार्य कानून का निर्माण करना होता है। भारत में केन्द्रीय व्यवस्थापिका को संसद कहा जाता है।
  • राज्यसभा — भारत की राष्ट्रीय विधायिका। व्यवस्थापिका (संसद) के उच्च सदन को राज्यसभा कहते हैं। इसके सदस्य अप्रत्यक्ष मतदान द्वारा 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। यह स्थायी सदन है।
  • राज्यपाल — राज्य का संवैधानिक प्रमुख। इसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा होती है। सामान्यत: इसका कार्यकाल 5 वर्ष होता है।
  • राज्य विधानमण्डल — राज्य की व्यवस्थापिका को राज्य विधानमण्डल कहते हैं। इसके दो सदन हैं–(i) विधान सभा (ii) विधान परिषद ।
  • राष्ट्रपति — देश का संवैधानिक प्रमुख।
  • आपातकाल — सम्पूर्ण या क्षेत्र विशेष में उत्पन्न राजनीतिक आर्थिक संकट की स्थिति/भारतीय संविधान में राष्ट्रीय आपातकाल लागू करने का प्रावधान है। ऐसी घोषणा भारत का राष्ट्रपति कर सकता है।
  • संसद — भारत की केन्द्रीय व्यवस्थापिका/विधायिका को संसद के नाम से जाना जाता है। संसद राष्ट्रपति, लोकसभा व राज्यसभा से मिलकर बनती है।
  • संघीय सूची — भारतीय संविधान द्वारा प्राप्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार को होता है। संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार व मुद्रा आदि राष्ट्रीय महत्व के विषय सम्मिलित हैं।
  • राज्य सूची — भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्य सरकार को ही होता है। राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि व सिंचाई आदि प्रांतीय व स्थानीय महत्व के विषयं सम्मिलित हैं।
  • समवर्ती सूची — भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त वह सूची जिसमें वर्णित विषयों पर केन्द्र व राज्य सरकार ये दोनों कानून बना सकते हैं। समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, विवाह, मजदूर संघ, आदि विषय सम्मिलित हैं।
  • अवशिष्ट सूची — सत्ता के विभाजन में जिन विषयों को सम्मिलित नहीं किया गया है। वह अवशिष्ट सूची में सम्मिलित हैं। हमारे संविधान के अनुसार अवशिष्ट सूची के विषय केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
  • एकल नागरिकता — एकल नागरिकता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक है। चाहे वह किसी भी स्थान पर निवास करता हो या किसी भी स्थान पर उसका जन्म हुआ हो।
  • साझा सरकारें — लोकसभा/विधानसभा में एक दल को बहुमत न मिलने पर कई दलों द्वारा मिलकर बनाई गई सरकार साझा सरकारें कहलाती हैं।
  • विधि को शासन — कानून का शासन, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, अगड़े-पिछड़े सभी कानून की नजर में बराबर हैं, यही विधि का शासन कहलाता है।
  • जी. एस. टी. (GST) — वस्तु व सेवाकर। संविधान में 101 वाँ संशोधन इसी से सम्बन्धित है। इस पर राष्ट्रपति ने सितम्बर 2016 में हस्ताक्षर किए थे।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद — 1952 ई. में स्थापित संस्था। इसका उद्देश्य राज्यों को योजनाओं के निर्माण में सहभागी बनाना था। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं।
  • अन्तर्राज्यीय परिषद — संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत गठित परिषद। इसका मुख्य कार्य राज्यों के मध्य उत्पन्न होने वाले विवादों की जाँच करना एंव समाधान हेतु परामर्श देना है।
  • क्षेत्रीय परिषद — इसका गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य जनता में भावनात्मक एकता उत्पन्न करना तथा क्षेत्र के एकीकृत एवं शीघ्र विकास हेतु कार्य करना है।
  • नीति आयोग — केन्द्र सरकार द्वारा एक जनवरी 2015 को योजना आयोग के स्थान पर गठित आयोग। यह सरकार के थिंक टैंक के रूप में कार्य करेगा।
  • एकात्मक शासन — यह शासन व्यवस्था जिसमें संविधान द्वारा राज्य की सम्पूर्ण शासन शक्ति केन्द्र सरकार में । निहित रहती है। एकात्मक शासन कहलाती है।
  • के. सी. व्हीयर — प्रसिद्ध संविधानविद् । इन्होंने भारतीय संघवाद को अर्द्धसंघीय कहा।।
  • ग्रेनविले ऑस्टिन — प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ। इन्होंने भारतीय संघवाद को सहयोगी संघवाद कहा।
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर — भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष। इन्होंने भारतीय संघवाद को कठोर संघीय ढाँचा मानने से इनकार कर दिया।
  • मोरस जोन्स — प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक। इन्होंने भारतीय संघवाद को सौदेबाजी वाला संघवाद माना।
  • सीनेट — संयुक्त राज्य अमेरिका की व्यवस्थापिका का द्वितीय सदन ।
  • सहयोगी संघवाद — ऐसी संघीय शासन व्यवस्था जिसमें संघ और राज्य सरकारों के मध्य सहयोग की भावना व्याप्त रहती है। इसमें प्रतिद्वन्द्विती, संघर्ष और दमन के स्थान पर सहयोग, समन्वय और अनुनय पर बल दिया जाता है। ग्रीन विले ऑस्टिन नामक विद्वान ने भारतीय संघवाद को सहयोगी संघवाद कहा है।

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