RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 राजनीतिक सहभागिता

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 राजनीतिक सहभागिता

  • आधुनिक राजनीतिक अवधारणाओं में राजनीतिक सहभागिता अथवा भागीदारी का महत्वपूर्ण स्थान है।
  • राजनीतिक सहभागिता एवं प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के लिए विश्व का अग्रणी लोकतांत्रिक देश स्विटजरलैण्ड प्रसिद्ध है।
  • राजनीतिक सहभागिता प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था के विश्लेषण एवं मूल्यांकन का महत्वपूर्ण कारक है।
  • राजनीतिक सहभागिता का प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में महत्व होता है वह चाहे परम्परागत, आधुनिक, | लोकतांत्रिक अथवा तानाशाही कोई भी व्यवस्था हो।
  • राजनीतिक सहभागिता लोकतान्त्रिक व्यवस्था का प्राण तत्व है।

राजनीतिक सहभागिता का अर्थ:

  • राजनीतिक सहभागिता से आशय राजनीतिक व्यवस्था में विभिन्न स्तरों पर नागरिकों की सम्पूर्ण भागीदारी से है।
  • एक अवधारणा के रूप में राजनीतिक सहभागिता का उल्लेख रूसो एवं गणतंत्रवादियों के लेखों में मिलता है।
  • राजनीति विज्ञान में राजनीतिक सहभागिता का सूत्रपात व्यवहारवादियों ने किया।

राजनीतिक सहभागिता के स्वरूप:

  • राजनीतिक सहभागिता के दो स्वरूप मिलते हैं-
    • विकासपरक,
    • लोकतांत्रिक
  • वोट देने व दिलाने. चंदा देने, याचिका प्रस्तुत करने, सत्ताधारी जन प्रतिनिधियों पर प्रभाव डालने, रैली निकालने, किसी विशेष मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन व जन प्रतिनिधियों का विरोध-प्रदर्शन करना आदि राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख औजार हैं।
  • राजकीय गतिविधियों में उत्तरदायित्वों में वृद्धि होने के साथ-साथ राजनीतिक सहभागिता में भी तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
  • विकसित समाज के प्रत्येक सामाजिक पहलू से राजनीतिक सहभागिता का गहरा जुड़ाव हो गया है।
  • पेरोक्लीज ने प्रजातांत्रिक निर्णयन में नागरिकों की भागीदारी को लोकतंत्र की एक अनिवार्य शर्त माना है।

नागरिक चेतना और सहभागिता:

  • राजनीतिक सहभागिता को सुनिश्चित करने वाले प्रमुख तत्व नागरिकों की चेतना, उनका शैक्षिक स्तर तथा वैचारिक धरातल आदि हैं।
  • जिन देशों का साक्षरता प्रतिशत जितना अधिक होता है वहाँ के नागरिकों की राजनीतिक सहभागिता का स्तर भी उतना ही व्यापक होता है।

राजनीतिक सहभागिता का अभिजात्य स्वरूप:

  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नागरिकों की प्रभावी एवं सक्रिय सहभागिता प्रथम और अनिवार्य शर्त मानी जाती है।प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक जोसेफ शुपीटर के अनुसार शासन संचालित करना तथा सार्वजनिक नीतियाँ निर्मित करना व्यावसायिक राजनेताओं का कार्य है जबकि सामान्य जनता की भूमिका चुनाव द्वारा अपनी पसंद को राजनीतिक दलों के माध्यम से अपने प्रतिनिधियों को चुनने तक सीमित है।
  • वर्तमान समय में शासन में वास्तविक सहभागिता अल्प मात्रा में अभिजात्य वर्ग के हाथों में सिमट कर रह गयी है।
  • आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली में लोकतंत्र मूलरूप से राजनीतिज्ञों का शासन है जिसमें सामान्य जनता की भूमिका बहुत सीमित, अल्पकालिक एवं काल्पनिक मात्र है।

राजनीतिक सहभागिता का स्वरूप:

  • राजनीतिक सहभागिता अथवा भागीदारी वह गतिविधि है जिसके अन्तर्गत कोई व्यक्ति सार्वजनिक नीतियों और निर्णयों के निर्माण, निर्धारण एवं कार्यान्वयन की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेता है। राजनीतिक सहभागिता के दो तरीके हैं-
    • सामुदायिक गतिविधि,
    • सरकार एवं नागरिकों के मध्य सक्रिय परस्पर क्रिया।

राजनीतिक सहभागिता के विभिन्न रूप:

राजनीतिक सहभागिता के दो प्रमुख रूप हैं-

  • परम्परागत राजनैतिक सहभागिता,
  • गैर-परम्परागत राजनैतिक सहभागिता।

परम्परागत व गैर-परम्परागत राजनैतिक सहभागिता के दो अलग-अलग प्रकार हैं-

  • नागरिक सहभागिता,
  • राज्य सहभागिता

राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख अभिकरण:
राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख अभिकरण हैं-

  • दबाव समूह,
  • आरम्भक (प्रस्ताव तैयार करना),
  • प्रत्याह्वान (प्रतिनिधि वापस बुलाना,
  • जन सुनवाई,
  • परिपृच्छा (किसी प्रश्न पर निर्णय हेतु मतदान),
  • सविनय अवज्ञा,
  • सलाहकार परिषद्,
  • राजनीतिक प्रतिहिंसा।

राजनीतिक सहभागिता की उपादेयता:

  • राजनीतिक सहभागिता उत्तम जीवन का एक आवश्यक अंग होने के साथ-साथ उत्तम समाज की एक जरूरी शर्त है।
  • लोकतंत्र के अन्तर्गत राजनीतिक सहभागिता की उपादेयता, सार्वजनिक निर्णयों तक पहुँचने में नागरिकों की प्रत्यक्ष राजनीतिक सहभागिता का अधिकतम विस्तार होना आज के युग में आवश्यक हो गया है।

राजनीतिक सहभागिता के पक्ष में दृष्टिकोण:

  • राजनीतिक सहभागिता अथवा भागीदारी स्वयं सहभागी व्यक्ति के हितों की रक्षा करती है।
  • यह सामान्य हितों के लिए नागरिकों की एकजुटता बढ़ाती है।
  • लोकतंत्र में आम जनता की सहभागिता को एक सीमा तक ही बढ़ाना उपयुक्त होगा। अन्यथा वह हानिकारक सिद्ध हो सकती है।
  • राजनैतिक सहभागिता का विवेक संगत उपयोग ही सार्थक परिणाम प्रदान कर सकता है।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 7 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • राजनीतिक सहभागिता — जब राजनीतिक व्यवस्था के माध्यमों द्वारा व्यवस्था के सुधार व संचालन में विभिन्न स्तरों पर राजनीतिक प्रक्रियाओं में जन-भागीदारी सुनिश्चित की जाती है तो इस प्रवृत्ति को राजनीतिक सहभागिता यो जन सहभागिता कहते हैं।
  • लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र — वह शासन व्यवस्था जिसमें जनता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने जनप्रतिनिधि का चयन करती है। लिंकन के अनुसार-“लोकतन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है।”
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र — लोकतन्त्र का वह स्वरूप जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन संचालन में भाग लेती है। स्विट्जरलैण्ड प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का एक उदाहरण है।
  • राजनीतिक दल — यह समान विचारधारा वाले लोगों का एक समूह है जो चुनाव लड़ने और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्य करता है।
  • व्यवहारवाद — यह एक बौद्धिक प्रवृत्ति, एक अध्ययन पद्धति, आन्दोलन और मनोभाव है जो यथार्थवादी दृष्टिकोण पर आधारित आनुभविक अध्ययन द्वारा मानव व्यवहार का अध्ययन कर राजनीति विज्ञान को विशुद्ध विज्ञान बनाना चाहता है।
  • स्वशासन — अपने समस्त कार्यों की व्यवस्था स्वयं करने का पूर्ण अधिकार अथवा अपने अधिक्षेत्र में शासन व राजनीतिक प्रबंध आदि स्वयं करने का पूर्ण अधिकार, स्वशासन कहलाता है।
  • राजशाही — राजा का शासन अर्थात् राजतंत्र। (8) लोकशाही-जनता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शासन अर्थात् लोकतंत्र।
  • प्रतिनिधि लोकतंत्र — लोकतंत्र का वह रूप जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है तथा वे प्रतिनिधि शासन का संचालन करते हैं, प्रतिनिधि लोकतंत्र कहलाता है। इसे अप्रत्यक्ष लोकतंत्र भी कहते हैं।
  • सत्ता — संवैधानिक प्राधिकरण द्वारा व्यक्ति के ऊपर प्रयोग की जाने वाली शक्ति को सत्ता कहते हैं।
  • ब्यूरोक्रेट — नौकरशाह। यह अपने राजनीतिक स्वामी के सलाहकार के तौर पर कार्य करता है। घटनाओं के तथ्यों को प्रस्तुत करता है तथा नीतियों को ईमानदारी से लागू करता है।
  • टेक्नोक्रेट — तकनीकी विशेषज्ञ, सामान्यतया यह कम्प्यूटर जनित एवं मशीनी व्यवस्था का जानकार होता है।
  • अभिजात्य वर्ग — समाज के वे अल्पसंख्यक सदस्य जो राजनीति में अपना दखल रखते हैं। ये व्यवसायी, कलाकार, उद्योगपति, राजनीतिक अथवा अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकते हैं।
  • समुदाय — यह एक ऐसा छोटा क्षेत्रीय समूह है जिसके अन्तर्गत सामाजिक जीवन के समस्त पहलू समाहित होते हैं।
  • दबाव समूह — दबाव समूह ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो एक सामान्य उद्देश्य के लिए निर्मित होता है और उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार पर दबाव डालता है।
  • प्रत्याह्वान — संसदीय लोकतन्त्र की वह व्यवस्था जिसमें चुने हुए प्रतिनिधि को बहुमत के आधार पर वापस बुलाया जा सकता है।
  • परिपृच्छा — सार्वजनिक महत्व के किसी प्रश्न पर मतदान की प्रक्रिया परिपृच्छा कहलाती है।
  • सविनय अवज्ञा — किसी अन्यायपूर्ण कानून को जान-बूझकर तोड़ना अथवा निषिद्ध स्थान पर प्रवेश करके स्वेच्छा से गिरफ्तारी देना सविनय अवज्ञा है। यह गाँधीजी का मुख्य अस्त्र था।
  • पंचायतीराज — ग्रामीण, स्थानीय स्वशासन को पंचायती राज कहा जाता है। भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था है। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत खण्ड स्तर पर पंचायत समिति एवं जिला स्तर पर जिला परिषद् है। 73 वें संविधान संसोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई।
  • जन सुनवाई — वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत जनप्रतिनिधि या अधिकारी विभिन्न विषयों पर जनता के विचार, उनकी समस्याएँ जानने का प्रयत्न करते हैं।
  • सलाहकार परिषद — वर्तमान समय में सरकारें अपने विभागों से जुड़े कार्यों के विशेष पक्षों पर परामर्श देने के लिए गणमान्य नागरिकों का एक संगठन बना देती हैं, जिसे सलाहकार परिषद कहा जाता है।
  • राजनीतिक प्रतिहिंसा — विरोध प्रदर्शन का सबसे उग्र रूप जिसमें बमबारी, हत्या, उपद्रव, लोगों को बंधक बनाना अथवा सार्वजनिक सामाजिक नुकसान पहुँचाने की कार्यवाही की जाती है।
  • आरम्भक — मतदाताओं द्वारा किसी कानून या संविधान में संशोधन करने के लिए प्रारूप तैयार कर विधानमण्डल के पास विचार के लिए भेजना आरम्भक कहलाता है। यह प्रणाली स्विट्जरलैण्ड में विशेष रूप से प्रचलित है।
  •  निजी विधेयक — मंत्री के अतिरिक्त कोई अन्य सदस्य संसद या विधानमंडल में विधेयक प्रस्तुत करे तो ऐसे विधेयक को निजी विधेयक कहते हैं। भारत में नागरिकों को अपने चुने हुए प्रतिनिधयों के माध्यम से संसद में निजी विधेयक प्रस्तुत करने की छूट है।
  • भ्रष्टाचार — अपने पद और स्थिति द्वारा अपेक्षित दायित्वों का ईमानदारी से पालन करने के बजाय व्यक्तिगत हित अथवा लाभ प्राप्त करने के लिए अधिकारों और स्थिति का दुरुपयोग करना भ्रष्टाचार कहलाता है।
  • निर्वाचक मण्डल — देश में उच्च पद पर चुनाव के लिए निर्मित प्रणाली। इसमें संसद व राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं।
  • जनमत संग्रह — वह व्यवस्था जिसके अन्तर्गत किसी विशिष्ट नीति सम्बन्धी या शासन सम्बन्धी महत्वपपूर्ण प्रश्न पर जनसाधारण का प्रत्यक्ष मत लिया जाता है और जनता मतदान के माध्यम से इस प्रकार के प्रश्नों पर अपना निर्णय देती हुई शासन प्रक्रिया में भागीदारी करती है।
  • सोशल मीडिया — शाब्दिक अर्थ-मीडिया यानि माध्यम, सोशल अर्थात् सामाजिक। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो यह सामाजिक माध्यम है। यह परस्पर संवाद का वेब आधारित एक ऐसा अत्यधिक गतिशील मंच है जिसके माध्यम से लोग संवाद करते हैं, आपसी जानकारियों का आदान-प्रदान करते हैं और उपयोगकर्ताजनित सामग्री को सामग्री सृजन की सहयोगात्मक प्रक्रिया के एक अंश के रूप में संशोधित करते हैं। सोशल मीडिया फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, वाट्सअप आदि के रूप में प्रयुक्त होता है।
  • रूसो — प्रत्यक्ष लोकतंत्र के समर्थक फ्रांसीसी राजनीतिशास्त्री। सामाजिक समझौता सिद्धान्त के प्रवर्तक ‘द सोशल कॉन्ट्रेक्ट’ इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है।
  • मैक्लोस्की — एक राजनीतिक चिंतक। इन्होंने राजनीतिक सहभागिता को परिभाषित किया। इन्होंने राजनीतिक सहभागिता को न्यूनाधिक रूप से समस्त व्यवस्थाओं में विद्यमान माना।
  • पैरी — प्रमुख राजनीति विज्ञानी। इन्होंने राजनीतिक सहभागिता को लोकतंत्र से सम्बन्धित मानी।।
  • काश व मार्श — राजनीतिक विद्वान, जिन्होंने राजनीतिक सहभागिता की धारणा को लोकतांत्रिक, राज्य की अवधारणा के केन्द्र में अवस्थित माना।
  • बैंजामिन बार्बर — सशक्त सहभागी लोकतंत्र के समर्थक राजनीति विज्ञानी। इन्होंने एक मजबूत लोकतंत्र की आवश्यकता पर बल दिया।
  • जोसेफ शुंपीटर — प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक। इन्होंने शासन को चलाने एवं राजनीतिक नीतियों के निर्माण का कार्य व्यावसायिक राजनीतिज्ञों का माना।।
  • रॉबर्ट डहल — येल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। इन्होंने 1940-60 के दौरान अमेरिका की राजनीति को लोकतांत्रिक से अधिक कुलीन तंत्र बताकर प्रशासन की प्रणाली पर सवाल खड़े किए थे। लोकतंत्र के अभिजात्य स्वरूप के आलोचक।

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