RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 24 जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 24 जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता

जाति और जातिवाद का स्वरूप:

  • जाति एक सामाजिक संरचना है, जो अति प्राचीन काल से ही भारत में देखने को मिलती है।
  • समाज में आधुनिक पश्चिमी राजनीतिक संस्थाओं के साथ लोकतंत्र स्वीकार करने के बावजूद जातिवाद समाप्त नहीं हुआ है।
  • जातीय संगठनों की उचित, अनुचित माँगों का समर्थन कर उन्हें अपना वोट बैंक बनाने का प्रयास किया गया है, जिससे जातियों में आपसी वैमनस्य पैदा हुआ है।
  • वोट राजनीति ने न केवल जातीय भावनाएँ भड़काने का प्रयास किया बल्कि आपसी जातीय तनाव भी पैदा किया है।
  • समाज में विभिन्न वर्गों को नियमित करने के लिए वर्ण व्यवस्था का उद्भव हुआ था, जो कर्म व व्यवसाय के सिद्धांत पर आधारित थी।
  • जाति-प्रथा आधुनिक काल में जातिवाद के रूप में विकसित हुई जिसने भारत की एकता तथा अखंडता को गंभीर चुनौती प्रदान की है।
  • अंग्रेजों द्वारा दलित वर्गों के लिए भी पृथक् निर्वाचन की व्यवस्था लागू करने की कोशिश की गयी, जिसका गाँधी जी ने विरोध किया। इसी मुद्दे पर गांधी जी एवं डॉ. भीमराव अंबेडकर के बीच “पूना पैक्ट हुआ। जिसमें इन वर्गों के उचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था स्वीकार की गयी।
  • वोट बैंक बनाकर चुनाव जीत कर सत्ता पर कब्जा कर सत्ता सुख भोगने की राजनीतिक दलों एवं जन प्रतिनिधियों की आकांक्षा ने जातिवाद को सदैव बढ़ावा दिया।
  • वर्तमान में जातिवाद ने न केवल यहाँ की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक प्रवृत्तियों को प्रभावित किया है, अपितु राजनीति को भी सर्वाधिक प्रभावित किया है।
  • जहाँ सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में जाति की शक्ति घटी है वहीं राजनीति एवं प्रशासन पर इसके बढ़ते हुए प्रभाव | को राजनीतिज्ञों, प्रशासनिक अधिकारियों एवं केन्द्र व राज्य सरकारों ने स्वीकार किया है।
  • राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए जातिवाद को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
  • जाति एक ऐसा सामाजिक समूह होता है जो दूसरों से अपने को अलग मानता है जिनकी अपनी-अपनी विशेषता | होती है, अपनी परिधि में ही वैवाहिक संबंध स्थापित होता है तथा जिसका कोई परंपरागत व्यवसाय होता है।

भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका:

  • भारतीय राजनीति में जाति बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।
  • जयप्रकाश नारायण के अनुसार भारत में “जाति एक महत्वपूर्ण दल है।”
  • भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका के निम्नलिखित रूप हैं-
    • निर्णय प्रक्रिया में जाति की भूमिका
    • राजनीतिक दलों में जातिगत आधार पर प्रत्याशियों का निर्णय
    • जातिगत आधार पर मतदान व्यवहार
    • मंत्रिमंडल के निर्माण में जातिगत प्रतिनिधित्व
    • जाति एवं प्रशासन
    • जातिगत दबाव समूह
    • चुनाव प्रचार में जाति का सहारा
    • राज्य राजनीति में जाति
    • जाति के आधार पर राजनीतिक अभिजनों का उदय

जातिगत राजनीति की विशेषताएँ:

  • जातीय संघों अथवा संगठनों ने जातिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा को बढ़ाया है।
  • जातीय नेतृत्व जातीय हितों के मुद्दों को उठाकर जाति में अपना समर्थन बढ़ाकर राजनीतिक लाभ उठाते हैं।
  • जाति एवं राजनीति के संबंध गतिशील होते हैं, अर्थात् एक जैसे नहीं रहते हैं।
  • जाति के राजनीतिकरण के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर राजनीति का जातीयकरण भी हो रहा है।

जाति का सकारात्मक प्रभाव:

  • जाति एवं राजनीति के संबंध ने लोगों को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है। दूर-दूर रहने वाले एक ही जाति के लोग जातीय पंचायतों में एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं। विकसित संचार की तकनीक के कारण एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखते हैं।
  • जाति से लोगों में सामाजिकता एवं एकता की भावना का विकास होता है।
  • जाति की राजनीति ने अधिक लोगों में राजनीतिक सक्रियता पैदा की है।
  • जाति की राजनीति ने समाज की संस्कृति को प्रभावित किया है। समाज की सभी जातियों के खान-पान, वेशभूषा, रहन-सहन तथा आचार-विचार में निम्न जातियाँ उच्च जातियों का अनुसरण करती हैं। इससे समाज में सांस्कृतिक एकता की स्थापना होती है।
  • रूडोल्फ तथा रूडोल्फ के अनुसार जाति की राजनीति ने जातियों के मध्य मतभेदों को कम किया है। इससे विभिन्न जातियों के सदस्यों में समानता आयी है।

जाति को नकारात्मक प्रभाव:

  • अपने-अपने जातीय हितों के संघर्ष के कारण वैमनस्यता पैदा होती है, तथा समाज में तनाव एवं संघर्ष का | वातावरण पैदा होता है।
  • जातियाँ अपने हितों के लिए संघर्ष करती ही हैं तथा अनेक बार सरकार के दबाव में लिए गए निर्णयों से भी देश एवं समाज में अशांति पैदा हो जाती है।
  • जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप पिछड़े वर्गों में शामिल जातियों एवं अन्य जातियों में आपसी अविश्वास का वातावरण पैदा हो गया।
  • जाति के आधार पर चुनाव लड़ना एवं जातिगत आग्रह के आधार पर मतदान करना जातिवाद का ही परिणाम है।
  • जातिवाद की भावना के कारण लोग राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा जातीय हितों को प्राथमिकता देने लग जाते हैं।
  • स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के लिए राजनीतिक दलों का गठन आर्थिक एवं राजनीतिक विचारधारा पर होना चाहिए। जातिवादी भावना से सिद्धांत एवं विचार गौण हो जाते हैं।
  • जातिवादी सोच रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है, जिससे वैज्ञानिक एवं प्रगतिशील दृष्टिीकोण का विकास नहीं हो पाता है।
  • जातिगत विचारधारा से औद्योगिक विकास एवं व्यापार का भारी नुकसान होता है।
  • जातिवाद स्वतंत्रता तथा समानतावादी मूल्यों के विरुद्ध होता है।
  • जाति तथा समूह के आतंक से मुक्त रखना ही लोकतंत्र का आग्रह है।
  • सरकारें बड़ी एवं शक्तिशाली जातीय संगठनों के दबाव में कार्य करती हैं।
  • जातिवाद लोकतंत्रीय भावना के विरुद्ध होता है।
  • जाति समाज में फूट, विखंडन व संकीर्ण हितों को बढ़ावा देती है।

साम्प्रदायिकता : अर्थ एवं परिभाषा:

  • जब एक धार्मिक एवं भाषायी समूह या समुदाय समझ-बूझकर अपने को अलग वर्ग मानकर धार्मिक-सांस्कृतिक भेदों के आधार पर राजनीतिक माँगे रखता हैं, अपनी माँगों को राष्ट्रीय एवं सामाजिक हितों से अधिक प्राथमिकता देता है, उसे साम्प्रदायिता कहा जा सकता है।
  • साम्प्रदायिकता के अंतर्गत वे सभी भावनाएँ व क्रियाकलाप आ जाते हैं जिनमें किसी धर्म एवं भाषा के आधार पर किसी समूह विशेष के हितों पर बल दिया जाए, उन हितों को राष्ट्रीय हितों से भी अधिक प्राथमिकता दी जाये तथा उस समूह में पृथकता की भावना उत्पन्न की जाए या उसको प्रोत्साहित किया जाए।

साम्प्रदायिक संगठनों का उद्देश्य:

  • साम्प्रदायिक संगठनों का उद्देश्य शासकों के ऊपर दबाव डालकर अपने सदस्यों के लिए अधिक सत्ता, प्रतिष्ठा एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त करना होता है।

साम्प्रदायिकता का उदय:

  • भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या ब्रिटिश शासन की समकालीन है।
  • ब्रिटिश सरकार की “फूट डालो और राज करो’ नीति साम्प्रदायिकता का कारण थी।
  • भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के निर्माण एवं विकास में जितना हांथ अंग्रेजों की कूटनीतिक चाल का रहा उतना ही हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच राजनीतिक संघर्षों का भी रहा।
  • ब्रिटिश सरकार की नीतियों के कारण भारत में साम्प्रदायिकता बढ़ती रही।
  • साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति की शुरूआत कर ब्रिटिश सरकार ने इस समस्या को ओर अधिक बढ़ाया।
  • 1940 ई. में मोहम्मद अली जिन्ना ने द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रतिपादन किया। अंत में 1947 ई. में साम्प्रदायिकता के आधार पर भारत का विभाजन हो गया।

साम्प्रदायिक समस्या के कारण:

भारत में साम्प्रदायिक समस्या के प्रमुख कारण हैं-

  • विभाजन की कटु स्मृतियाँ
  • राजनीतिक दलों द्वारा निहित स्वार्थों के लिए पृथक्करण की भावना पनपाना
  • मुसलमानों का आर्थिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ापन
  • सरकार की उदासीनता
  • पाकिस्तानी प्रचार एवं षडयंत्र
  • दलीय राजनीति, गुटीय राजनीति और चुनावी राजनीति
  • तुष्टिकरण की राजनीति
  • विदेशी धन
  • वोट बैंक की राजनीति।

साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम:

साम्प्रदायिक समस्या के कारण देश को कई दुष्परिणामों का सामना करना पड़ता है। जिसमें प्रमुख हैं-

  • समाज में फूट, आपसी द्वेष व अविश्वास का पैदा होना
  • साम्प्रदायिक दंगों के भड़कने में आर्थिक हानि
  • साम्प्रदायिक दंगों में सैकड़ों लोगों का मर जाना
  • राजनीतिक अस्थिरता का उत्पन्न होना
  • राष्ट्रीय एकता व भाईचारे की भावना को नष्ट होना
  • राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होना
  • औद्योगिक एवं व्यावसायिक विकास में बाधा उत्पन्न होना।

साम्प्रदायिकता को दूर करने के उपाय:

साम्प्रदायिकता को दूर करने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-

  • सरकारें व्यावहारिक रूप में समानता की स्थापना का प्रयास करें।
  • शिक्षा में शाश्वत नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को सम्मिलित किया जाए।
  • धार्मिक आधार पर किसी वर्ग विशेष को कोई विशेष सुविधा प्रदान न की जाए।
  • तुष्टीकरण की नीति का परित्याग कर सरकार को सबके लिए समान आचार संहिता का निर्माण करना चाहिए।
  • किसी भी दल को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चुनाव प्रचार में धर्म का सहारा लेने से रोकने हेतु दृढ़ व सुनिश्चित नियमों का निर्माण वे क्रियान्वयन अति आवश्यक है।
  • हिंदी संपूर्ण देश की संपर्क भाषा बन सके इसके लिए राजनीति से ऊपर उठकर प्रयत्न किया जाना चाहिए।
  • सर्वधर्म समभाव’ को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, जिससे लोगों को एक-दूसरे के धर्म की जानकारी मिले और धार्मिक सहिष्णुता पैदा हो ।
  • ध। के नाम पर राजनीतिक दलों के गठन पर रोक लगानी चाहिए।

सच्चर कमेटी प्रतिवेदन 2006:

  • भारतीय मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन करने एवं उसमें सुधार करने के लिए सुझाव देने हेतु राजेन्द्र सिंह सच्चर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया।
  • सच्चर कमेटी ने मुसलमानों की स्थिति को अध्ययन कर कुछ सुझाव दिए जिनमें अल्पसंख्यकों के विकास व | कल्याण के लिए 15 सूत्री कार्यक्रम एवं मुस्लिम बालिकाओं के लिए सुविधाएँ आदि प्रमुख हैं।
  • भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण को अस्वीकार किया गया है।

अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं संबंधित घटनाएँ:

सन् 1905 ई. — 1905 ई. में ‘लार्ड कर्जन’ ने सांप्रदायिक आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया था।
सन् 1906 ई. — भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के नाम पर 1906 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ की स्थापना हुई।
सन् 1940 ई. — 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना ने द्विराष्ट्र सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया।
सन् 1947 ई. — 1947 में सांप्रदायिकता के आधार पर भारत का विभाजन हुआ।
सन् 1950 ई. — 1950 से लेकर अब तक जितने भी दंगे हुए, उनमें से अनेक का परोक्ष कारण दलीय एवं गुटीय राजनीति ही रही है।
सन् 1981 ई. — 1981 से 1993 के मध्य पाकिस्तान ने भारत में हिंदुओं एवं सिक्खों के बीच सांप्रदायिक वैमनस्य को पैदा करने एवं बनाए रखने का हर संभव प्रयास किया।
सन् 1993 ई. — मार्च 1993 की बंबई बम विस्फोट की घटनाएँ पाकिस्तानी षड्यंत्र का परिणाम र्थी, जिसका उद्देश्य हिंदुओं व मुसलमानों में खूनी संघर्ष कराना था।
सन् 2006 ई. — 2006 में भारतीय मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन करने व उसमें सुधार लाने के लिए सुझाव देने हेतु सेवानिवृत्त न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह सच्चर’ की अध्यक्षता में सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने मुसलमानों की स्थिति का अध्ययन कर कुछ सुझाव दिए.

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 24 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • जाति — जब एक वर्ग पूर्णतः आनुवंशिकता पर आधारित होता है तो हम उसे जाति कहते हैं। यह एक ऐसा सामाजिक समूह होता है जो दूसरों से अपने को अलग मानता है, जिसकी अपनी-अपनी विशेषताएँ होती हैं, इसके सदस्य अपनी परिधि में हीं वैवाहिक संबंध स्थापित करते हैं जिनका कोई परम्परागत व्यवसाय होता है।
  • जातिवाद — जाति के प्रति उग्र लगाव की भावना को जातिवाद कहते हैं अर्थात् व्यक्ति को अपनी जाति के प्रति अत्यधिक लगाव, अपने आपको अन्य जातियों से पूर्णतया अलग समझने की प्रवृत्ति तथा प्रशासन और राजनीति में भी जाति के आधार पर आचरण ही जातिवाद कहलाता है।
  • संप्रदाय — एक धार्मिक समूह जिसमें एकान्तिकता, अपेक्षाकृत मानसिक गतिशीलता, गतिहीनता किसी पंथ विशेष के विचारों के अंध एवं हठधर्मी अनुसरण की विशेषताएं पायी जाती हैं, संप्रदाय कहलाता है। कभी-कभी इसका संगठन राजनीतिक आधार पर होता है, किंतु दर्शन एवं विचारों की दृष्टि से इसकी मूल प्रकृति धार्मिक ही होती है।
  • दबाव समूह — समान हित वाले लोगों के समूह को दबाव समूह कहते हैं। ये अपने हितों को प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव बनाते हैं। उदाहरण के लिए मजदूर संगठन, जातीय संगठन, व्यावसायिक संघ आदि।
  • संघ शासन — संघ शासन से आशय देश की सरकार अर्थात् केन्द्रीय सरकार से है।
  • स्थानीय शासन — स्थानीय शासन से आशय स्थानीय स्तर के उस शासन से है जिसमें शासन का संचालन उन संस्थाओं द्वारा किया जाता है जो जनता द्वारा चुनी जाती हैं तथा जिन्हें केन्द्रीय अथवा राज्य शासन के नियंत्रण में रहते हुए नागरिकों की स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकार एवं दायित्व प्राप्त होते हैं।
  • लोकतंत्र — जब प्रभुसत्ता का वास सम्पूर्ण जनता में होता है तो उसे लोकतंत्र या प्रजातंत्र कहते हैं। इसमें जनता के प्रतिनिधियों या जनता का शासन होता है।
  • सत्ता — सांविधानिक प्राधिकरण द्वारा व्यक्ति के ऊपर प्रयोग की जाने वाली शक्ति को सत्ता कहते हैं।
  • मंत्रिमंडल — भारतीय शासन व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई। इसके द्वारा ही समस्त शासन व्यवस्था का संचालन किया जाता है। इसे भारतीय शासन व्यवस्था का हृदय भी कहा जाता है। |
  • साम्प्रदायिकता — जब एक धार्मिक, सांस्कृतिक तथा भाषाई समूह अथवा समुदाय समझ-बूझकर अपने को अलग वर्ग मानकर धार्मिक, सांस्कृतिक भेदों के आधार पर राजनीतिक माँगे रखता है। अपनी माँगों को राष्ट्रीय तथा सामाजिक  हितों से अधिक प्राथमिकता देता है तो उसे साम्प्रदायिकता कहा जाता है।
  • राजनीतिक दल — राजनीतिक दल लोगों का एक समूह होता है जो चुनाव लड़ने एवं सरकार में राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्य करता है।
  • आरक्षण — भेदभाव के शिकार, वंचित तथा पिछड़े लोगों एवं समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों तथा शैक्षिक संस्थाओं में पद तथा सीटें आरक्षित करने की नीति आरक्षण कहलाती है।
  • जयप्रकाश नारायण — प्रसिद्ध राजनेता। इनके अनुसार जाति भारत में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण दल है।
  • राजेन्द्र सिंह सच्चर — भारतीय मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन व सुधार लाने के लिए गठित सच्चर कमेटी के अध्यक्ष । ये सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं।

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