RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 25 क्षेत्रवाद एवं भाषावाद

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 25 क्षेत्रवाद एवं भाषावाद

  • भारत विविधताओं वाला देश है, जहाँ पर भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा भाषायी आदि आधारों पर भिन्नताएँ विद्यमान हैं।
  • स्वतंत्रता के समान हमारा देश आर्थिक दृष्टि से अधिक सक्षम देश नहीं था।
  • अंग्रेजों द्वारा हमारी अर्थव्यवस्था का अत्यधिक दोहन व प्रांतों का असंतुलित विकास इसका प्रमुख कारण रहा है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भारतीय संघीय सरकार ने राज्य पुनर्गठन व अन्य उपायों द्वारा असंतुलन की अवस्था को ठीक करने का प्रयास किया।
  • राज्यों का निर्माण, ब्रिटिश प्रान्तों के विलय, देशी रियासतों के एकीकरण एवं राजनीतिक सामाजिक एकीकरण के, फलस्वरूप हुआ।
  • जाति, धर्म, पंथ तथा व्यक्ति विशेष की अग्रणी छवि आदि ने भी राज्य पुनर्गठन की प्रक्रिया को प्रभावित किया।

क्षेत्रवाद क्या है?:

  • स्थानीय निवासियों द्वारा संघ या राज्य की तुलना में किसी क्षेत्र विशेष या प्रान्त से लगाव व उसकी प्रोन्नति के प्रयास क्षेत्रवाद की श्रेणी में आते हैं।
  • क्षेत्रवाद का उद्देश्य है अपने संकीर्ण क्षेत्रीय स्वार्थों की पूर्ति करना।
  • क्षेत्रवाद एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमें क्षेत्र विशेष के लोग आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक शक्तियों की अन्य से अधिक माँग करते हैं।

क्षेत्रवाद के कारण:

क्षेत्रवाद के प्रमुख कारण हैं प्रकृति प्रदत्त भिन्नताएँ एवं असमानताएँ-

  • प्रशासनिक भेदभाव,
  • केन्द्रीय निवेश व विकास सम्बन्धी भिन्नता,
  • सांस्कृतिक भिन्नताएँ,
  • ऐतिहासिक व राजनीतिक कारण,
  • भाषायी विविधता आदि।

संकीर्ण क्षेत्रीय आकांक्षाओं के कारण राष्ट्र को उनके दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। इनमें प्रमुख है

  • देश की अखण्डता को चुनौती,
  • नए राज्यों के निर्माण की माँग,
  • क्षेत्रीय राजनीति व राजनीतिक दलों की बहुलता,
  • स्वयं भू नेताओं का उदय,
  • भूमि पुत्र की अवधारणा,
  • राष्ट्रीय कानूनों व आदेशों को चुनौती,
  • अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में देश की साख का खराब होना।

क्षेत्रवाद की समस्या का समाधान:

क्षेत्रवाद की समस्या के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं

  • संतुलित राष्ट्रीय नीति निर्माण,
  • राज्यों में स्थाई आधारभूत ढाँचागत विकास को प्राथमिकता,
  • विकास के विशेष कार्यक्रमों का परियोजना के रूप में प्रारम्भ किया जाना,
  • सांस्कृतिक भिन्नता को एकीकरण की शक्ति बनाना,
  • प्रशासनिक दृष्टि से छोटे राज्यों का गठन,
  • भाषायी विविधता का सामान आदि।

भाषावाद की स्थिति:

  • क्षेत्रीय भाषा को हिन्दी से श्रेष्ठ मानने की प्रवृत्ति से भाषावाद पनपा है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि भारत संघ की राजभाषा हिंदी होगी।
  • हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग व क्षेत्रीय भाषाओं की स्थिति पर सुझाव देने हेतु राष्ट्रपति द्वारा भाषा आयोग के गठन का भी प्रावधान है।
  • भाषा आयोग देश की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के संबंध में अहिंदी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों की उचित माँगों पर भी विचार करेगा।
  • संविधान राज्य के विधानमंडलों को भी यह अधिकार प्रदान करता है कि वे उस राज्य में राजकीय प्रयोजन हेतु हिंदी या उस राज्य की क्षेत्रीय भाषा को स्वीकार कर सकेगा।
  • भाषा आयोग में भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की पूर्ण रक्षा के भी स्पष्ट प्रावधान हैं। .
  • 1955 ई. में प्रोफेसर बी. जे. खरे की अध्यक्षता में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया गया।
  • 1967 ई. के राजभाषा संशोधन अधिनियम के त्रिभाषा फॉर्मूला को लागू करने का सुझाव आया। इसके तहत राजकीय सेवाओं में पत्राचार के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाएँ हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य प्रादेशिक भाषा में ली जाएंगी।
  • भारत में त्रिभाषा फॉर्मूला अपनाया गया है- राजभाषा हिन्दी, सम्पर्क भाषा अंग्रेजी व एक क्षेत्रीय भाषा जो संविधान की सूची में विद्यमान है।
  • भाषा के आधार पर नए राज्यों के निर्माण की मांग में ही भाषावाद की संकीर्णताएँ निहित हैं।
  • भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन एवं दक्षिण के कुछ राज्यों में हिंदी विरोधी आंदोलन विचारणीय मुद्दे रहे हैं।
  • हिंदी साम्राज्यवाद” को असुरक्षा भाव समाप्त कर अहिंदी भाषी क्षेत्रों में विश्वास स्थापित करना देश की प्राथमिकता होनी चाहिए, जिससे “त्रिभाषा फॉर्मूला” व्यावहारिक रूप धारण कर सके। .पारिवारिक एवं क्षेत्रीय भाषाएँ कभी भी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं ले सकती हैं और न ही इन्हें देश की राजभाषा से कोई चुनौती महसूस होनी चाहिए।
  • भाषायी आधार पर आंदोलन कर कुछ स्वयंभू नेता अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं। आम नागरिक को यह समझना और समझाना अति आवश्यक है।
  • हिंदी का प्रचार-प्रसार सुनियोजित तरीके से सभी को विश्वास में लेकर किया जाए।
  • शासन का यह दायित्व बनता है कि वे संसाधनों, रोजगार के अवसरों का समान वितरण बिना किसी भाषायी भेदभाव के करें।
  • देश में सर्वत्र कानून का शासन होना चाहिए, न कि भाषायी बहुसंख्यक की स्वेच्छचारिता का शासन।
  • राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलवाने हेतु शांतिपूर्वक आन्दोलन चलाया जा रहा है।

भाषावाद की समस्या के समाधान के उपाय:

  • भारत में भाषावाद की समस्या के समाधान के उपाय निम्नलिखित हैं
  • भाषायी आदान-प्रदान हेतु सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों का विस्तार किया है ?
  • राजनीतिक संकीर्णताएँ समाप्त कर, राष्ट्रीय हित में भाषावाद की समस्या का हल हूँ
  • हिन्दी का प्रचार-प्रसार सुनिश्चित तरीके से सभी को विश्वास में लेकर किया जाए।
  • पर्यटन को बढ़ावा देकर हिन्दी की आवश्यकता को व्यावहारिक बनाया जाए।
  • अंग्रेजी भाषा का प्रशासनिक कार्यों एवं अनुवाद की सीमाओं तक ही उपयोग होना चाहि ।
  • हिन्दी व प्रादेशिक भाषाएँ पारस्पर सहयोगी बनकर विकास करें तभी भाषावाद मिट “
  • भाषाएँ संप्रेषण का माध्यम है, ये परस्पर जोड़ती है, तोड़ती नहीं-यह भाव देशवासिओं के मन में जगाना, होगा।

अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं संबंधित घटनाएँ:

  • सन् 1955 ई. — संविधान में 1955 में प्रथम राजभाषा आयोग प्रो. बी.जी. खरे की अध्यक्षता में गठित किया गया।
  • सन् 1967 ई. — 1967 में राजभाषा संशोधन अधिनियम द्वारा त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करने का सुझाव आया। इसके तहत सरकारी सेवाओं में पत्राचार के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाएँ हिंदी, अंग्रेजी व अन्य प्रादेशिक भाषा में ली जाएंगी।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 25 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • भाषा — भावनाओं और विचारों को संप्रेषित करने, अभिव्यक्ति करने अथवा सूचित करने की वाणी (बोली) और सुनने के व्यवस्थित प्रयोग को भाषा कहते हैं। भाषा के माध्यम से ही हम अपने विचारों, मूल्यों, विश्वासों और ज्ञान का संचरण करते हैं तथा इन्हें साझा रूप में संजोए रखते हैं।
  • नियम/कानून — राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में, एक समाज के उन सिद्धातों को कानून कहा जाता है जो किसी भू-क्षेत्र में राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन बनाए रखने के लिए बल प्रयोग की अनुमति देते हैं। कानून की व्याख्या तथा उनके लागू किए जाने का कार्य प्रथा की अपेक्षा राजनीतिक सत्ता पर निर्भर करता है।
  • जाति — जब एक वर्ग पूर्णतः आनुवंशिकता पर आधारित होता है तो उसे जाति कहा जाता है। जाति एक ऐसा सामाजिक समूह होता है जो दूसरों से अपने को अलग मानता है और जिसकी अपनी-अपनी विशेषताएँ होती हैं।
  • धर्म — किसी व्यक्ति या वस्तु में सदा रहने वाली उसकी मूलवृति, प्रकृति, स्वभाव, मूल गुण अथवा किसी जाति, वर्ग, पद क्षादि के लिए निश्चित किया हुआ कार्य या व्यवहार, कर्त्तव्य; जैसे- क्षत्रिय का धर्म, सदाचार, पुण्य, सत्कर्म आदि कहलाता है।
  • सम्प्रदाय — किसी मत के अनुयायियों की मंडली; किसी विषय या सिद्धांत के सम्बन्ध मैं एक ही विचार या मत रखने वाले लोगों का वर्ग अथवा
  • कोई विशेष धार्मिक मत सम्प्रदाय कहलाता है।
  • प्राकृतिक संसाधन — प्रकृति से प्राप्त विभिन्न पदार्थ या तत्व जिनका कोई मानवीय उपयोग होता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। जैसे-सूर्य का
  • प्रकाश, खनिज, धरातल, मिट्टी, जल, वायु और वनस्पति। ये संसाधन प्रकृति द्वारा किए गए निःशुल्क उपहार है।
  • क्षेत्रवाद — राष्ट्र की तुलना में किसी क्षेत्र विशेष अथवा राज्य की अपेक्षा छोटे क्षेत्र से लगाव, उसके प्रति भक्ति या विशेष आकर्षण दिखाना क्षेत्रवाद कहलाता है। इस दृष्टि से यह राष्ट्रीयता की भावना का विलोम है। इसका उद्देश्य संकुचित क्षेत्रीय स्वार्थों की पूर्ति होता है।
  • भाषावाद — किसी समाज या राज्य में व्यक्तियों के द्वारा अपनी भाषा को प्राथमिकता देते हुए अन्य भाषाओं को गौण समझने की प्रवृत्ति को भाषा बाद कहा जाता है।
  • भूमिपुत्र — भूमिपुत्र का शाब्दिक अर्थ है- भूमि माता है और मैं उसका पुत्र हूँ। क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप इस अवधारणा का उदय हुआ। यह अवधारणा अपने क्षेत्र के निवासियों के हितों को राष्ट्रीय एकता, अखण्डता व संघवाद से कहीं अधिक प्राथमिकता देती है। इसके अन्तर्गत किसी राज्य अथवा क्षेत्र के निवासियों द्वारा उस राज्य में बसने व रोजगार प्राप्त करने आदि के सम्बन्ध में विशेष संरक्षण की माँग की जाती है। भारत में महाराष्ट्र व असम राज्य में यह प्रवृत्ति अधिक देखने को मिलती है।
  • क्षेत्रीय आकांक्षाएँ — क्षेत्रीय अभिलाषाएँ लोकतंत्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है। लोकतंत्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र विरोधी नहीं मानता। विभिन्न दल और समूह क्षेत्रीय पहचान आकांक्षा अथवा किसी विशेष क्षेत्रीय समस्या को आधार बनाकर लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • क्षेत्रीय असंतुलन — क्षेत्रीय असंतुलन से अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है जब किसी देश में भी क्षेत्रों का विकास समान रूप से न हुआ हो।
  • देशी रियासत — अंग्रेजी शासनकाल के दौरान भारत की वे रियासतें, जिनमें राजाओं का शासन था, देशी रियासत कहलाती थीं। ये ब्रिटिश सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं थीं।
  • सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP) — सूखे की सम्भावना वाले कुछ चुने हुए क्षेत्रों में यह राष्ट्रीय कार्यक्रम 1973 ई. में प्राप्त किया गया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उन क्षेत्रों में भूमि, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित विकास करने पर्यावरण को संतुलित करना था।
  • मरु विकास कार्यक्रम (DDP) — 1977-78 से संबंधित कार्यक्रम। इसका उद्देश्य मरुस्थल के विस्तार को रोकना एवं अविरल संतुलन बनाएँ रखना है।
  • पहाड़ी क्षेत्र विकास कार्यक्रम (AADP) — पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में लागू इस कार्यक्रम के अन्तर्गत पहाड़ी क्षेत्रों का विकास किया जा रहा है।
  • जनजाति क्षेत्र विकास कार्यक्रम (TADP) — चुने हुए जनजातीय क्षेत्रों में वहाँ के निवासियों के आर्थिक एवं प्राथमिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए चलाया गया कार्यक्रम।
  • विशेष राज्य का दर्जा — किसी राज्य के पिछड़ापन को दूर करने हेतु विशेष सुविधाएँ देने के लिए इस प्रकार का स्तर प्रदान किया जाता है। कश्मीर को संविधान में धारा-370 के अन्तर्गत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है। इसके तहत जम्मू और कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक स्वायत्तता दी गयी है।
  • राजनीतिक दल — राजनीतिक दल लोगों का एक समूह होता है जो चुनाव लड़ने एवं सरकार में राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्य करता है।
  • विधानमण्डल — राज्यों की विधायिकाओं को विधानमण्डल कहते है। इनका कार्य कानूनों का निर्माण करना होता है। ,
  • आन्दोलन — जब एक व्यक्ति या समूह अपनी उचित माँगों की पूर्ति के लिए शांतिपूर्वक व अहिंसात्मक ढंग से सकारात्मक प्रयास करता है तो उसे आन्दोलन कहा जाता है।
  • मानवाधिकार — वे अधिकार जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक मानव होने के नाते अनिवार्य माने जाते हैं मानवाधिकार कहलाते हैं। जैसे- व्यक्ति की गरिमा, जीवन की रक्षा इत्यादि। .. 22. त्रिभाषा फार्मला — 1967 ई. में राज भाषा संशोधन अधिनियम द्वारा लागू इनके तहत सरकारी सेवाओं में जनाधार के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाएँ हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य प्रादेशिक भाषा में लेने का प्रावधान रखा गया।
  • राजनीति — वर्तमान में राजनीति शब्द का प्रयोग एक अथवा अनेक रूपों में जनता की समस्याओं को हल करने वाले तंत्र के रूप में होने लगा है। किसी समय में शक्ति ग्रहण करने तथा उसे बनाए रखने की तकनीक को राजनीति कहा जाता था।
  • आंग्ल — अंग्रेजी भाषा के लिए प्रयुक्त शब्द।
  • सम्प्रेषण — दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों, अनुमानों या संवेगों के पारस्परिक आदान-प्रदान को सम्प्रेषण कहते हैं। भाषा सम्प्रदाय का एक माध्यम है।
  • पर्यटन — पर्यटन एक यात्रा है जो व्यापार की अपेक्षा आमोद-प्रमोद के उद्देश्य से की जाती है। दूसरे शब्दों में मनोरंजन के लिए की गयी यात्रा पर्यटन कहलाती है।
  • राजभाषा — जिस भाषा में सरकारी काम-काज होता है, उसे राजभाषा कहते हैं।
  • पृथकतावाद — जब एक समुदाय या सम्प्रदाय, क्षेत्रीयता की संकीर्ण भावना से ग्रस्त होकर अलग एवं स्वतंत्र राज्य बनाने की माँग करे तो उसे पृथकतावाद कहते हैं।
  • प्रो. बी. जी. खरे — 1955 ई. में गठित प्रथम राजभाषा आयोग के अध्यक्ष।

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