RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 8 उदारवाद

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 8 उदारवाद

  • उदारवाद वह विचारधारा है जिसके अन्तर्गत मनुष्य को विवेकशील प्राणी मानते हुए सामाजिक संस्थाओं को मनुष्यों की सूझबूझ और सामूहिक प्रयास समझा जाता है।
  • जान लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। एडम स्मिथ और जेरेमी बैथम भी उदारवारी विचारकों में सम्मिलित किए जाते हैं।
  • आधुनिक राजनीतिक विचारधाराओं में उदारवाद की परम्परा सबसे अधिक प्राचीन है।
  • उदारवादी दर्शन का उदय तथा विकास यूरोप में पुनर्जागरण तथा धर्म सुधार आन्दोलनों से जुड़ा है।
  • उदारवाद का उदय 16र्वी शताब्दी में सामन्तशाही, राजशाही और पोपशाही जैसे मध्ययुगीन व्यवस्था के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1815 में इंग्लैण्ड में हुआ था।

उदारवाद की व्युत्पत्ति:

  • उदारवाद अंग्रेजी के ‘लिबरेलिज्म’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘लिबर’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है स्वतन्त्र। उदारवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसका स्वरूप व कार्यक्षेत्र विकास के प्रथम चरण से लेकर वर्तमान तक बदलता रहा है।
  • सामान्यतया उदारवाद एक विचारधारा से अधिक है। यह सोचने का एक तरीका है, संसार को देखने की एक दृष्टि है।

उदारवाद का उदय एवं विकास:

  • प्रारम्भ में लॉक, बेंथम व एडम स्मिथ की रचनाओं में उदारवाद का स्वरूप नकारात्मक था। इसे व्यक्तिवाद’ व ‘शास्त्रीय उदारवाद’ के नाम से जाना जाता था। 19वीं शताब्दी में जॉन स्टुअर्ट मिल ने इसे सकारात्मक रूप प्रदान | किया। 20वीं शताब्दी में लास्की व मेकाइवर ने इसकी नवीन रूप में प्रस्तुति की।
  • नकारात्मक उदारवाद के समर्थक राज्य को एक आवश्यक बुराई समझते थे। सकारात्मक उदारवाद के समर्थक राज्य को एक अच्छाई समझने लगे तथा 20वीं शताब्दी के बाद राज्य को एक आवश्यक संस्था माना जाने लगा।
  • उदारवाद की विचारधारा व्यक्ति की स्वतन्त्रता व अधिकारों पर बल देती है। यह राज्य को साधन और व्यक्ति को साध्य मानती है।
  • संविधानवाद, विधि का शासन, विकेन्द्रीकरण, स्वतन्त्र चुनाव व न्याय व्यवस्था, लोकतान्त्रिक प्रणाली, अधिकारों, | स्वतन्त्रताओं व न्याय की व्यवस्था आदि उदारवादी विचारधारा के कुछ लक्षण हैं।

उदारवाद की प्रकृति:

  • 1688 की इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति, 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति तथा 1776 के अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम ने उदारवाद के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वस्तुत: उदारवाद व्यक्ति की स्वतन्त्रता व अधिकारों से सम्बद्ध विचारधारा है।
  • माण्टेस्क्यू ने शासन-कार्यों को अलग-अलग संस्थाओं को देकर शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
  • जान लॉक की धारणा थी कि राजनीतिक कार्य सीमित होते हैं अत: राजनीतिक शक्ति भी सीमित होनी चाहिए।
  • एडम स्मिथ व बैंथम अहस्तक्षेपी राज्य के समर्थ थे।

उदारवाद के दो रूप:

  • (i) परम्परागत या शास्त्रीय उदारवाद
    (ii) आधुनिक उदारवाद ।
  • परम्परागत या शास्त्रीय उदारवाद की विशेषताएँ हैं
    (i) धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानना।
    (ii) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल।
    (iii) सीमित राज्य का समर्थन।।
    (iv) सामाजिक प्रतिमान में एकता।
    (v) निजी सम्पत्ति का समर्थन।
  • आधुनिक उदारवाद की विशेषताएँ हैं|
    (i) लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थन।
    (ii) निजी सम्पत्ति पर अंकुश एवं पूँजीपतियों पर कर की वकालत ।
  • हरबर्ट स्पेन्सर के अनुसार पहले का उदारवाद राज्य की शक्तियों को सीमित करता था तथा भविष्य के उदारवाद का कार्य व्यवस्थापिकाओं की शक्तियों को सीमित करना होगा।
  • लॉक के बाद बेंथम, टॉमस पेन, माण्टेस्क्यू, रूसो तथा अन्य कई विचारकों ने उदारवादी दर्शन को आगे बढ़ाया।
  • उदारवादी दर्शन के परिणामस्वरूप सन् 1976 में अमेरिका की स्वतन्त्रता की घोषणा और फ्राँस में सन् 1774 में मानव अधिकारों की घोषणा हुई।
  • 17वीं और 18वीं सदी के उदारवाद को परम्परागत अथवा शास्त्रीय या उदात्त उदारवाद भी कहा जाता है।

नकारात्मक उदारवाद की विशेषताएँ:

  • नकारात्मक उदारवाद की विशेषताएँ इस प्रकार हैं- व्यक्तिवाद पर अत्यधिक जोर, मध्ययुग की धार्मिक व सांस्कृतिक जंजीरों की मुक्ति पर जोर, मानवे व्यक्तित्व के असीम मूल्य और अध्यात्मिक समानता में विश्वास ।
  • व्यक्ति की स्वतन्त्र इच्छा में विश्वास, जीवन, स्वतन्त्रता एवं सम्पत्ति में विश्वास आदि नकारात्मक उदारवाद की अन्य विशेषताएँ हैं।

उदारवाद व लॉक का दर्शन:

  • जॉन लॉक के उदारवादी दर्शन के अनुसार राज्य की उत्पत्ति व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए सामाजिक समझौते के द्वारा हुई।
  • लॉक के अनुसार वही सरकार सर्वश्रेष्ठ है जो कम से कम शासन करती है। इस प्रकार राज्य एक आवश्यक बुराई है।
  • आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद मुक्त व्यापार तथा समझौते पर आधारित पूँजीवाद अर्थव्यवस्था की बात करता है।
  • नकारात्मक उदारवाद पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार के हस्तक्षेप तथा नियन्त्रण पर प्रतिबंध लगाता है।

नकारात्मक उदारवाद की आलोचना:

  • नकारात्मक उदारवाद की सीमित राज्य की अवधारणा जनकल्याण विरोधी है। साथ ही यह केवल बुर्जुआ वर्ग के हितों का ध्यान रखती है।
  • सांस्कृतिक क्षेत्र में नकारात्मक उदारवाद व्यक्ति को उच्छृखल बनाता है जो समाज के हितों के विपरीत है।

आधुनिक व समसामयिक उदारवाद:

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सकारात्मक उदारवाद अस्तित्व में आया जो कि कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल देता है। व्यक्तियों को समान अवसर व पूर्ण स्वतन्त्रता देकर उनके सर्वांगीण विकास पर जोर देता है।
  • आधुनिक सकारात्मक उदारवाद सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, निष्पक्ष चुनाव में व्यापक राजनीतिक सहभागिता पर बल देता है।
  • उदारवाद का आधुनिक स्वरूप क्रान्तिकारी तरीकों के विपरीत सुधारवादी, शांतिपूर्ण और क्रमिक सामाजिक | परिवर्तन में विश्वास रखता है। यह
  • बाजार व्यवस्था के स्थान पर मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है।

आलोचना:
आधुनिक व समसामयिक उदारवाद

  • राज्य को शक्तिशाली बनाता है ताकि गरीबों को राजनैतिक वैधता के नाम पर दबा सके।
  • यह पूँजीवादी वर्ग से सम्बन्धित धारणा है। इसका सामाजिक न्याय मात्र दिखाया है।
  • यह यथा स्थितिवाद पर जोर देता है।

महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ:

1688 — इंग्लैण्ड की गौरवपूर्ण क्रान्ति।
1776 — अमेरिकी स्वतन्त्रता की घोषणा।
1779 — फ्रांस में मानव अधिकारों की घोषणा।
1789 — फ्राँसीसी क्रान्ति
1815 — इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम उदारवाद की संकल्पना का जन्म।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 8 प्रमुख पारिभाषिक शब्दावली

  • उदारवाद — यह विचारधारा मनुष्य को एक विवेकशील प्राणी मानते हुए व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल देती है। जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। उदारवाद स्वतंत्र व्यापार की नीति का पक्षधर है।
  • पुनर्जागरण — यह मध्यकाल में यूरोप में हुआ सांस्कृतिक आन्दोलन था जो इटली से आरम्भ होकर सम्पूर्ण यूरोप में फैल गया था। इसका समय चौदहवीं से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है।
  • धर्म सुधार आंदोलन — धर्म सुधार आंदोलन 16वीं शताब्दी का वह महान आन्दोलन था जिसके परिणामस्वरूप पाश्चात्ये ईसाइयों की एकता छिन्न भिन्न हो गई तथा प्रोटेस्टैण्ट धर्म का उदय हुआ।
  • सामंतशाही — यह प्रथा मध्ययुग में इंग्लैण्ड व यूरोप में विद्यमान थी। सामंतों की कई श्रेणियाँ होती थीं, जिनके शीर्ष पर राजा था। राजा के अधीन सामंत विशाल सेनाओं की सहायता से भूमि के बड़े हिस्सों पर अधिकार रखते थे तथा प्रशासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
  • व्यक्तिवाद — यह एक नैतिक, राजनीतिक व सामाजिक दर्शन है जो व्यक्ति की स्वतन्त्रता व आत्म-निर्भरता पर बल देता है। स्मिथ, स्पेन्सर और मिल इसके समर्थक हैं। इस विचारधारा के समर्थक राज्य को एक आवश्यक बुराई मानते हैं।
  • संविधानवाद — संविधानवाद का सामान्य अर्थ है कि सरकार की सत्ता संविधान से उत्पन्न होती है तथा उसी से इसकी सीमा भी निर्धारित होती है।
  • विकेन्द्रीकरण — किसी सत्ता को केन्द्र से हटाकर विभिन्न स्तरों पर विभाजित करना विकेन्द्रीकरण कहलाता है।
  • गौरवपूर्ण क्रान्ति — गौरवपूर्ण क्रान्ति सन् 1688 में इंग्लैण्ड में हुई। इसे रक्तहीन क्रान्ति भी कहा जाता है क्योंकि इसमें रक्त नहीं बहाया गया। सम्राट जेम्स द्वितीय के द्वारा संसद की सर्वोच्चता को चुनौती देने के परिणामस्वरूप यह क्रान्ति हुई।
  • दैवी सिद्धान्त — यह राज्य की उत्पत्ति का प्राचीनतम सिद्धान्त है। इसके अनुसार राज्य की उत्पत्ति ईश्वर से हुई है तथा वही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य को संचालित करता है।
  • शक्ति पृथक्करण — शक्ति पृथक्करण के अन्तर्गत राज्य के उत्तरदायित्व कई शाखाओं में विभाजित किये जाते हैं। प्रायः यह विभाजन व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के रूप में किया जाता है।
  • मॉण्टेस्क्यू (1689-1755 ई.) — मॉण्टेस्क्यू फ्राँस के एक राजनीतिक विचारक थे। इन्होंने शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
  • जॉन लॉक (1632-1704 ई.) — ये एक आँग्ल दार्शनिक व राजनीतिक विचारक थे। इन्हें उदारवाद का जनक कहा जाता है।
  • एडम स्मिथ (1723-1790 ई.) — एक स्कॉटिश नीतिवेत्ता, दार्शनिक व राजनीतिक अर्थशास्त्री थे। इन्हें अर्थशास्त्र का पितामह भी कहा जाता है। इनकी प्रसिद्ध कृति ‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ है। इनके अनुसार न्यूनतम हस्तक्षेप होने पर ही पूँजी का व्यक्तिगत व देश की समृद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सकता है।
  • बेंथम (1748-1832 ई.) — इंग्लैण्ड के न्यायविद्, दार्शनिक, कानूनवेत्ता व समाज सुधारक थे। यह उपयोगितावाद के कट्टर समर्थक तथा प्राकृतिक अधिकारों के विरोधी थे। उनके उपयोगितावाद का सार था-‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ ।।
  • जॉन स्टुअर्ट मिल (1806–73 ई.) — एक प्रसिद्ध आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक चिन्तक थे। इन्होंने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थन किया तथा मुक्त व्यापार के सिद्धान्त को प्रोत्साहन दिया।
  • लास्की (1893-1950 ई.) — ब्रिटेन के राजनीतिक सिद्धान्तकार, अर्थशास्त्री व लेखक थे। ये भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के समर्थक थे। ये ब्रिटिश लेबर पार्टी के अध्यक्ष भी रहे।
  • हरबर्ट स्पेन्सर (1820-1903 ई.) — एक अँग्रेज दार्शनिक, जीव विज्ञानी, समाजशास्त्री एवं प्रसिद्ध पारम्परिक उदारवादी राजनीतिक सिद्धान्तकार थे।
  • रूसो (1712-78 ई.) — ये फ्रांसीसी दार्शनिक एवं व्यक्तिवादी विचारक थे। फ्रांसीसी क्रान्ति में इनके विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इनकी प्रसिद्ध रचना ‘सोशल कॉन्ट्रेक्ट’ थी। इनका अत्यन्त प्रसिद्ध कथन था-‘मनुष्य स्वतन्त्र जन्मा है किन्तु उसे सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा जाता है।

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